प्रधानमंत्री बोले मार्कशीट से ना हो छात्र का मूल्यांकन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बताया की राष्ट्र शिक्षा नीति में छात्रों को मन चाहा विषय चुनने की आजादी दी गयी है और यही सबसे बड़ा सुधर है।
नई दिल्ली, जेएनएन। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education पालिसी-2020) को लागू करने की तैयारी के बीच नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार 11/09/2020 को बताया की 2022 से पढ़ाई नई शिक्षा नीति के तहत ही होगी उसके लिए पाठ्यक्रम को तैयार किया जा रहा है प्रधानमंत्री ने आज की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए बताया की आज की शिक्षा व्यवस्था मार्क्स पर आधारित है न की सीखने पर सच्चाई यह है कि मार्कशीट अब मानसिक प्रेशर शीट और परिवार की प्रेस्टीज शीट बन गई हैं यानी इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया गया है। प्रधानमंत्री ने 21वीं सदी में विद्यालों से जु़ड़े अध्यापकों को वर्चुअल रूप से संबोधित करते हुए कहा, कि पढ़ाई से मिल रहे तनाव से सभी बच्चों को उभारना ही नई शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को मार्कशीट की जगह उनके सभी पहलुओं को शामिल करते हुए एक रिपोर्ट कार्ड का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें छात्र की विशिष्ट क्षमता, योग्यता, प्रतिभा, स्किल, क्षमता आदि शामिल होगी।
प्रधानमंत्री ने बताया-क्यों लानी पड़ी नई शिक्षा नीति
पीएम ने इस दौरान राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाने के पीछे की वजह भी बताई। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशक में दुनिया का हर क्षेत्र बदल गया, हर व्यवस्था बदल गई। इन तीन दशकों में शायद ही जीवन का कोई ऐसा पक्ष हो, जो पहले जैसा हो। लेकिन जो नहीं बदला था, वह हमारी शिक्षा व्यवस्था थी। यह पुराने ढर्रे पर ही चल रही थी। पुरानी शिक्षा व्यवस्था को बदलना उतना ही जरूरी था, जितना किसी खराब हो चुके ब्लैक बोर्ड को बदलना आवश्यक हो जाता है।
प्रधानमंत्री ने ये भी आशा दिखाई है की इस शिक्षा नीति से भारत के नव युवक और नव युवतियों अनेकों लक्ष्यों को छुएंगे और बच्चों के ऊपर से पढाई का दबाव कम हो सकेगा।
निष्कर्ष
जिन विषयों पर हमने चर्चा की है वे नई शिक्षा नीति के कुछ मुख्य बिंदु हैं। इसके अतिरिक्त दस्तावेजों में विस्तृत रूप से कई विषयों को रखा गया है, जिस पर चर्चा हो रही है।
जैसे प्रस्तावित नई शिक्षा नीति में यह विवरण भी दिया गया है कि किस तरह नये शिक्षा ढांचे के अनुरूप शिक्षकों को तैयार किया जाएगा। किस तरह से संसाधन जुटाए जाएंगे। शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर बच्चों के अभिभावकों की सहभागिता कैसे बढ़ाई जाएगी। इसके पहले 1986 में नई शिक्षा नीति आई थी, जिसमें बाद में 1992 में कुछ सुधार गया था। इतने वर्षों बाद अब इस नई शिक्षा नीति का प्रारूप सामने आया है। यदि हमनें इसे सिर्फ हिंदी को थोपने तक की बहस पर छोड़ दिया और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा या बहस नहीं की तो यह नई व भावी पीढ़ी के साथ न्याय नहीं होगा। क्योंकि यह उनकी बेहतरी के उद्देश्य से ही लाया गया है।