Mussoorie, known as the Queen of the Hills, is one of the most popular hill stations in the country. In 1827, a Britisher named Captain Frederick Young, accompanied by an official named FJ Shore, ventured up the hill from the Doon valley and discovered a ridge that provided breathtaking views and a pleasant climate. This visit served as the foundation for the development of this magnificent hill station.
Mussoorie is a captivating paradise for leisure travelers and honeymooners, making it an ideal summer resort. It is situated on a 15-kilometer-long horseshoe ridge, with the majestic Himalayas serving as a backdrop, and stands at an elevation of 2,000 meters above sea level. From this elevated position, visitors can enjoy scenic views of the Himalayan peaks in Western Garhwal.
Over the years, Mussoorie has become home to many famous personalities, the most notable being authors Ruskin Bond and Bill Aitken. Filmstar Victor Banerjee resides in Mussoorie, and the late filmstar Tom Alter was born and raised here. In the 1960s, filmstar Prem Nath had his house in Mussoorie, and Dev Anand’s son studied at Woodstock school. Cricketers Sachin Tendulkar and Mahendra Singh Dhoni are frequent visitors to this hill resort.
The best time to visit Mussoorie is during the summer season when it provides relief from the scorching heat. However, if you prefer a secluded holiday experience, visiting during the winter season will allow you to witness the beauty of snowfall.
How to reach
Mussoorie can be reached by air, train, and bus. Here are the details on each mode of transportation:
By Air: The nearest airport to Mussoorie is the Jolly Grant Airport, located in Dehradun, which is approximately 54 kilometers away. From the airport, you can hire a taxi or take a shared cab to reach Mussoorie. The drive from the airport to Mussoorie takes around 1.5 to 2 hours, depending on the traffic conditions.
By Train: The nearest railway station to Mussoorie is the Dehradun Railway Station, which is well-connected to major cities in India. From the railway station, you can hire a taxi or take a bus to Mussoorie. The distance between Dehradun Railway Station and Mussoorie is approximately 34 kilometers, and the travel time is around 1 to 1.5 hours, depending on the traffic and road conditions.
By Bus: Mussoorie is well-connected by road, and you can find regular bus services from nearby cities and towns. There are both government and private buses that operate on this route. You can take a bus from cities like Dehradun, Delhi, Haridwar, Rishikesh, and other neighboring towns to reach Mussoorie. The journey time and fare may vary depending on the distance and type of bus you choose.
It’s important to check the availability of flights, train schedules, and bus timings in advance, especially during peak tourist seasons. Also, consider the weather conditions and road conditions while planning your travel to Mussoorie.
Main attractions:
Mussoorie offers a range of attractions that cater to the interests of different travelers. Here are some of the main attractions in Mussoorie:
- Gun Hill: One of the highest peaks in Mussoorie, Gun Hill offers panoramic views of the Himalayas and the town below. You can take a cable car ride to the top and enjoy the breathtaking vistas.
- Kempty Falls: Located about 15 kilometers from Mussoorie, Kempty Falls is a popular tourist spot. It is a cascading waterfall surrounded by lush greenery, and visitors can take a dip in the cool waters or simply enjoy the scenic beauty.
- Lal Tibba: Lal Tibba is the highest point in Mussoorie and offers stunning views of the Himalayas. You can also spot famous landmarks like Badrinath and Kedarnath on a clear day. There is a telescope available for a closer view of the surroundings.
- Mall Road: A bustling street lined with shops, cafes, and restaurants, Mall Road is a must-visit in Mussoorie. You can stroll along the road, indulge in shopping, try local delicacies, and soak in the lively atmosphere.
- Cloud’s End: Situated at the western end of Mussoorie, Cloud’s End is a picturesque spot surrounded by thick forests. It offers a tranquil environment and is perfect for nature walks and picnics.
- Camel’s Back Road: This road derives its name from the natural rock formation that resembles a camel’s hump. It is a peaceful walking trail with breathtaking views of the mountains and valleys.
- Mussoorie Lake: Located about 6 kilometers from the town, Mussoorie Lake is a man-made lake surrounded by lush hills. You can enjoy boating, paddle boating, and nature walks in the serene surroundings.
- Jharipani Falls: A beautiful waterfall nestled amidst dense forests, Jharipani Falls is a popular spot for nature lovers and adventure enthusiasts. The cascading water and serene ambiance make it a great place for a day trip.
- Benog Wildlife Sanctuary: Situated on the outskirts of Mussoorie, this sanctuary is home to a variety of flora and fauna. It offers opportunities for birdwatching, nature walks, and enjoying the tranquility of the forest.
- Nag Tibba Trek: For adventure enthusiasts, Nag Tibba Trek is a thrilling experience. It is a moderate trek that takes you to the Nag Tibba peak, offering stunning views of the snow-covered Himalayas.
These are just a few of the many attractions that Mussoorie has to offer. Whether you are seeking natural beauty, adventure, or a leisurely vacation, Mussoorie has something for everyone.
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मसूरी, जिसे “पहाड़ों के रानी” नाम से भी जाना जाता है, क्वीन ऑफ हिल्स मसूरी किसी रानी की तरह सजी सवरी। यों तो शिमला, ऊटी, दार्जीलिंग आदि हिल स्टेशनस भी अपनी अद्वितीय व अतुलनीय सुंदरता के कारण “क्वीन ऑफ हिल्स” कहे जाते है। और इस लेख में उत्तराखंड के – “क्वीन ऑफ़ हिल्स” कहे जाने वाले डेस्टिनेशन मसूरी के कुछ टॉप एट्रैक्शंस के बारे में जानेंगे और देखेंगे क्या बातें मसूरी को बनाती है ख़ास!
समुद्र तल से लगभग 6,500 फीट (2,005 metre) की ऊँचाई पर – मसुरी भारत के उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून के समीप बसा के खूबसूरत हिल स्टेशन है। जो अपने सुरम्य दृश्यों, हरे-भरे जंगलों, औपनिवेशिक युग की वास्तुकला के साथ यहाँ के सुंदर landscapes के लिए जाना जाता है। नैसर्गिक ख़ूबसूरती और समुद्र तल से ऊँचाई की तुलना करें उत्तराखण्ड के एक और प्रसिद्ध आकर्षण नैनीताल से और हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से मसूरी की ऊँचाई लगभग समान है, इन स्थानों की जानकारी देते वीडियो भी PopcornTrip में देखे जा सकते है।
मसूरी को इसका नाम, एक समय या बहुतायत में उगने वाली मंसूर नाम की झाड़ियों से मिला। मंसूर झाड़ियों से मिल नाम मंसूरी, नाम समय के साथ बदल कर मसूरी हो गया।
मसूरी का सबसे बड़ा आकर्षण, मसूरी मॉल रोड जिसका एक सिरा Picture Palace चौक और दूसरा सिरा लाइब्रेरी चौक, जिसकी दूरी लगभग 2 किलोमीटर है। यही रोड है – जहां पैदल अथवा रिक्शे में बैठ कर घूमना समय मे पीछे ले जाता है। और दिखते है आधुनिक इमारतों के साथ कोलोनेयल भवन भी देखे जा सकते हैं।
मॉल रोड में चहलक़दमी, मसूरी आने वाले पर्यटकों की पसंदीदा गतिविधि है। इसे मॉल रोड के किसी भी सिरे यानी पिक्चर पैलेस चौक या लाइब्रेरी चौक से शुरू कर दूसरे सिरे पर पूर्ण किया जा सकता है। लाइब्रेरी चौक से लगभग चार – पाँच सौ मीटर की दूरी पर इस पॉइंट से कैमल्स बैक के लिए मार्ग है। मॉल रोड में घूमते हुए दिखा गन हिल के चढ़ाई की और जाता मार्ग। यहाँ टैक्सी, रोपवे या पैदल किसी भी तरीके से पहुँचा जा सकता है। हमने पैदल पहुँचने का विकल्प चुना। लगभग 500 मीटर के पैदल मार्ग में चढ़ाई चढ़ने के लिए फेफड़ों की परीक्षा हो जाती है, और लगभग 30 मिनट में धीमे कदमों से चलते हुए हम पहुँचे गन हिल।
मार्ग में नीचे की और देख मसूरी का बर्ड आई व्यू दिखता है। गन हिल मसूरी का दूसरा सबसे ऊँचा पॉइंट है। यहाँ मंदिर भी है, और यहाँ एक वाटर टैंक भी है, जिससे मसूरी को पानी की सप्लाई होती है। यहाँ amusement पार्क, फ़ास्ट फ़ूड स्टाल्स के साथ बच्चों के मनोरजन के लिए कुछ हाँटेड हाउस/ मैजिक शॉप भी है। इसका नाम गन हिल पॉइंट होने के कारण शायद यहाँ – ब्रिटिशर्स यहाँ शूटिंग की प्रैक्टिस करते होंगे।
इंटरनेट सर्च करने पर जो वजह पढ़ने को मिली – वो मनोरजंक और काल्पनिक ज़्यादा और वास्तविक कम लगती है, जैसे एक कहानी कहती है – ब्रिटिश समय में यहाँ समय बताने के ब्रिटिशर्स तोप से हर घंटे बाद गोले दागते थे, जितना बज रहा होता था, उतने गोले! अब सोचने की बात है कि क्या वास्तव में इतना खर्च और ऐसे संसाधनों का दुरुपयोग होता होगा उस समय और वह भी इतनी शांत प्रकृति से घिरी जगह में!
हमारा ख़याल है कि – या तो टीपू सुल्तान के हथियारों का ज़ख़ीरा उनके हाथ लग गया होगा, यह तोप के इन गोलों की expiry डेट नज़दीक होगी। वैसे हर घंटे की जानकारी उन्हें देनी ही थी तो ढोल, बिगुल या कोई बड़ा घंटा बजाकर भी कर भी तो बता सकते थे!
गन हिल का यह नाम होने कि एक दिलचस्प कहानी और जानने को मिली। अंग्रेज अधिकारी अपनी पत्नियों के साथ दोपहर 12:00 बजे घूमने के लिए निकलते थे, और वे लोग नहीं चाहते थे कि उनकी पत्नियों को स्थानीय लोग देखे, जिसकी वजह से वे लोग दोपहर 12:00 बजे तोप से गोले दागते थे और लोग स्थानीय लोग अपने घरों में चले जाते।
यह भी विचित्र बात लगती है – मसूरी जैसी रमणीय जगह में दोपहर 12 बजे कौन सा घूमने का समय हुआ भला, क्या सुबह – शाम नहीं घूमती थी वो? वो कोई देख भी ले, तो उससे क्या होगा, तब तो मोबाइल कैमरा और सीसीटीवी जैसी चीजें तो थी नहीं जिससे प्राइवेसी में दखल हो। गन हिल मसूरी की दूसरी सबसे ऊँची जगह है, यहाँ की कोई भी गतिविधि मसूरी टाउन से नहीं देखी जा सकता, उसके लिए इससे भी ऊँची जगह – लाल टिब्बा जाना होगा, जो मसूरी का सबसे ऊँचा पॉइंट है। लाल टिब्बा के बारे आगे जानेंगे।
Gun Hill पहाड़ी में से उतर कर, तस्वीरें इकट्ठी करते हुए पहुँचे माल रोड के दूसरे सिरे पर पहुँचे, लाइब्रेरी चौक पर मसूरी का सबसे चहल पहल पॉइंट। इस चौक का नाम यहाँ स्थित ब्रिटिश क़ालीन स्थापित लाइब्रेरी के कारण पड़ा, और यह भारत के सबसे पुराने पुस्तकालयों में से एक है। मसूरी पब्लिक लाइब्रेरी 1843 में आरंभ हुआ, इसमें पुस्तकों का एक विशाल संग्रह है। यह लोकेशन अद्भुत है, और मसूरी के केंद्र में स्थित है, यहाँ से एक मार्ग मॉल रोड को और दूसरा यहाँ के एक अन्य आकर्षण कंपनी बाग और केम्प्टी फॉल्स और उससे आगे यमुनोत्री आदि आदि स्थानों के भी जाता है। कंपनी बाग और kampti फॉल को भी इस लेख में आगे देखेंगे।
मसूरी की मॉल रोड में घूमना, विशेष रूप से शाम के समय, यहाँ के विजिट को अविस्मरिणीय बनाने के लिए पर्याप्त है।
लाइब्रेरी चौक में लगी benches बैठ कर, अगर वो ख़ाली हो तो, नहीं तो खड़े रहकर देखते हुए भी यहाँ से मसूरी की घाटियों के मनोरम दृश्यों के साथ देहरादून नगर को देख अपनी मसूरी यात्रा में कुछ और बेहतरीन यादगार पल जोड़ सकते हैं।
लाइब्रेरी चौक में कई दुकानें और रेस्तरां भी हैं, जो जहां लोकल/ और मल्टी cusine फ़ूड की अनेकों varities का स्वाद लिया जा सकता है।यह क्षेत्र चाट, मोमोज जैसे स्ट्रीट फूड के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जो पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हैं।
लाइब्रेरी चौक से मॉल रोड होते हुए इस सड़क से पिक्चर पैलेस चौक तक पैदल चल मसूरी को महसूस करना, मसूरी ट्रिप की एक must do एक्टिविटी कही जा सकती है। मसूरी में लाइब्रेरी चौक से पिक्चर पैलेस चौक तक की पैदल दूरी बिना रुके तय करने लगभग 25-30 मिनट लगते हैं।
माल रोड, शाम के समय केवल पैदल चलने के लिए ही खुली रहती है, मॉल रोड पर चलते हुए सड़क के किनारे सजी हुई दुकानें, आकर्षक रेस्तरां और रोशनी से चमचमाते होटल दिखते हैं। गर्मियों और वीकेंड और लौंग हॉलिडे के समय तो यहाँ अच्छी ख़ासी संख्या में लोग दिखते है, और लोगों की चहलक़दमी और उत्साह को देखते हुए माल रोड में सैर करने का आनंद सभी को एनर्जेटिक कर देता है।
लगभग 5-7 मिनट चलने के बाद यहाँ पहुँच एक बड़ा घंटाघर दिखाई देता है। इस जंक्शन को गांधी चौक के नाम से जाना जाता है, और यह स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय स्पॉट है।
गांधी चौक से, माल रोड में घूमते हुए कई दुकानों मे स्थानीय प्रतीक, कपड़े और स्थानीय हस्तशिल्प उपलब्ध मिल जाते है, यहाँ चलते हुए घाटी और आसपास के पहाड़ों के शानदार नज़ारों का आनंद भी ले सकते है। लाइब्रेरी चौक से लगभग 2 किमी लंबी माल रोड मे चलकर दूसरे छोर पिक्चर पैलेस चौक पहुंच जाते है। यह नाम यहाँ के एक सिनेमा हॉल के नाम पर रखा गया है, अब जो एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बन गया है।
यहाँ तिब्बती मार्केट भी है, जहां गर्म कपड़ों के साथ विभिन्न हैंडमेड सामान बिक्री के लिए मौजूद है।
गन हिल
उत्तराखंड के मसूरी में स्थित एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। यहां कुछ चीजें हैं जो इसे खास बनाती हैं। गन हिल मसूरी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है, और यह आसपास के पहाड़ों और घाटियों का शानदार मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। पर्यटक गन हिल के ऊपर से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों, मसूरी शहर और आसपास के जंगलों को देख सकते हैं।
रोपवे की सवारी: माल रोड से रोपवे की सवारी करना गन हिल तक पहुंचने के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है। रोपवे की सवारी एक रोमांचकारी अनुभव है और शहर और आसपास के पहाड़ों के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। सवारी में लगभग 5-10 मिनट लगते हैं, और रोपवे स्टेशन पर टिकट खरीदे जा सकते हैं।
ऐतिहासिक महत्व: गन हिल का एक समृद्ध इतिहास है और औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों द्वारा एक खोज बिंदु के रूप में इस्तेमाल किया गया था। पहाड़ी का इस्तेमाल उस समय तोप दागने के लिए भी किया जाता था, इसी वजह से इसे यह नाम मिला।
ट्रेकिंग: गन हिल तक पहुँचने का दूसरा तरीका ट्रेकिंग है। कई ट्रेकिंग मार्ग हैं जो गन हिल की ओर ले जाते हैं, और सबसे लोकप्रिय मार्ग माल रोड से शुरू होता है। ट्रेक लगभग 1.5 किमी लंबा है और आपकी गति के आधार पर लगभग 30-45 मिनट लगते हैं। ट्रेक मध्यम कठिन है और इसमें सीढ़ियाँ चढ़ना शामिल है, इसलिए यह सभी के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता है।
पिक्चर पैलेस चौक से लंढौर बाजार या अन्य आस-पास के स्थलों पर पैदल टहलने जा सकते है या मसूरी से आसपास घूमने के लिए टैक्सी भी ले सकते हैं।
कंपनी गार्डन
पहले दिन माल रोड मे घूम कर अगले दिन हम निकले सबसे पहले कंपनी गार्डन की सैर करने जो लाइब्रेरी चौक से लगभग 2 से 3 किलोमीटर दूर कंपनी गार्डन मसूरी का एक अन्य आकर्षण है। यहाँ पैदल, अपने वाहन या स्थानीय टैक्सी द्वारा भी पंहुचा जा सकता है।
यदि पैदल चलना पसंद करते हैं, और ज्यादा जगह एक दिन मे कवर नहीं करना चाहते तो तो लाइब्रेरी चौक से कंपनी गार्डन तक पैदल भी जा सकते हैं। यह सैर मसूरी की सुंदरता के करीब ले जाएगी।
इस उद्यान की स्थापना 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा की गई थी, और शुरुआत में इसे ब्रिटिश अधिकारियों और उनके परिवारों के लिए एक पिकनिक स्थल माना जाता था। समय के साथ, यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन गया है, जो अपनी हरी-भरी हरियाली, सुंदर फूलों और मनोरंजन के विभिन्न विकल्पों के लिए जाना जाता है।
ये उद्यान लगभग 22 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है और आगंतुकों के आनंद लेने के लिए इसमें कई आकर्षण हैं। कंपनी गार्डन के कुछ लोकप्रिय आकर्षणों में एक छोटी झील, एक झरना, एक नर्सरी, एक बच्चों का मनोरंजन पार्क और एक फूड कोर्ट शामिल हैं। यहाँ एक वॉकिंग ट्रैक भी है जो बगीचे से होकर गुजरता है, जो इसे इत्मीनान से टहलने के लिए एक शानदार जगह बनाता है। कंपनी गार्डन के प्रमुख आकर्षणों में से एक वार्षिक फ्लावर शो है, जो गर्मियों के महीनों के दौरान आयोजित किया जाता है। फ्लावर शो में गुलाब, गेंदे और डहलिया सहित फूलों की विभिन्न किस्मों का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। यह पूरे भारत से पर्यटकों को आकर्षित करता है और गर्मियों के दौरान मसूरी आने वाले किसी भी व्यक्ति को इसे अवश्य देखना चाहिए। कंपनी गार्डन में फूड कोर्ट स्थानीय व्यंजनों को स्वाद लिया जा सकता हैं, यहाँ मोमोज और चाट जैसे कई प्रकार के स्नैक्स आदि उपलब्ध है।
कंपनी गार्डन स्थानीय हस्तशिल्प की खरीदारी के लिए भी एक अच्छी जगह है। बगीचे के भीतर कई दुकानें स्थित हैं जहां स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए ऊनी कपड़े, गहने और सजावटी सामान खरीदे जा सकते है।
कंपनी गार्डन मसूरी की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने और आराम करने के लिए कुछ घंटे बिताने के लिए एक अच्छी जगह है। चाहे आप एक पिकनिक स्थल की तलाश कर रहे हों, अपने बच्चों को कुछ मौज-मस्ती के लिए ले जाने की जगह, या बस आराम करने और दृश्यों का आनंद लेने के लिए, कंपनी गार्डन में सभी के लिए कुछ न कुछ है।
दलाई हिल्स
कंपनी गार्डन से मसूरी की ओर आते हुए लगभग आधा किलोमीटर बढ़ नीचे लेफ्ट की ओर जाते मार्ग से लगभग 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित है मसूरी का एक और मसूरी का शांति और सुकून के सुंदर पल ध्यान करते हुए या विचार शून्य होकर बिताने के लिए – एक विशेष स्थान है – बौद्ध मंदिर और दलाई हिल्स।
प्रकृति की गोद में बसा दलाई हिल्स मसूरी हिल के लिए मसूरी से केंपटी गार्डन जाते हुए रास्ते से एक अलग मार्ग है। यहाँ सन् 1960 में स्थापित केंद्रीय तिब्बती स्कूल है। और दलाई हिल्स से पूर्व, बौद्ध धर्म का प्रार्थना स्थल – बौद्ध स्तूप भी स्थित है। फिर यहाँ से कुछ आगे चलकर एक ऊँचे टीले जिसे दलाई हिल्स के नाम से जाना जाता है, पर स्थित भगवान बुद्ध की दिव्य प्रतिमा।
पहाड़ी पर जब हम पहुचे तेज हवा चल रही थी, जिससे लहराते हुए यहाँ ये बुद्ध धर्म से जुड़ी झंडियाँ और पटकाएं और भी मनमोहक लगती हैं, दलाई हिल्स से आस पास की घाटियों और पहाड़ियों का बड़ा विहंगम और सुंदर दृश्य नज़र आता है। पहाड़ी की इस चोटी से लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी का परिसर दिखाई देता है। जो देश पर के आईएएस, आईपीएस जैसे अधिकारी प्रशिक्षित होते है। इसी के समीप एक तिब्बती/ बौद्ध मंदिर ( शेडुप चोफेलिंग मंदिर ) भी स्थित है।
कैम्प्टी फॉल
मसूरी से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मसूरी – चकराता मार्ग में स्थित है kempty fall जहां लगभग 40 फीट की ऊँचाई से गिरता झरना, जो Visitors का पसंदीदा सैरगाह है, गर्मियों के सीजन मे यहाँ बड़ी संख्या मे सैलानी पहुचते है। यहाँ अपने वाहन, टैक्सी, रोपवे या टू व्हीलर रेंट पर ले कर भी पहुँच सकते हैं।
लंढौर
लंढौर प्रकृति प्रेमियों के लिए भी एक पोपुलर डेस्टिनेशन है। लंढौर प्रकृति प्रेमियों के लिए भी एक पोपुलर डेस्टिनेशन है।वापसी मे हम निकले landhor के लिए, पिक्चर palace चौक से आगे बढ़कर, landhor मसूरी से लगा हुआ है, landhaur बाजार से ऊपर चढ़ाई मे जाते हुए प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया जा सकता है, रास्ती के दोनों और बाँज, बुरांश आदि के हरे भरे जंगलों से से घिरा हुआ क्षेत्र है, यहाँ से हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने के लिए एक आदर्श स्थान कह सकते है। ।
लंढौर औपनिवेशिक युग के दौरान यह एक प्रमुख ब्रिटिश छावनी थी। उस समय की कई पुरानी इमारतें और संरचनाएँ आज भी खड़ी हैं, जिनमें लंढौर बाज़ार, सेंट पॉल चर्च और प्रसिद्ध लंढौर क्लॉक टॉवर शामिल हैं।
साहित्यिक संबंध: लंढौर वर्षों से कई प्रसिद्ध लेखकों और कलाकारों का घर रहा है, जिसमें प्रसिद्ध लेखक रस्किन बॉन्ड भी शामिल हैं, जो कई वर्षों से वहां रहे। इस शहर ने कई लेखकों और कवियों को प्रेरित किया है, और इसके शांतिपूर्ण, शांत परिवेश ने दुनिया भर के रचनात्मक लोगों को आकर्षित करना जारी रखा है।
कुल मिलाकर, लंढौर की प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व, साहित्यिक संबंध, और पाक प्रसन्नता इसे पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए समान रूप से लोकप्रिय गंतव्य बनाती है। मसूरी से लंढौर पहुंचने के सबसे आसान तरीकों में से एक टैक्सी किराए पर ले कर आ सकते हैं। landhor की हाइट मे चार दुकान लंढौर में एक लोकप्रिय लैंडमार्क है। जहां से आप पैदल लंढौर घूम सकते हैं।
इनके अतिरिक्त पैदल चलकर भी, यदि आप पैदल चलना पसंद करते हैं और पैदल मसूरी और लंढौर घूमना चाहते हैं, तो आप मसूरी से लंढौर तक पैदल भी जा सकते हैं। सैर आपको सुंदर मार्गों से ले जाएगी और काफी आनंददायक है। मसूरी से, पिक्चर पैलेस चौक के समीप से लंढौर के मुख्य लैंडमार्क लंधौर के मध्य में स्थित चार दुकान तक नहीं पहुँच जाते, तब तक इस सड़क पर चलते रहें।
आप मसूरी से टैक्सी या कार लेकर भी गन हिल पहुंच सकते हैं। मसूरी में टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं, और आप मॉल रोड या लाइब्रेरी चौक से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं। ट्रैफिक के आधार पर गन हिल तक ड्राइव करने में लगभग 10-15 मिनट लगते हैं। कुल मिलाकर, गन हिल तक पहुँचना काफी आसान है, और आप परिवहन का वह तरीका चुन सकते हैं जो आपको सबसे अच्छा लगे। रोपवे की सवारी सबसे लोकप्रिय विकल्प है और मसूरी की यात्रा के दौरान इसे अवश्य करना चाहिए।
हालांकि इन पहाड़ियों और प्रकृति पर हमारा कुछ ज्यादा दवाब रहता हैं। लॉंग हॉलिडेज़ और गर्मियों मे पैर रखने की जगह नहीं मिलती, इसलिए जो पर्यटक आते है उनमे से ज्यादातर को पहाड़ियों मे रहने का वो आनंद नहीं मिल पाता, जो कि मिलन चाहिए। वैसे जब हवाई जहाज, रेल, बस और कार ही नहीं बाइक तक मे अधिकतम बैठने वालों की सीमा तय होती है लेकिन शहर मे एक समय में आने वालों की नहीं। अगर शहर का भी एक पोर्टल हो, जितने भी लोग शहर में आना चाहें वो अड्वान्स मे सूचना दें, और जितने लोग एक बार मे शहर मे या सकें, उतने ही आए। उसके बाद उस दिन के लिए एंट्री बंद हो जाए। और जिनको अनुमति न मिले उन्हे उन्हे ऐसे नजदीकी हिल स्टेशन मे जाने का सुझाव दिया जाए जहां उस दिन अपेक्षाकृत कम दवाब हो। जिससे पर्यटकों को घंटों सड़क पर कार मे बैठ कर जाम में परेशान न होना पड़े, न होटल dhudhne में दिक्कत हो। और जो यहाँ आयें उनका अनुभव भी यादगार रहे। और आस पास के लेस known places मे भी पर्यटन फले फुले।
मसूरी में घूमने के कुछ बेहतरीन स्थानों में शामिल हैं:
केम्प्टी फॉल्स: यह खूबसूरत झरना मसूरी के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है और हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है।
गन हिल: यह दृष्टिकोण आसपास के पहाड़ों और घाटियों के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है, और एक रोपवे द्वारा पहुँचा जा सकता है।
लाल टिब्बा: यह दृश्य हिमालय श्रृंखला का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है, और सूर्यास्त और सूर्योदय के लिए एक शानदार स्थान है।
ज्वालाजी मंदिर: यह मंदिर हिंदू देवी दुर्गा को समर्पित है और बेनोग पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
बेनोग वन्यजीव अभयारण्य: यह अभयारण्य विभिन्न प्रकार के दुर्लभ और विदेशी पक्षियों और जानवरों का घर है, और प्रकृति और वन्यजीव उत्साही लोगों के लिए एक शानदार जगह है।
मसूरी झील: यह मानव निर्मित झील आसपास के पहाड़ों का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है और नौका विहार और पिकनिक के लिए एक लोकप्रिय स्थान है।
कंपनी गार्डन: यह उद्यान इत्मीनान से टहलने के लिए एक आदर्श स्थान है और हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है।
लंढौर: यह मसूरी के बाहरी इलाके में स्थित एक विचित्र और शांतिपूर्ण शहर है, जो अपने औपनिवेशिक युग की वास्तुकला और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।
कैमल्स बैक रोड: यह सड़क आसपास के पहाड़ों का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है और पैदल चलने, साइकिल चलाने और घुड़सवारी के लिए एक लोकप्रिय स्थान है।क्राइस्ट चर्च: यह मसूरी के सबसे पुराने चर्चों में से एक है और अपनी गॉथिक वास्तुकला और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। ये मसूरी की पेशकश करने वाली कई जगहों में से कुछ हैं। चाहे आप रोमांच, प्राकृतिक सुंदरता या सांस्कृतिक विरासत की तलाश कर रहे हों, इस हिल स्टेशन में सभी के लिए कुछ न कुछ है।
मसूरी के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य हैं:
- मसूरी – 1820 में अंग्रेजों द्वारा अपनी सैन्य छावनी के लिए बनाया। एक आयरिश व्यक्ति कैप्टन यंग इस जगह की सुंदरता से इतने मंत्रमुग्ध थे कि उन्होंने वहां अपना घर बनाने का फैसला किया, Mullingar Mansion जिसे मुलिंगर हाउस के नाम से भी जाना जाता है, 1825 में कैप्टन यंग द्वारा बनाया गया था, जो मसूरी में बसने वाले पहले यूरोपीय लोगों में से एक थे।
- यह हवेली अब एक होटल है और एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। जिसके बाद मसुरी धीरे – 2 हिल स्टेशन के रूप में विकसित होकर गर्मियों के महीनों में ब्रिटीशर्स के लिए पोपुलर हॉलिडे destination बन गया।
- माना जाता है कि “मसूरी” नाम “मसूरी” नामक पौधे से लिया गया है जो इस क्षेत्र में बहुतायत में मिलती थी।
- मसूरी समुद्र तल से 6,580 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, और हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ है।
- मसूरी की एक विशेषता है “कैमल्स बैक रोड” के रूप में जाना जाता है और यह 3 किमी लंबा है जो ऊंट के हम्प जैसा दिखता है।
- भारत में पहला तिब्बती स्कूल 1960 के दशक में मसूरी में स्थापित किया गया था।
मसूरी का एक वाइब्रन्ट लोकल कल्चर देखा जा सकता है, और यह अपने पारंपरिक कुमाऊँनी और गढ़वाली व्यंजनों के साथ-साथ अपने हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है। - मसूरी के मुख्य आकर्षणों में से एक केम्प्टी फॉल्स है, जो पिकनिक और तैराकी के लिए एक लोकप्रिय स्पॉट है। दस्तावजों के अनुसार इस falls का पता 1835 में जॉन मेकिनन नामक एक ब्रिटिश अधिकारी ने की थी।
- मशहूर लेखक रस्किन बांड 1663 से मसूरी में रह रहे हैं। उन्हें इस हिल स्टेशन में अपनी कई किताबें लिखने के लिए जाना जाता है।
- मसूरी की एक अनूठी स्थापत्य शैली है जो ब्रिटिश औपनिवेशिक और भारतीय शैलियों का मिश्रण है। मसूरी की कुछ सबसे उल्लेखनीय इमारतों में क्राइस्ट चर्च, सेवॉय होटल, वुडस्टॉक स्कूल (1854), वेनबर्ग एलन स्कूल (1888), ओक ग्रोव स्कूल (1888) और मसूरी लाइब्रेरी शामिल हैं।
- मसूरी भारत में सबसे पुरानी शराब की भठ्ठी, मसूरी शराब की भठ्ठी का घर है। इसकी स्थापना 1850 में एचजी मीकिन नामक एक अंग्रेज ने की थी।
- मसूरी में कई हॉलिवुड और बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है।
- मसूरी पुस्तकालय 1843 में बनाया गया था और माल रोड पर स्थित है। यह भारत के सबसे पुराने पुस्तकालयों में से एक है और इसमें दुर्लभ और प्राचीन पुस्तकों सहित पुस्तकों का एक बड़ा संग्रह है।
- मसूरी में सबसे ऊंचा पॉइंट लाल टिब्बा है, जहां से हिमालय श्रृंखला के सुंदर दृश्य नजर आते है।
- लंढौर क्लॉक टॉवर 1911 में बनाया गया था और यह लंढौर के केंद्र में स्थित है। यह शहर का एक मील का पत्थर है और इसे अक्सर मीटिंग पॉइंट के रूप में उपयोग किया जाता है।
- Lal Bahadur Shastri National Academy of Administration यह संस्थान भारत में सिवल सर्वेन्टस के लिए प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान है। यह शहर के सामने एक सुरम्य पहाड़ी पर स्थित है
- मसूरी अपने ट्रेकिंग मार्गों के लिए भी जाना जाता है, जिसमें नाग टिब्बा चोटी का ट्रेक भी शामिल है, जो साहसिक उत्साही लोगों के लिए एक लोकप्रिय मार्ग है।
- मसूरी में मौसम की एक अनोखी घटना होती है जिसे ‘मसूरी मिस्ट’ के नाम से जाना जाता है। यह धुंध हवा में पानी की बूंदों के संघनन condensation के कारण होती है और विशेष रूप से मानसून के मौसम में दिखाई देती है।
Few Attractions of Mussoorie
- Kempty Falls: This beautiful waterfall is one of the most popular tourist spots in Mussoorie and is surrounded by lush green forests and mountains.
- Gun Hill: This viewpoint offers panoramic views of the surrounding mountains and valleys, and is accessible by a ropeway.
- Lal Tibba: This viewpoint offers a panoramic view of the Himalayan range, and is a great spot for sunset and sunrise.
- Jwalaji Temple: This temple is dedicated to the Hindu goddess Durga and is situated on the top of the Benog Hill.
- Benog Wildlife Sanctuary: This sanctuary is home to a variety of rare and exotic birds and animals, and is a great place for nature and wildlife enthusiasts.
- Mussoorie Lake: This man-made lake offers a beautiful view of the surrounding mountains and is a popular spot for boating and picnics.
- Company Garden: This garden is an ideal place for a leisurely walk and is surrounded by lush green forests and mountains.
- Landour: This is a quaint and peaceful town located on the outskirts of Mussoorie, famous for its colonial-era architecture and serene atmosphere.
- Camel’s Back Road: This road offers a beautiful view of the surrounding mountains and is a popular spot for walking, cycling and horse-riding.
- Christ Church: This is one of the oldest churches in Mussoorie and is famous for its Gothic architecture and serene atmosphere.
- Mussoorie has a unique weather phenomenon known as the ‘Mussoorie Mist’. This mist is caused by the condensation of water droplets in the air and is particularly visible during the monsoon season.
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ऋषिकेश उत्तराखण्ड के देहरादून जिले का एक नगर, हिन्दू तीर्थस्थल, नगरनिगम तथा तहसील है। यह गढ़वाल हिमालय का प्रवेश्द्वार एवं योग की वैश्विक राजधानी है। ऋषिकेश, हरिद्वार से 25 किमी उत्तर में तथा देहरादून से 43 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
ऋषिकेश का शान्त वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊँचाई पर स्थित ऋषिकेश भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं।
प्रचलित कथाएँ
ऋषिकेश से सम्बन्धित अनेक धार्मिक कथाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें नीलकण्ठ के नाम से जाना गया। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार भगवान राम ने वनवास के दौरान यहाँ के जंगलों में अपना समय व्यतीत किया था। रस्सी से बना लक्ष्मण झूला इसका प्रमाण माना जाता है। विक्रमसंवत 1960 में लक्ष्मण झूले का पुनर्निर्माण किया गया। यह भी कहा जाता है कि ऋषि रैभ्य ने यहाँ ईश्वर के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान हृषीकेश के रूप में प्रकट हुए। तब से इस स्थान को ऋषिकेश नाम से जाना जाता है। ऐसी ही एक कथा वीरभद्र की प्रचलित है। कहा जाता है कि जब माता सती ने सतीत्व प्राप्त किया था तो शिव जी ने क्रोधित हो कर अपने केश से एक जाता को निकाल के फेंका था जिससे वीरभद्र प्रकट हुए । ऋषिकेश का ये स्थान भी प्रचीन व पौराणिक स्थानों में विशेष मान्यता रखता है।
आकर्षण
लक्ष्मण झूला
गंगा नदी के एक किनार को दूसर किनार से जोड़ता यह झूला नगर की विशिष्ट की पहचान है। इसे विकतमसंवत 1996 में बनवाया गया था। कहा जाता है कि गंगा नदी को पार करने के लिए लक्ष्मण ने इस स्थान पर जूट का झूला बनवाया था। झूले के बीच में पहुँचने पर वह हिलता हुआ प्रतीत होता है। 450 फीट लम्बे इस झूले के समीप ही लक्ष्मण और रघुनाथ मन्दिर हैं। झूले पर खड़े होकर आसपास के खूबसूरत नजारों का आनन्द लिया जा सकता है। लक्ष्मण झूला के समान राम झूला भी नजदीक ही स्थित है। यह झूला शिवानन्द और स्वर्ग आश्रम के बीच बना है। इसलिए इसे शिवानन्द झूला के नाम से भी जाना जाता है। ऋषिकेश मैं गंगाजी के किनारे की रेेत बड़ी ही नर्म और मुलायम है, इस पर बैठने से यह माँ की गोद जैसी स्नेहमयी और ममतापूर्ण लगती है, यहाँ बैठकर दर्शन करने मात्र से ह्रदय मैं असीम शान्ति और रामत्व का उदय होने लगता है।
त्रिवेणी घाट
ऋषिकेश में स्नान करने का यह प्रमुख घाट है जहाँ प्रात: काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर हिन्दू धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इसी स्थान से गंगा नदी दायीं ओर मुड़ जाती है। गोधूलि वेला में यहाँ की नियमित पवित्र आरती का दृश्य अत्यन्त आकर्षक होता है। शाम को त्रिवेणी घाट पर आरती का दृश्य एक अलग आकर्षक एवं असीम शांति दायक होता है।
स्वर्ग आश्रम
स्वामी विशुद्धानन्द द्वारा स्थापित यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम है इस स्थान पर बहुत से सुन्दर मन्दिर बने हुए हैं। आश्रम की आसपास हस्तशिल्प के सामान की बहुत सी दुकानें हैं।
नीलकण्ठ महादेव मन्दिर
लगभग 5,500 फीट की ऊँचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर नीलकण्ठ महादेव मन्दिर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मन्थन से निकला विष ग्रहण किया गया था। विषपान के बाद विष के प्रभाव के से उनका गला नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकण्ठ नाम से जाना गया था। मन्दिर परिसर में पानी का एक झरना है जहाँ भक्तगण मन्दिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।
एम्स/AIIMS
यह हिन्दी-अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान अंग्रेजी- All India Institute of Medical Science का संक्षिप्त नाम है, भारत का दिल्ली के बाद यह देश का सबसे बड़ा चिकित्सालय है,अस्पताल परिसर 400 मीटर के दायरे में फैला है देखने योग्य भव्य ईमारत है।
कैसे जाएँ
वायुमार्ग
ऋषिकेश से 18 किलोमीटर की दूरी पर देहरादून के निकट जौली ग्रान्ट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। एयर इण्डिया, जेट एवं स्पाइसजेट की फ्लाइटें इस एयरपोर्ट को दिल्ली से जोड़ती है।
रेलमार्ग
ऋषिकेश का नजदीकी रलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो शहर से 5 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। और ऋषिकेश का आखरी स्टेशन है। इसके बाद आगे रेलवे लाइन नहीं जाती।
सड़क मार्ग
दिल्ली के कश्मीरी गेट से ऋषिकेश के लिए डीलक्स और निजी बसों की व्यवस्था है। राज्य परिवहन निगम की बसें नियमित रूप से दिल्ली और उत्तराखण्ड के अनेक शहरों से ऋषिकेश के लिए चलती हैं।
खरीददारी
ऋषिकेश में हस्तशिल्प का सामान अनेक छोटी दुकानों से खरीदा जा सकता है। यहाँ अनेक दुकानें हैं जहाँ से साड़ियों, बेड कवर, हैन्डलूम फेबरिक, कॉटन फेबरिक आदि की खरीददारी की जा सकती है। ऋषिकेश में सरकारी मान्यता प्राप्त हैण्डलूम शॉप, खादी भण्डार, गढ़वाल वूल और क्राफ्ट की बहुत सी दुकानें हैं जहाँ से उच्चकोटि का सामान खरीदा जा सकता है। इन दुकानों से कम कीमत पर समान खरीदे जा सकते है।
देहरादून जो विगत वर्षों में भारत की चुनिंदा स्मार्ट city की सूची में शामिल था, उत्तराखण्ड की राजधानी होने के साथ साथ अपने मनलुभावन मौसम के लिए भी जाना जाता है। ये स्थान गढ़वाल की पहाड़ियों की तलहटी से लगा हुआ है और यहाँ आधुनिक सुविधाएँ होने के साथ साथ पारंपरिक निर्माणों की भी झलक मिल जाती है।
वैसे तो राज्य बनने के साथ देहरादून अस्थायी राजधानी घोषित हुआ था, लेकिन अभी तक उत्तराखंड में कहीं और पूर्णकालिक राजधानी अब तक कहीं तैयार नहीं, उत्तराखंड में कई लोग मांग करते हैं कि गैरसैंण या कोई और पहाड़ी जगह राज्य की राजधानी बने, वर्तमान में तो सन् 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से देहरादून शहर ही राज्य की राजधानी की जिम्मेदारी संभाल रहा है
पीढ़ियों से रहते लोग से बात कर यह जानकारी मिलती कि, पूर्व में देहरादून में एक या कुछ एकड़ से कम जमीन खरीदी या बेची नहीं जा सकती थी। जिससे सम्पन्न लोग ही यहाँ घर बना सकते थे। आज भी देहरादून में एकड़स लेंड में बने बंग्लोज़ देखे जा सकते है। तब bunglow में चाहरदीवारी नहीं होती थी, चारों ओर हेज लगी रहती थी जिससे बारिश का पानी एकदम बह जाया करता था, अब ये बँगले चाहरदीवारी से घिरे हैं।
देहारादून में कई पार्क होने के साथ देहारादून में कई राष्ट्रीय संस्थानों के मुख्यालय है – जिनमे ओएनजीसी, सर्वे ऑफ इंडिया, वन अनुसंधान संस्थान फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, Indian Institute of Petroleum आदि प्रमुख हैं।
देहरादून में देश के कई प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान भी यहाँ है। जिनमे प्रमुख है। Indian Military Academy, Rashtriya Indian Military College (राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज), Indira Gandhi National Forest Academy (IGNFA), Lal Bahadur Shastri National Academy Of Administration (LBSNAA) भी देहरादून में हैं।
देहरादून का इतिहास/ History of Dehradun
द्वापर युग में “महाभारतकालीन गुरु द्रोणाचार्य” के घर के रूप में भी जाने वाले देहरादून का यह नाम होने की कहानी यह है कि – सन् 1676 में, सिक्खोंके सातवें गुरु राम राय वर्ष अपनी संगत के साथ भ्रमण करते हुए इस स्थान पर पहुचे, और दून घाटी मे अपना डेरा यानि Camping की, उनके यहाँ पड़ाव डालने के बाद इस स्थान को डेरा दून कहा जाने लगा, और जो कालांतर में बदल कर देहरादून हो गया।
ब्रिटिश युग से पूर्व ज्यादातर दून घाटी गढ़वाल के शासकों के अधीन रही और रणनीतिक रूप से केंद्र में रही। ब्रिटिश पीरियड में ब्रिटिशर्स ने भी यहाँ अपनी छावनी बनायी।
देहरादून के प्रमुख आकर्षण व गतिविधियां
देहरादून के आसपास – मसूरी, धनौल्टी, ऋषिकेश, हरिद्वार, सहरानपुर, रुड़की जैसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण स्थान तो हैं ही, साथ ही नगर में या नगर की सीमा से लगे कई आकर्षण भी हैं। देश भर की नामी ब्रांड्स और कंपनीज़ चाहे वो इलेक्ट्रॉनिक्स हों, फर्नीचर हो, ऑटोमोबाइल हों, रेस्टोरेंट हो के यहाँ लगभग सभी के आउटलेटस हैं।
देहरादून शहर का केंद्र माना जा सकता हैं यहाँ घंटा घर यानि क्लाक tower को। क्लॉक टावर यानी घंटा घर शहर के केंद्र में है। यहाँ लगे शिलापट में नाम बलबीर क्लॉक टावर दर्ज है। 1948 में इस क्लॉक टावर के निर्माण की शुरुआत ब्रिटिश समय के न्यायाधीश रहे और बलबीर सिंह जी के परिजनों ने उनकी स्मृति में किया और 1953 में बनकर तैयार हुआ। घंटाघर ईंटो और पत्थरों से बना हुआ है। इसमें प्रवेश के लिये छह दरवाजे हैं। इसके षट्कोणीय आकार की हर दीवार पर प्रवेशमार्ग है। ऊपर जाने के लिये गोल घुमावदार सीढ़ियाँ है। छह अलग दीवारों पर छह घड़ियां लगी हैं उन्हें उस समय स्विट्जरलैंड से भारी-भरकम मशीनों द्वारा लाया गया था। अब यहाँ मेकेनिकल घड़ियों की जगह – इलेक्ट्रानिक घड़ियां लग गयी हैं।
क्लॉक टावर के निकट देहरादून के कई प्रसिद्ध बाजारें हैं। जिनमे से सबसे प्रसिद्ध है – देहरादून का सबसे पुराना बाजार – पलटन बाजार। इस बाजार से कई दूसरे बाजारों को जोड़ती गालियां है। क्लॉक टावर से राजपुर रोड की ओर आते हुए कुछ ही कदम की दूरी पर स्थित – MDDA मल्टी स्टोरी कार पार्किंग। इस पार्किंग कॉम्प्लेक्स की अन्डर ग्राउन्ड फ्लोरस में पार्किंग है और ऊपर की floors में कुछ रेस्टोरेंट, सर्विस सेंटर और कुछ दुकाने। पार्किंग से की दीवार से बाहर आते ही दिखता है – इन्दिरा मार्केट – यहाँ सस्ते रेडीमेड वस्त्रों की खरीददारी की जा सकती है।
क्लॉक टावर से राजपूत रोड में लगभग 100 मीटर चलने के बाद दाई ओर चलते हुए पहुचते है – शहर के एक खूबसूरत पार्क – गांधी पार्क मे। पार्क मे हरियाली और खूबसूरत फूलों और पेड़ों के साथ पंछियों की चहचहाट सुनते हुए सुबह की शुरुआत की जाये, तो फिर पूरा दिन ही अच्छा लगता है।
देहरादून का मौसम
यहाँ का मौसम वर्ष भर सुहावना रहता है। यहाँ बारिश होने के लिए वातावरण को पश्चिमी विक्षोभ या सावन के आने की ज़रूरत नहीं रहती। जो कभी भी हो जाती है। घर से कोई यह सोच कर निकले कि आज मौसम साफ है – तो अचानक बारिश हो सकती है और कभी ऐसा लगे कि – आज बारिश होगी और छाता लेकर बाहर जाए, तो जरूरी नहीं कि उस दिन बारिश हो।
शहर में कई जल स्रोत, झरने, जलाशय और पार्क है, जो यहाँ रहने वालों के लिए सैरगाह/ पिकनिक स्पॉट और सैलानियों के लिए आकर्षक पर्यटक स्थल हैं। जानते हैं इनके बारे में –
सहस्त्रधारा
देहरादून के सर्वाधिक विज़िट किए जाने वाले पिकनिक डेस्टिनेशन में एक है सहस्त्रधारा। सहस्त्रधारा – देहरादून में क्लॉक टावर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक सुंदर पिकनिक स्पॉट है। घंटाघर के समीप स्थित परेड ग्राउंड से सहस्त्रधारा के लिए नियमित अंतराल पर चलने वाली बस मिल जाती हैं, आपने वाहन के अलावा टैक्सी अथवा ऑटो द्वारा भी यहाँ पंहुच सकते हैं। देहरादून में मोबाईल एप बेस्ड टैक्सी और बाइक राइड भी मिल जाती है।

सहस्त्रधारा में वाहनों के लिए बड़ा पार्किंग स्पेस है। पार्किंग से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर भी है। सहस्त्रधारा नाम के अनुरूप यहाँ के प्रकार्तिक झरने से सहस्तरों धराएं निकलती हैं। यहाँ के जल स्रोतों से बहते पानी को रोककर बने कई छोटे छोटे जलाशय बनाए गए हैं, जो यहाँ आने वालों को लुभाते हैं। मानसून में यहाँ बहाव बहुत तीव्र होता है।
सहस्त्रधारा में प्राकृतिक और चिकित्सीय गुणों से भरपूर एक प्राकृतिक गंधक (सल्फर) वाटर स्प्रिंग है, इसके निरंतर बहते जल से गंभीर त्वचा विकारों को भी ठीक किया जा सकता है। देश भर से तो यहाँ लोग आते ही हैं साथ ही विदेशों से भी पर्यटक यहाँ, त्वचा संबंधित रोगों के उन्मूलन के लिए आते हैं।
खाने के विकल्प उपलब्ध कराते यहाँ कई फ़ास्ट फ़ूड स्टॉल हैं। यहाँ Rope Way राइड भी लिया जा सकता है यहाँ एक fun park भी है जहां कई rides और swings का आनंद ले सकते है। यहाँ बौद्ध मंदिर भी है। साथ ही ठहरने के लिए कुछ होटेल्स भी है। यहाँ पूरा या आधा दिन विभिन्न गतिविधियों करते हुए बिताया जा सकता है।
मालसी डियर पार्क / देहरादून चिड़ियाघर
सहस्त्रधारा से लगभग 11.5 किलोमीटर दूर देहरादून – मसूरी मार्ग में स्थित मालसी डियर पार्क जिसे देहरादून के चिड़ियाघर के नाम से भी जाना जाता हैं स्थित है। घंटाघर से यहाँ की दूरी 9 किलोमीटर है, यहाँ आने के लिए बस व या टैक्सी/ ऑटो भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। यहाँ की घंटे या पूरा दिन भी यहाँ दिखने वाले जीवों जिनमे कई पक्षी और पशु हैं की बारे में जानकारी लेते हुए बिता सकते हैं। इस जू को विजिट करने की टाइमिंग सुबह 09 से शाम 5 तक है, और ये सोमवार को बंद रहता है। यहाँ बच्चों के लिए पार्क, और जानकारी उपलब्ध कराते कई रोचक बोर्ड दिखते हैं। यहाँ जू के बाहर खाने के एक कैंटीन भी है।

Sahatradhara Dehradun
रॉबर्स केव/ गुच्चू पानी
देहारादून का एक और आकर्षण है – क्लाक टोअर से लगभग साढ़े आठ किमी और देहरादून जू से लगभग 4 किमी दूर रॉबर्स केव जिसे गुच्चू पानी नाम से भी जाना जाता है। Robbers Cave में 4 वर्ष से उप्पर के आगंतुकों के लिए प्रवेश शुल्क लिया जाता है। यहाँ एक छोटी नहर है जो एक गुफा से हो कर गुजरती है। इस गुफा में बहते हुए पानी में चलते हुए रोमांच की अनुभूति होती है। ये गुफा लगभग 500 मीटर लंबी है। बरसात में इस पानी का लेवल बढ़ जाता है। और सर्दियों में पानी काफ़ी ठंडा रहता है।
टपकेश्वर महादेव
रॉबर्स केव से टपकेश्वर महादेव मंदिर की दूरी लगभग 6 किलोमीटर और क्लॉक टावर से 6.5 किलोमीटर है। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस जगह को गुरु द्रोणाचार्य द्वारा बसाया गया था, इसलिए इसे द्रोण गुफा के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ आने के लिए अपने वाहन के अलावा ऑटो अभी उपलब्ध हो जाते हैं।
FRI (Forest Reserach Institute)
फारेस्ट रिसर्च सेंटर FRI के नाम से जाने जाने वाला संस्थान देहारादून का एक और आकर्षण है। यह संस्थान न केवल अपने शोध कार्य के लिए बल्किअपने अद्भुत वास्तुकला के लिए भी जाना जाता हैं और अपनी बेहद आकर्षित कर देने वाली बनावट के कारन,”FRI” देहरादून के एक विख्यात पर्यटन स्थल में भी शुमार हैं है एफ़ आर आई वन अनुसंधान संस्थान विश्वविध्यालय से संबद्ध है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग [यूजीसी] द्वारा मान्यताप्राप्त हैं |
देहरादून कैसे पंहुचे!
देश भर से देहरादून आप कभी भी आ सकते हैं। साथ ही सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा देहरादून की कनेक्टिविटी देश के विभिन्न हिस्सों से है। देहरादून – हरिद्वार, ऋषिकेश, मसूरी, चंडीगढ़, सहारनपुर, रुड़की, दिल्ली जैसे नगरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहाँ आप अपने वाहन से आने के अतिरिक्त प्लेन, ट्रेन, टैक्सी द्वारा भी आ सकते हैं।
हवाई मार्ग से –
देहरादून के निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट नगर से लगभग 20 किलोमीटर दूर जॉलीग्रेंट में स्थित है। यहाँ से एयर इंडिया, जेट एयरवेज, जेट कनेक्ट और स्पाइस जेट की देहरादून के लिए नियमित उड़ानें हैं। और हवाई अड्डे से नगर तक आने के लिए टैक्सी आदि उपलब्ध हो जाती हैं।
ट्रेन से
देहरादून से दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, मुंबई, कोलकाता, उज्जैन, चेन्नई और वाराणसी के लाई नियमित ट्रेन चलती हैं। देहरादून से देश के बाकी हिस्सों से शताब्दी एक्सप्रेस, जन शताब्दी एक्सप्रेस, देहरादून एसी एक्सप्रेस, दून एक्सप्रेस, बांद्रा एक्सप्रेस और अमृतसर-देहरादून एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग से
देहरादून से देश के अधिकतर नगरों जैसे दिल्ली, शिमला, नैनीताल, हरिद्वार, ऋषिकेश, आगरा और मसूरी आदि से आवागमन के लिए वॉल्वो, डीलक्स, सेमी-डीलक्स और उत्तराखंड राज्य परिवहन की बसें उपलब्ध हो जाती हैं। हर 15 – 20 मिनट के अंतराल पर ये बसें यहाँ से चलती रहती हैं। देहरादून में एक अन्य बस टर्मिनल मसूरी बस स्टेशन हैं, जो देहरादून रेलवे स्टेशन के निकट ही स्थित है, जहाँ से मसूरी और आसपास के अन्य शहरों के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। देहरादून में एक और अंतरराज्यीय बस टर्मिनल गांधी रोड पर दिल्ली बस स्टैंड है।
आशा है ये जानकारी युक्त रोचक लेख आपको पसंद आया होगा, देहरादून पर बना वीडियो देखें –
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1. देहरादून से मसूरी कैसे पहुँचे!
Uttarakhand Tourism : उत्तराखंड में हर जगह देखने लायक आपको विशेषताएँ मिल जाएंगी जो आपको शांति का अनुभव देंगी। जैसे यहाँ के पहाड़ों की ठंडी हवाएं मन को शांति देती हैं, यहाँ दिखने वाली हिमालय शृंखलाएँ प्रकृति के विशालता का अनुभव करातीं हैं, बहती नादिया देख मन को ठहराव और घाटियाँ के दृश्य देख मन को आनंद प्राप्ति होती है । इन्हीं कुछ कारणों से उत्तराखंड प्रकृति प्रेमियों के लिए एक बेहतरीन जगह है। तो इसी क्रम में आप इस लेख में एक ऐसी झील के बारे में जानेंगे जहां आप प्रकृति के बीच कुछ समय बीता सकते हैं साथ ही यहाँ आप बोटिंग करने के साथ ही दुलर्भ पक्षियों का दीदार भी कर सकते हैं।
आसन वेटलैंड
आसन बैराज यह उत्तराखंड-हिमाचल सीमा पर देहरादून शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह आसन नदी और पूर्वी यमुना नहर के संगम पर स्थित एक छोटा बैराज है।
देहरादून जिले के विकासनगर स्थित इस आसन कंजर्वेशन रिजर्व को अंतरराष्ट्रीय महत्व की साइट घोषित किया गया है। विकासनगर तहसील मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर स्थित आसन झील और उसके आसपास के इलाके को 2005 में आसन कंजर्वेशन रिजर्व घोषित किया गया था। यह 444.40 हेक्टेयर भूभाग में फैला हुआ है।
आसन बैराज पक्षी प्रेमियों, ऑर्निथोलॉजिस्ट और प्रकृतिविदों के लिए एक आदर्श स्थान है, जो समान रूप से आसन बैराज तक आसानी से यात्रा कर सकते हैं, और उन हजारों पक्षियों को देख सकते हैं जिन्होंने मीलों का सफर तय किया है। एक मल्लार्ड या लाल क्रेस्टेड पोचर्ड देखने के लिए, जंगल में कुछ सौ गज की दूरी ही तय करनी होती है।
आसन बैराज ट्रांस-हिमालयन प्रवासी पक्षियों के लिए सर्दियों के मार्ग के ठहराव के रूप में कार्य करता है। ये पक्षी दक्षिणी भारत (अक्टूबर-नवंबर) की तरफ और फिर से (फरवरी-मार्च के अंत में) आते हैं। आसन बैराज पक्षी प्रेमियों के लिए सर्दियां सबसे रोमांचक मौसम हैं, लेकिन गंभीर बर्डवॉचर के लिए साल के अन्य महीनों (मई से सितंबर के अंत तक) में स्थानीय प्रवासियों को चित्रित स्टॉर्क, ओपन बिल्ड स्टॉर्क, नाइट वॉन जैसे रोमांचक अवसर मिलते हैं। हर साल इन महीनों में 25- 40 पेंटेड स्टॉर्क का झुंड देखा जा सकता है।
पलाश फिश ईगल का जोड़ा
वहीं इस बार कई साल बाद दुर्लभ पलाश फिश ईगल का जोड़ा भी प्रवास पर आसन वेटलैंड पहुंचा है। इसके साथ ही आसन वेटलैंड में प्रवास पर आई प्रजाति की संख्या 41 पहुंच गई है। इन दिनों लगभग 3500 परिंदों के प्रवास पर होने के चलते आसन वेटलैंड में परिंदों का रंग-बिरंगा संसार महक रहा है।परिंदों की संख्या बढ़ने पर उनकी सुरक्षा के लिए चकराता वन प्रभाग की टीम रात-दिन गश्त कर रही हैं। दुर्लभ पलाश फिश ईगल पहले वन आरक्षी प्रशिक्षण केंद्र के जंगल में सेमल के पेड़ पर घोसला बनाता था, लेकिन मानवीय दखल बढ़ने पर ईगल के इस जोड़े ने सेमल के पेड़ को छोड़ दिया। बीते कुछ साल तो मात्र एक पलाश फिश ईगल ही यहां पहुंचा। इस बार लंबे समय बाद प्रवास के सही समय में पलाश फिश ईगल का जोड़ा यहां आया है। साथ ही उसने आशियाना बनाने के लिए सेमल का पेड़ तलाशना भी शुरू कर दिया है।
ईगल के जोड़े पर वनकर्मी चौबीसों घंटे नजर रखे हुए हैं। साइबेरिया समेत अन्य प्रदेशों में ठंड का प्रकोप बढ़ने पर वैसे तो पक्षियों की अनेक प्रजाति यहां आती हैं, लेकिन पक्षी प्रेमियों को अस्थायी प्रवास पर आने वाले पलाश फिश ईगल का जोड़ा काफी भाता है। दुर्लभ पलाश फिश ईगल मछलियों का शिकार करता है। उसके शिकार करने के अंदाज को पक्षी प्रेमी कैमरे में कैद करने की कोशिश भी करते हैं।
इन देशों में पाया जाता है पलाश फिश ईगल
पलाश फिश ईगल अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, चीन, पाकिस्तान, म्यांमार आदि देशों में पाया जाता है। सफेद सिर व पूंछ पर सफेद पट्टी के कारण आसानी से पहचाने जाने वाले पलाश फिश ईगल के जोड़े को देखने के लिए हर बार पक्षी प्रेमी बड़ी संख्या में यहां आते हैं।
बड़ी मुश्किल से पलाश फिश ईगल बदलते हैं अपना घोसला
चकराता वन प्रभाग के वन दारोगा प्रदीप सक्सेना के अनुसार दुर्लभ प्रजाति के पलाश फिश ईगल अपना घोसला बड़ी मुश्किल से बदलते हैं। वाच किया जा रहा है कि आखिर यह जोड़ा घोसला कहां बनाता है।
अभी तक आसन वेटलैंड पहुंचीं प्रजाति
देश के पहले कंजरवेशन रिजर्व एवं उत्तराखंड की पहली रामसर साइट आसन वेटलैंड में 41 प्रजाति के परिंदे प्रवास पर पहुंच चुके हैं। इनमें पलाश फिश ईगल, नार्दन पिनटेल्स, बार हेडेड गूज, ग्रे लेग गूज, वूली नेक्टड स्ट्राक, पर्पल हीरोन, ग्रे हेरोन, ग्रेट इग्रेट, लिटिल ग्रेब, ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब, व्हाइट थ्रोटेड किंगफिशर, पाइड किंगफिशर, स्ट्राक बिल्ड किंगफिशर, पर्पल स्वेमफेन, पाल्स गुल, स्टीपी ईगल, ग्रीफोन वल्चर आदि प्रजाति के करीब 3500 परिंदें मौजूद हैं।
डीएफओ चकराता कल्याणी के निर्देश पर एसडीओ मुकुल कुमार, आरओ दाताराम कुकरेती, बीट आफिसर राहुल चौहान, वन दारोगा प्रदीप सक्सेना रात-दिन की गश्त करा रहे हैं। ताकि, प्रवासी परिंदों को कोई नुकसान न पहुंचे।
जाने देहरादून के बारे में।
देहरादून बहुत ही साफ-सुथरा, शांत और सुंदर शहर है। यदि आप देहरादून घूमने जाने का विचार बना रहे हैं या कभी भविष्य में घूमने का विचार हो तो हम आज आपको देहरादून के कुछ खास स्थानों से रूबरू कराएंगे।
सबसे पहला स्थान गुच्चू पानी है, गुच्चू पानी को हम रॉबर्स केव के नाम से भी जानते हैं जिसे चोरों की गुफा भी कहा जाता है। रॉबर्स केव के बारे में कहा जाता है कि अंग्रेजों के समय में यहां पर चोर और डाकू छुप कर रहते थे। यह स्थान देहरादून से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है।
अगला स्थान है टपकेश्वर मंदिर, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर गुफा में स्थित है। गुफा में शिवलिंग स्थित है, शिवलिंग पर हमेशा गुफा से पानी टपकता रहता है, गुफा के चारों तरफ सल्फर युक्त पानी है, जोकि स्किन के लिए अच्छा माना जाता है।
अगला स्थान है F.R.I. (Forest Research Institute) , यह बहुत ही खूबसूरत इमारत है, जोकि अंग्रेजो के समय की ईटों की बनी हुई बहुत बड़ी इमारत है, जिसका नाम काफी समय तक गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज था, F.R.I. से संबंधित एक और खास बात है की आपने स्टूडेंट ऑफ द ईयर मूवी तो देखी ही होगी। इस मूवी की शूटिंग F.R.I. में ही हुई थी।
अगला स्थान है आसन बैराज। यहां पर बहुत सुंदर पक्षी देखे जाते हैं, यहां विदेशी पक्षी भी आते हैं। यहां पर आप बोटिंग का मजा भी ले सकते हैं। आसन बैराज देहरादून से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है।
अगला स्थान है मालदेवता, यहां का सुंदर मनोरम दृश्य और पहाड़ों से गिरने वाले छोटे-छोटे झरने पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
अगला स्थान है बुद्धा टेंपल, यह स्थान देहरादून से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। यह बौद्ध लोगों का पवित्र स्थान है। यह मंदिर बहुत ही साफ सुथरा सुंदर और पवित्र स्थान है। यहां पर भगवान गौतम बुद्ध की बहुत बड़ी मूर्ति है, जिन्हें देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
अगला स्थान है सहस्त्रधारा, यहां पर भी लोग दूर-दूर से घूमने आते हैं। यहां पर छोटे छोटे तालाब स्थित है। सहस्त्रधारा में गंधक युक्त पानी आता है, जिसमें नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
अगला स्थान है मालसी डियर पार्क, यह पार्क शहर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यह डियर पार्क के नाम से है, परंतु यहां पर और भी काफी जीव जंतु देखने को मिल जाते हैं।
अगला स्थान है घंटा घर(Clock Tower) और पलटन बाजार, घंटाघर भी अंग्रेजों के समय का बना हुआ है। पलटन बाजार, घंटाघर से ही शुरू हो जाता है। पलटन बाजार मुख्यता कपड़ों के लिए प्रसिद्ध है। घंटाघर देहरादून शहर के बीचो बीच स्थित है।
अगला स्थान है राजाजी नेशनल पार्क। यह पार्क मुख्यता हाथियों के लिए प्रसिद्ध है, परंतु यहां और भी जीव जंतु देखे जा सकते हैं। यहां पर हर साल दूर दूर से टूरिस्ट घूमने आते हैं।
अगला स्थान है पहाड़ों की रानी मसूरी, यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां पर गर्मियों के समय बहुत लोग घूमने आते हैं। यह स्थान अंग्रेजों को काफी पसंद था इसलिए वे गर्मियों में मसूरी में रहा करते थे।
अगला स्थान है लच्छीवाला, यहां भी छोटे छोटे तालाब है, यहां पर भी गर्मियों में बहुत लोग घूमने आते हैं। यहां पर पेड़ पौधों की छांव है और बहुत ही खूबसूरत पार्क है।
यह सभी देहरादून के खूबसूरत प्रसिद्ध स्थान है। यदि आप देहरादून घूमने का मन बना रहे हैं तो इन स्थानों पर जाना ना भूलें।
उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.धन सिंह रावत ने राज्य की ग्रीष्माकालीन राजधानी गैरसैंण (भराड़ीसैंण) में राज्य की 662 ई-पंचायत सेवा केंद्र का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने ई-पंचायत सेवा केंद्र के लाभार्थियों से ई-संवाद भी किया। इस सेवा के माध्यम से न्याय पंचायत स्तर तक 12 प्रकार की सेवाएं लोगों को आसानी से मिल जाएंगी।
कॉमन सर्विस सेंटरों के माध्यम से उपलब्ध होने वालीं सभी सेवाएं ई-पंचायत सेवा केंद्र के माध्यम से भी उपलब्ध रहेंगी। आने वाले कुछ माह में ई-पंचायत सेवा केंद्रों को ‘अपणि सरकार’ पोर्टल से भी जोड़ा जाएगा।
राज्यमंत्री ने कहा कि इन सेवाओं को और मजबूती देने के लिए ग्राम सभा स्तर पर ई-सेवा केन्द्रों को विस्तारित किया जाएगा। भारत नेट 2.0 के माध्यम से गांव-गांव तक हाई स्पीड नेट पहुंचाने के लिए केन्द्र सरकार ने दो हजार करोड़ रुपये की धनराशि देने के लिए सहमति दी है।
ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क की पूर्ण उपलब्धता से इन सेवाओं में और तेजी आएगी और जन समस्याओं का समाधान भी तेजी से होगा। पंचायतीराज मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण पहल है। सरकार का प्रयास है कि लोगों को अपने कार्यों के लिए अनावश्यक रूप से सरकारी कार्यालयों के चक्कर न लगाने पड़ें। उन्हें डिजिटल माध्यम से घर से ही सारी सुविधाएं उपलब्ध हों।
इस अवसर पर विधायक महेंद्र भट्ट, मुख्यमंत्री के आईटी सलाहकार रवींद्र दत्त, निदेशक आईटीडीए अमित सिन्हा, जिलाधिकारी चमोली स्वाति एस भदौरिया, पुलिस अधीक्षक यशवंत सिंह चौहान, सीडीओ हंसादत्त पांडे और केन्द्रीय कार्यालय दिल्ली से सीएससी के अधिकारी जुड़े थे।
राज्य गठन से अब तक 20 वर्षों में उत्तराखंड राज्य ने आर्थिक और ढांचागत विकास के मोर्चे पर नए मुकाम हासिल किए। साथ ही सियासी उठापटक और सत्ता संघर्ष के मामले में इस छोटे राज्य की कहानियां पूरे देश में चर्चा का विषय रही हैं। अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 20 साल में ये राज्य चार निर्वाचित और एक अंतरिम सरकार और नौ मुख्यमंत्री देख चुका है।
इन नौ मुख्यमंत्रियों में एनडी तिवारी ही अकेले हैं, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। वरना कोई मुख्यमंत्री आतंरिक असंतोष और अस्थिरता के कारण अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। एनडी तिवारी के बाद सबसे अधिक अवधि तक सीएम कुर्सी पर रहने का रिकॉर्ड अब त्रिवेंद्र सिंह रावत के नाम है। 18 मार्च 2017 को वह मुख्यमंत्री बने थे। उनका साढ़े तीन साल का कार्यकाल पूरा हो गया है।
नौ नवंबर 2000 को राज्य का गठन हुआ। भाजपा की अंतरिम सरकार की कमान नित्यानंद स्वामी के हाथों में सौंपी गई। स्वामी एक साल भी कुर्सी पर नहीं रह सके। उनकी जगह सीएम की कुर्सी पर भगत सिंह कोश्यारी को बैठा दिया गया। 2002 में कांग्रेस को पहली निर्वाचित सरकार बनाने का अवसर पर मिला। एनडी तिवारी मुख्यमंत्री बने। लेकिन मुख्यमंत्री के पांच साल के कार्यकाल में एनडी को भी पार्टी की खेमेबाजी का सामना करना पड़ा।
2007 कमान जनरल बीसी खंडूरी के हाथों में आई। लेकिन खंडूरी दो साल में ही सत्ता के शीर्ष से उतार दिए गए। पार्टी ने रमेश पोखरियाल निशंक पर भरोसा जताया और मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन उन्हें भी रुख्सत होना पड़ा। फिर जनरल के हाथों में सीएम की बागडोर थमा दी गई। 2012 में कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया। बहुगुणा को दो साल में ही कुर्सी छोड़नी पड़ी।
कमान हरीश रावत ने संभाली लेकिन उन्हें भी अपने कार्यकाल के दौरान प्रदेश कांग्रेस की सबसे बड़ी बगावत का सामना करना पड़ा। नौ विधायक कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हो गए। 2017 में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला। सत्ता की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत के हाथों में सौंपी गई।
राज्य के हर ब्लॉक में दो-दो अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के जरिए सरकार न केवल दूरदराज ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों को न केवल गुणवत्तापरक शिक्षा मुहैया कराएगी। बल्कि छात्रों को उनकी पढ़ाई के दौरान ही करियर के प्रति भी जागरूक करेगी।
कक्षा छह से 12 वीं तक के इन 190 स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम को प्राथमिकता दी गई है। हालांकि हिंदी में पढ़ाई के इच्छुक छात्रों को हिंदी का विकल्प मिलेगा। बुधवार को कैबिनेट में उत्कृष्ट स्कूल योजना के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी।
अटल स्कूलों के साथ अच्छी बात यह है कि इनके लिए सरकार को अलग से धन का इंतजाम नहीं करना होगा। वर्तमान में स्थापित संसाधनयुक्त स्कूलों को ही इस योजना के लिए चुना गया है।
इसके साथ ही एशियन डेवलेपमेंट बैंक (एडीबी) से भी राज्य के करीब 700 करोड़ रुपये का पांच साल का प्रोजेक्ट मिलने जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के तहत 300 स्कूलों को लिया जाना है।
अटल आदर्श स्कूलों को सरकार इसी प्रोजेक्ट में शामिल करने जा रही है। पांच साल के इस प्रोजेक्ट के तहत हर साल राज्य को 140 करोड़ रुपये मिलने हैं।
एपीडी-समग्र शिक्षा अभियान डॉ. मुकुल कुमार सती ने कहा कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब इन स्कूलों के लिए सीबीएसई की मान्यता लेने क प्रक्रिया शुरू की जा रही है। सभी 190 स्कूल सीबीएसई के मानकों को करीब करीब पूरा कर रहे हैँ। जो कुछ कमियां होंगी, उन्हें भी तेजी से दूर किया जाएगा।
सीबीएसई माध्यम और हिंदी-अंग्रेजी में पढ़ाई का विकल्पस्कूल कक्षा छह से से 12 वीं तक के लिए होंगे। ये स्कूल सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध होंगे। छात्रों केा हिन्दी और अंग्रेजी दोनों माध्यमों से पढ़ाई का विकल्प मिलेगा। स्कूलों के संचालन और नियुक्ति के लिए शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में राज्यस्तरीय समिति का गठन किया जाएगा। शिक्षा निदेशक इसके सदस्य सचिव होंगे।
जबकि डीजी, शिक्षा सचिव द्वारा नामित अधिकारी, बेसिक शिक्षा निदेशक, निदेशक-एआरटी और दोनों मंडल के एडी-माध्यमिक, निदेशालय के संयुक्त निदेशक-माध्यमिक इस समिति के सदस्य होंगे। जिला स्तर पर डीएम की अध्यक्षता में समितियां बनाई जाएंगी।
अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के जरिए सरकार आम परिवारों को प्राइवेट स्कूलों के समान अंग्रेजी में शिक्षा का अवसर देगी। संपन्न परिवार तो अपने बच्चों को वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक माहौल के लिए तैयार कर लेते हैं लेकिन आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चे इसमें पिछड़ते जा रहे हैं।
अटल स्कूल इस खाई को पाटने का काम करेंगे। इन्हें उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। स्कूलों में पढ़ाई के दौरान ही छात्रों को करियर के प्रति भी जागरूक किया जाएगा। छात्रों की रुचि के अनुसार ही संबंधित क्षेत्रों में भी पारंगत बनबाने का प्रयास होगा।
अरविंद पांडे, शिक्षा मंत्री
धनोल्टी का टिंसल शहर अपने शांत वातावरण और दिल्ली और उत्तराखंड के अन्य शहरों के साथ निकटता के कारण एक लोकप्रिय शीतकालीन गंतव्य के रूप में उभर रहा है। यह जादुई हिल स्टेशन समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और ऊंचे हिमालय के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
धनोल्टी उत्तराखंड के लोकप्रिय हिल स्टेशनों जैसे मसूरी , टिहरी, कनाटल , और चंबा के निकटता में स्थित है । यह पहाड़ी शहर मखमली रोडोडेंड्रोन, देवदार और ऊंचे ओक के जंगलों से घिरा हुआ है। सर्दियां के दौरान हिल स्टेशन भारी बर्फबारी के बाद से, कई पर्यटक भारी संख्या में यहां आते।
धनोल्टी, देवदार, रोडोडेंड्रोन और ओक के घने, जंगलों के बीच स्थित है, जिसमें उत्तम शांति और शांति का वातावरण है। लंबी लकड़ी की ढलान, बाहर की ओर आराम से, ठंडी हवा के झोंके, गर्म और मेहमाननवाज निवासी, सुंदर मौसम और बर्फ से ढके पहाड़ का शानदार दृश्य इसे एक आरामदायक छुट्टी के लिए एक आदर्श वापसी बनाता है। मसूरी-चंबा मार्ग पर स्थित, धनोल्टी 24 किलोमीटर है। मसूरी से और 29 कि.मी. चम्बा से। आवास के लिए, टूरिस्ट रेस्ट हाउस, फॉरेस्ट रेस्ट हाउस और एक-दो गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
सुरम्य हिल स्टेशन – धनोल्टी ऊंचे पेड़ों और समृद्ध घास के मैदानों से सजी है, और यह समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जो हिमालय और शानदार ट्रेल्स के शानदार विस्तारों की पेशकश करता है। टिहरी गढ़वाल जिले के किनारे पर स्थित, धनोल्टी देहरादून के साथ अपनी पश्चिम की ओर की सीमा को साझा करता है। उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थल दिल्ली और इसके आसपास के अन्य लोकप्रिय स्थानों जैसे कि उत्तराखंड यानी देहरादून, मसूरी से निकटता के कारण एक आदर्श सप्ताहांत के लिए पलायन करते हैं। टिहरी, ऋषिकेश, और हरिद्वार। धनोल्टी में छुट्टी सर्दियों के दौरान सबसे अच्छी होती है।
धनोल्टी में, सितंबर के महीने से अप्रैल के शुरुआती दिनों तक सर्दियों का मौसम होता है, जिसमें तापमान 1 डिग्री सेल्सियस से 22 डिग्री सेल्सियस तक होता है। यह जगह हर जगह बर्फ की एक छाया का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें कुछ भूरे पेड़ और आंशिक रूप से ढकी काली सड़कें होती हैं।
इस जगह की आकर्षक सुंदरता जो कि रोडोडेंड्रोन, ओक्स और देवदार के घने जंगलों से सजी है, में दो खूबसूरत इको पार्क यानी अंबर और धरा, सेब के बाग और एक आलू के खेत शामिल हैं, जो संयुक्त रूप से सरकार और स्थानीय किसानों के स्वामित्व में हैं, पूरी तरह से इसे बनाते हैं। प्रकृति का स्वर्ग। इसके अलावा, धनोल्टी टिहरी गढ़वाल जिले की बर्फ से ढकी चोटियों में कई ट्रेक के लिए आधार बिंदु के रूप में भी प्रदान करता है। जिसमें से, निकटतम थंगधर ट्रेक है जो कैम्पिंग और अन्य साहसिक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध है।
मसूरी-चंबा मार्ग पर स्थित, सुंदर धनोल्टी हिल स्टेशन मसूरी से लगभग 32 किमी दूर और राजधानी से 305 किमी दूर है। एक छोटी सी जगह होने के कारण, सीधी कनेक्टिविटी उपलब्ध नहीं है, लेकिन मसूरी, देहरादून, टिहरी और ऋषिकेश जैसे आस-पास के स्थान धनोल्टी को अन्य प्रमुख शहरों से जोड़ता है।
आईएसबीटी कश्मीरी गेट से, टिहरी, ऋषिकेश, मसूरी और देहरादून पहुंचने के लिए राज्य द्वारा संचालित बसें आसानी से उपलब्ध हैं। यहां पहुंचने पर, अच्छी तरह से जुड़ा हुआ मोटर योग्य सड़क सार्वजनिक बसों और निजी टैक्सियों के माध्यम से धनोल्टी तक ले जाता है।
नॉर्दर्न रेलवे मेंस यूनियन के डेलीगेट्स अधिवेशन में उत्तराखंड में रेल मंडल मुख्यालय बनाए जाने पर चर्चा की गई। मीडियाकर्मियों से रूबरू यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा कि देहरादून में उपमंडल बनाने की बात तो हो रही है, लेकिन जिस तरीके से उत्तराखंड में रेल यातायात के विकास को लेकर तमाम कदम उठाए गए हैं।
राष्ट्रीय महासचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा कि पहले पूरे देश में रेलवे के नौ जोन थे, लेकिन समय के साथ ही अब रेलवे जोन की संख्या के साथ ही मंडल मुख्यालयों की संख्या में भी बढ़ोतरी की गई है। अधिक से अधिक मंडल मुख्यालयों का गठन किए जाने से रेल यातायात को बेहतर बनाने के साथ ही यात्री सुविधाओं को भी तेजी से विकसित किया जा सकेगा।
बता दें, उत्तराखंड में रेल मंडल मुख्यालय बनाए जाने की मांग लंबे समय से उठाई जा रही है। वर्तमान में रेल मंडल मुख्यालय मुरादाबाद में हैं, लेकिन पिछले दो दशक से जिस तरह से उत्तराखंड में रेलवे को लेकर विकास कार्य हो रहे हैं। इसे देखते हुए अब उत्तराखंड में रेलवे रेल मंडल मुख्यालय बनाए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी है।
तीन हजार से पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर लगाए जाएंगे कैमरा ट्रैप
वर्ष 2016-17 में कनार गांव के छिपलाकेदार में ट्रैप हुई थी बाघिन
उत्तराखंड में वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून की ओर से उच्च स्थलीय टाइगर प्रोजेक्ट (एचएटीपी) के तहत अब पहाड़ों पर (उच्च हिमालयी क्षेत्रों में) बाघ की खोज की जाएगी। इसके लिए समुद्रतल से 3000 से 5000 मीटर की ऊंचाई पर कैमरा ट्रैप लगाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। वन विभाग और डब्ल्यूआईआई देहरादून के विशेषज्ञ शीघ्र स्वचालित कैमरे लगाने का कार्य शुरू कर देंगे।
पहली बार वर्ष 2016-17 में 3300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित छिपलाकेदार क्षेत्र के कनार गांव में डब्ल्यूआईआई की अंकिता भट्टाचार्या ने बाघिन को ट्रैप किया था। इसके बाद फिर एक बाघिन को समुद्रतल से 3700 मीटर की ऊंचाई पर ट्रैप किया।
अंकिता भट्टाचार्य ने बताया कि पिथौरागढ़ बाघ के लिए मुफीद जगह है। अगर सही तरीके से कैमरे लगाए जाएं तो बाघ दिख सकते हैं। उन्होंने बताया कि गोरी घाटी क्षेत्र में बाघ के मिलने की अधिक उम्मीद है। भूटान में भी समुद्रतल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर नर बाघ मिला था।
भरल है बाघ का पसंदीदा भोजन
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला भरल बाघ का पसंदीदा भोजन है। भरल को ब्लू शीप या हिमालयन भेड़ भी कहा जाता है। बाघ भरल के शिकार की तलाश में ऊंचाई वाले इलाकों तक पहुंच जाता है।
यहां लगाए जाएंगे कैमरा ट्रैप
हिमालयी क्षेत्र में बाघ की मौजूदगी को पुख्ता करने के लिए एचएटीपी के तहत कनालीछीना विकासखंड में अस्कोट, मुनस्यारी के उच्च हिमालयी क्षेत्र, धारचूला के दारमा व दुग्तू के बुग्यालों और ग्लेशियरों में कैमरे लगाए जाएंगे।
इसके लिए वन विभाग और डब्ल्यूआईआई ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। इन क्षेत्रों में बाघ की खोज के लिए 100 कैमरे लगाए जाएंगे। इसके लिए वन विभाग और वन्यजीव विशेषज्ञ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जाएंगे। टीम के सदस्य ग्रामीण बुजुर्गों सहित अन्य लोगों से भी बाघ की मौजूदगी पर चर्चा करेंगे।
हिम तेंदुए को भी किया जाएगा ट्रैप
वन विभाग बाघ की खोज के साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिम तेंदुए को भी ट्रैप करने का प्रयास करेगा। जो कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे, उन्हीं कैमरों से स्नो लैपर्ड को भी ट्रैप किया जाएगा।
–नवीन पंत, एसडीओ वन प्रभाग
राजधानी देहरादून में दशहरे पर रविवार को रावण के पुतले का दहन तो होगा लेकिन मेला नहीं लगेगा। आयोजन के लिए आयोजकों को सिटी मजिस्ट्रेट या एसडीएम से परमिशन लेनी होगी। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला 10 फीट से अधिक बड़ा नहीं होगा। पुतला दहन में आयोजकों समेत केवल 50 लोग ही शामिल हो सकेंगे। इसके अलावा मेला नहीं लगेगा।
जिलाधिकारी डॉ. आशीष कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि कोविड-19 नियमों के पालन के साथ ही अनुमति दी गई है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए दशहरा के कार्यक्रम में अधिक लोगों को शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
लोगों से अपील है कि वह भी सहयोग करें। अगर कोई आयोजक बगैर प्रशासन के अनुमति के पुतला दहन करता है तो उसके खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।
एसडीएम व सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपी जिम्मेदारी
दशहरा पर कानून व्यवस्था बनी रहे, इसके लिए जिलाधिकारी ने एसडीएम व सिटी मजिस्ट्रेट को जिम्मेदारी सौंपी है। जिसके तहत सिटी मजिस्ट्रेट को पूरा नगर क्षेत्र, एसडीएम विकासनगर, चकराता, कालसी, डोईवाला, देहरादून, ऋषिकेश और मसूरी को भी अपने क्षेत्र में पर्व शांतिपूर्वक संपन्न कराने के निर्देश दिए हैं। पर्व संपन्न होने के बाद इसकी रिपोर्ट एडीएम प्रशासन को देने के भी निर्देश दिए।
उत्तराखंड के 105 सरकारी कॉलेजों व सभी सरकारी विश्वविद्यालय के कैम्पसों में आगामी आठ नवंबर से छात्रों को फ्री वाईफाई की सुविधा मिलने लगेगी। प्रदेश सरकार ने इसके लिए रिलायंस जियो से अनुबंध किया है। एक लाख से अधिक छात्र-छात्राओं को इसका लाभ मिलेगा।
सरकारी डिग्री कॉलेजों में बीते शैक्षिक सत्र में यूजी-पीजी मिलाकर छात्रों की संख्या एक लाख दो हजार थी। इसमें से कई कॉलेज पहाड़ में दुर्गम में होने के कारण इंटरनेट सुविधा से वंचित हैं। बड़े शहरों के कॉलेजों में इंटरनेट की उपलब्धता ऑफिस कार्य के लिए है।
इस समस्या को समझते हुए उच्च शिक्षा विभाग ने अब रिलायंस जियो के साथ अनुबंध कर, सभी कॉलेजों में 4जी नेटवर्क उपलब्ध करा दिया है। कॉलेज परिसर में छात्रों को एक निश्चित दूरी तक 4जी स्पीड का इंटरनेट मिलेगा। इसके लिए कॉलेज प्रबंधन छात्रों को पासवर्ड देगा।
इसके साथ ई ग्रंथालय को भी पूरी तरह ऑनलाइन किया जा रहा है। ई ग्रंथालय के जरिए विभाग सभी कॉलेजों में उपलब्ध 20 लाख पुस्तकों तक ऑनलाइन पहुंचा बना रहा है। ई ग्रंथालय को दूसरे चरण में नेशनल नेटवर्क से जोड़ा जाना है।
अभी राज्य के कॉलेजों में इंटरनेट तो है, लेकिन छात्रों के लिए फ्री वाईफाई की सुविधा सीमित स्तर पर ही उपलब्ध थी। अब सभी छात्रों को 4जी वाईफाई की फ्री सुविधा मिलेगी। सभी कॉलेजों में इसके लिए व्यवस्था कर दी गई है। आठ नवंबर को मुख्यमंत्री इस प्रोजेक्ट की औपचारिक शुरुआत करेंगे। डिजिटल लर्निंग की दिशा में यह पहला बड़ा प्रयास है।
डॉ.धन सिंह रावत, उच्च शिक्षा राज्यमंत्री
देहरादून चाय बागान में अब असम की चाय महकेगी। अब दून के चाय बागान फिर से महकेंगे। वह भी असम की चाय से। डीटीसी इंडिया लिमिटेड ने देहरादून स्थित हरबंशवाला और आरकेडिया चाय बागान की विस्तार और फिर से हरा-भरा करने की योजना बनाई है। इसके लिए कंपनी की ओर पश्चिम बंगाल से 15 हजार चाय की पौध मंगाई हैं। जिनका कंपनी अपनी बागान में रोपण कराएगा।
इसके लिए डीटीसी कंपनी की ओर से सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल से 15 हजार असम प्रजाति की पौध मंगाई गई है। इसके साथ ही कंपनी की ओर से टी बोर्ड ऑफ इंडिया से भी एक लाख पौध की मांग की है। खुद की नर्सरी में भी तीस हजार पौध उगाई जा रही है।
बता दें, कभी दून की चाय देश-विदेश में मशहूर थी। दून के आरकेडिया क्षेत्र में ही चायपत्ती बनाने की फैक्ट्री हुआ करती थी, लेकिन फैक्ट्री बंद होने के बाद चाय के बाग भी धीरे-धीरे खत्म होने के कगार पर पहुंच गए।
कंपनी के मुताबिक इन सबके साथ ही कंपनी अपनी नर्सरी में 30 हजार चाय के पौधे तैयार कर रही है। जल्द ही इन्हें भी बागानों में रोपण कर लिया जाएगा।
कंपनी अपने आरकेड़िया ओर हरबंशवाला चाय बागानों का विस्तार करने जा रही है। इनके लिए असम प्रजाति के चाय की पौध मंगाई है।
इस प्रयास से एक बार फिर देहरादून में चाय और हरियाली देखने को मिलेगी।