जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं से उत्तराखंड ही नहीं पूरा देश चिंतित है। आए दिन भू-धंसाव की डरा देने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं। जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं से हड़कंप और भय का माहौल है। करीब 603 घरों में दरारें आ चुकी हैं और जोशीमठ के लोग डरे हुए हैं। इस मामले को लेकर हिमालयन-भू विज्ञान पर 35 साल से ज्यादा समय से शोध कर रहे एचएनबी गढ़वाल विश्विद्यालय के प्रोफेसर यशपाल सुंदरियाल ने कई अहम बातें बताई हैं।
भूस्खलन के मलबे पर बने हैं गांव और शहर
प्रोफेसर यशपाल बताते हैं, “पहाड़ के ज्यादातर गांव और शहर भूस्खलन के मलबे या स्लोप पर बने हैं. जिस तेजी से जोशीमठ में विकास कार्य हो रहे हैं वो कई सालों से समस्या का कारण बने हुए हैं। जोशीमठ की सतह में चट्टान कम और मिट्टी ज्यादा है। इसके साथ ही खराब पानी प्रबंधन और सीवर प्रबंधन की वजह से होने वाले पानी के रिसाव के कारण जोशीमठ की नींव कमजोर हो गई है।
नींव में दरारें आना स्वाभाविक है
प्रोफेसर यशपाल आगे कहते हैं, “एनटीपीसी के विष्णु गरुड़ प्रोजेक्ट में टनल में विस्फोट किए जा रहे थे। ये विस्फोट इतने शक्तिशाली हैं कि आर्टिफिशियल भूकंप पैदा कर रहे हैं। हिलाजा एक स्लोप पर बसे शहर की नींव में दरार आएंगी और स्वाभाविक है कि जमीन धंसेगी। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्र स्लोप या भूस्खलन के मलबे पर बसे हैं।”
भू-धंसाव के संकट का सामना कर रहे जोशीमठ में आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी स्थित नृसिंह मंदिर परिसर में दरारें आ गई हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद शंकराचार्य की गद्दी नृसिंह मंदिर में विराजमान रहती है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को नृसिंह मंदिर पहुंचकर भगवान के दर्शन किए और मंदिर परिसर में आ रही दरारों का भी निरीक्षण किया।
हालात का जायजा लेने के बाद सीएम ने कहा कि जोशीमठ के धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सबसे पुराने ज्योतिर्मठ की सुरक्षा के लिए सरकार हरसंभव कदम उठाएगी। इस समय हम सबके सामने सबसे पुराने ज्योतिर्मठ को प्राकृतिक आपदा से बचाने की बड़ी चुनौती है। देहरादून पहुंचकर सीएम सीधे सचिवालय स्थित आपदा प्रबंधन नियंत्रण कक्ष गए, जहां उन्होंने अधिकारियों की बैठक ली, जिसमें जोशीमठ को भूस्खलन व भू-धंसाव क्षेत्र घोषित किया गया।