नंदा देवी पर्वत की बर्फ में दफन एक राज

by Mukesh Kabadwal
770 views


नन्दा देवी पर्वत भारत की दूसरी एवं विश्व की 23वीं सर्वोच्च चोटी है। इससे ऊंची व देश में सर्वोच्च चोटी कंचनजंघा है। नन्दा देवी शिखर हिमालय पर्वत शृंखला में भारत के उत्तराखंड राज्य में पूर्व में गौरीगंगा तथा पश्चिम में ऋषिगंगा घाटियों के बीच स्थित है। इसकी ऊंचाई 7817 मीटर  है। इस चोटी को उत्तराखंड राज्य में मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है। इन्हें नंदा देवी कहते हैं।

camp area

इसी चोटी की बर्फ में दबा हुआ है एक जानलेवा दिवस जिसके कारण भारत पर खतरा पिछले कई दशकों से मँडरा रहा है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इस खतरे को टालने पर कभी भी गम्भीरता से विचार किया ही नहीं गया।

भारत को यह खतरा पाँच दशक पहले नंदा देवी पर्वत शृंखला में गुम हुए उन प्लूटोनियम-238 और 239 भरे 7 कैप्सुल्स से है, जो करोड़ों लोगों को कैंसर का मरीज बना सकता है।

इसके खतरे का अन्दाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हिरोशिमा पर गिराए गए ‘फैट मैन’ परमाणु बम बनाने में जितने प्लूटोनियम लगे थे, उससे महज एक किलोग्राम कम प्लूटोनियम नंदा देवी में गुम हुआ है।

घटना 70 के दशक की है। भारत और चीन के बीच हुए युद्ध में चीन के हाथों भारत की शर्मनाक हार हुई थी और पूर्वी व पश्चिमी मुल्कों के बीच शीत युद्ध परवान पर था। हर देश चाहता था कि वह खुद को परमाणु बमों से लैस कर ले और प्रतिद्वंद्वी देशों को आँखें तरेरे।

इसी बीच सन 1964 में चीन ने जिनजियांग प्रान्त में पहला परमाणु परीक्षण कर दुनिया को हैरत में डाल दिया था।

अमेरिका  समेत तमाम देश चीन के इस परीक्षण से सकते में आ गए थे और उन्हें अन्देशा होने लगा था कि चीन आने वाले वर्षों में खुद को ऐसे ही घातक बमों से लैस कर लेगा, जिससे शक्ति सन्तुलन बिगड़ सकता है।

ऐसे में अमेरिका ने तय किया कि चीन की इस तरह की तमाम गतिविधियों पर वह नजर रखेगा। इसके लिये अमरिकी खुफिया एजेंसी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) ने भारत के इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के साथ मिलकर उत्तराखण्ड के चमोली में स्थित भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी नंदा देवी पर रिमोट सेंसिंग डिवाइस लगाने का फैसला लिया।

नंदा देवी का चुनाव इसलिये किया गया था कि इसकी चोटी से जिनजियांग से आगे तक की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती थी।

इस डिवाइस को लगाने के लिये भारी-भरकम उपकरणों को 7816 मीटर (नंदा देवी की ऊँचाई) ऊपर ले जाना था। भारी-भरकम मशीनों में 56 किलोग्राम के एक उपकरण के अलावा 8 से 10 फीट ऊँचा एंटीना, दो ट्रांसीवर और न्यूक्लियर ऑक्जिलरी पॉवर जेनरेटर शामिल थे। इनके अलावा 7 कैप्सुल्स में 5 किलोग्राम प्लूटोनियम भरकर लाया गया। प्लूटोनियम पावर जेनरेटर के लिये बिजली मुहैया कराने का काम करता और प्रतिकूल मौसम में भी जेनरेटर चलता रहता, इसलिये प्लूटोनियम के इस्तेमाल का निर्णय लिया गया था।

वैसे मुख्य मिशन को अंजाम देने से पहले अलास्का की पर्वत चोटी पर प्रायोगिक तौर पर ऐसे ही यंत्र लगाए गए गए थे। इसमें भी भारतीय व अमरिकी एक्सपर्ट मौजूद थे। अलास्का का प्रयोग सफल होने के बाद नंदा देवी की चोटी पर इस डिवाइस को इंस्टॉल करने का काम शुरू हुआ।

इन वजनी उपकरणों को सही-सलामत चोटी तक ले जाना दुरूह कार्य था। इसके लिये स्थानीय पर्वतारोहियों, सीआईए तथा आईबी के अफसरों, विशेषज्ञों को मिलाकर 200 लोगों की एक मजबूत टीम तैयार की गई। टीम का नेतृत्व करने का जिम्मा मिला कैप्टन मनमोहन सिंह कोहली को।

उस वक्त इस मशीन को दुनिया का सबसे बड़ा मिशन बताया गया था। इसकी वजह थी 200 लोगों की टीम। इसमें खर्च भी बहुत हुआ था। कहते हैं कि टीम में शामिल लोगों को सीआईए की तरफ से वे जैकेट मुहैया कराए गए थे, जिनका इस्तेमाल अन्तरिक्ष में जाते वक्त वैज्ञानिक किया करते हैं।

बहरहाल, 18 अक्टूबर 1965 को सभी जरूरी उपकरण लेकर टीम 7239 मीटर (कैम्प-4) तक पहुँच गई। वहाँ से नंदा देवी चोटी महज 577 मीटर दूर थी।

टीम के सदस्य चोटी को देख पा रहे थे और मिशन को लगभग पूरा मान चुके थे। लेकिन ऐन वक्त बर्फानी तूफान आ गया और मौसम बेहद खराब हो गया। मौसम इतना खराब था कि अगर वे वहाँ थोड़ी देर भी रुक जाते, तो हिम समाधि ले लेते।

नतीजतन, कोहली ने मिशन को स्थगित कर देने की घोषणा की और सारे उपकरण वहीं छोड़कर लौट जाने को कहा। पूरी टीम सही-सलामत लौट आई।

करीब छह महीने तक इन्तजार करने के बाद मई 1966 में अधूरा मिशन पूरा करने के लिये टीम के कुछ सदस्य और एक अमरिकी वैज्ञानिक ने दोबारा वहाँ जाने का फैसला लिया।

हालांकि, तब तक टीम के सदस्यों और खुद कोहली इस नतीजे पर पहुँच चुके थे कि नंदा देवी की चोटी पर पहुँचना मुश्किल है और खुफिया मशीन लगाने की ही बात है, तो उसे किसी छोटे पर्वत पर भी लगाई जा सकती है।

आखिर में यह तय किया गया कि नंदा देवी से उपकरण उतारे जाएँगे और उन्हें पास के 6861 मीटर ऊँचे पर्वत नंदा कोट पर स्थापित किया जाएगा।

उपकरण वापस लाने के लिये टीम नंदा देवी पर्वत के कैम्प-4 पर पहुँचे, तो उनके पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई। वहाँ न तो एंटीना था, न जेनरेटर और न ही प्लूटोनियम से भरे कैप्सुल। था तो बस बर्फ।

हैरानी की बात ये थी कि जिस नंदा देवी पर्वत शृंखला में प्लूटोनियम कैप्सुल गुम हुआ, वहीं ऋषि गंगा का उद्गम स्थल है, जो आगे जाकर गंगा में मिल जाती है।

गंगा भारत की जीवनरेखा है। ऐसे में यह खयाल ही रोंगटे खड़े कर देता है कि अगर प्लूटोनियम गंगा नदी में मिल जाएगा, तो क्या होगा।

हालांकि, मानने वाले इस खयाल को अव्यावहारिक या काल्पनिक मान सकते हैं। लेकिन, सच यही है कि वे कैप्सुल नंदा देवी में ही कहीं दबे पड़े हैं और किसी भी समय बाहर निकलकर करोड़ों लोगों की जिन्दगी तबाह कर सकते हैं।

इस डिवाइस की खोजबीन के लिए कई बार प्रयास किये गए लेकिन सभी प्रयास विफल रहे।


उत्तरापीडिया के अपडेट पाने के लिए फ़ेसबुक पेज से जुड़ें।



Related Articles

Leave a Comment

-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.