अफ्रीकन महिला – अपनत्व बिना शब्दों के!

by Yashwant Pandey
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साल 2008
मैं पहली बार अफ्रीका गया था, और 3 महीने के लिए दार ए सलाम, तंजानिया में था। यह हिंद महासागर के किनारे बसा हुआ एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत शहर है, जो प्रसिद्ध है अपने खूबसूरत सिल्वर सैंड बीचेज के लिए। लगभग 30 लाख की आबादी वाला वह शहर तंजानिया का बिजनेस कैपिटल है।
मैं डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क सेट करने के उद्देश्य से वहां गया था। मैं जिस होटल में ठहरा हुआ था, और जैसा कि सभी होटलों में होता है, लॉन्ड्री काफी महंगी थी। एक पैंट और शर्ट वाशिंग और आयरनिंग के लिए $10 लगते थे, और उन दिनों $10 में, मैं इंडिया में नया शर्ट खरीद लेता था। समुद्र के किनारे बसा होने के कारण, वहां पसीना बहुत आता था। पहला सप्ताह तो मैंने होटल की सर्विसेस ली, फिर मैंने सोचा कि मैं आप पास में कोई लाउंड्री ढूंढता हूं, इस से वो क्षेत्र देखा भी जायेगा और लोग भी समझ आएंगे।
मुझे होटल के पास ही एक छोटी सी लाउंड्री मिल गई, जिसे तंजानिया मूल की एक महिला चलाती थी। मेरी उससे बातचीत हुई और उनके रेट पैंट शर्ट धोने के साथ प्रेस करने का रेट की $2 था। मेरे खर्चे भी $10 से $2 डालर आ गया था। खुश भी था कि कम से कम $8 रोज के बच रहे हैं। मैं हर रोज सुबह निकलते वक्त अपना पैंट शर्ट दे देता था, और शाम को लौटते वक्त पहले दिन के दिया हुआ पैंट शर्ट ले लेता था।
धीरे धीरे उनसे अच्छी जान पहचान हो गई। लगभग 60 वर्ष की वह महिला, शरीर से थोड़ी भारी, ट्रेडिशनल अफ्रीकन ड्रेस, एक लंबी गाउन पहने रहती थी। हाथों में लकड़ी की कार्विंग की हुई बैंगल्स होती थी। सर पर एक स्कार्फ बांधे रहती थी। वे टूटी-फूटी अंग्रेजी में बातें करती थी। उन्हें इंडिया के बारे में जानने की उत्सुकता रहती थी। वह हिंदी टीवी सीरियल और सिनेमा भी देखती थी। वह मुझसे फ़िल्में और टीवी सीरियल के बारे में बातें करना चाहती थी। मेरी समस्या यह थी कि, ना तो मैं टीवी सीरियल देखता था ना ही फिल्में देखता था, तो मैं उनके किसी भी प्रश्न का जवाब देने में असमर्थ होता था। उनके पति का देहांत हो गया था, और उनकी एक ही बेटी थी।  बेटी की शादी हो गई थी। यह लॉन्ड्री ही उनकी आमदनी का जरिया था। रोज शाम को सारे कपड़े कलेक्ट कर के वह अपने घर चली जाती थी। उनका घर लगभग 15 किलोमीटर दूर एक गांव में था।  रात में कपड़े को वाशिंग मशीन में साफ करती थी। सुबह कपड़ो को प्रेस करती, और 9:00 बजे अपनी दुकान में पहुंच जाती। अक्सर वह मेरे परिवार के बारे में भी पूछते रहती थी। मेरे हाथ जोड़कर नमस्कार करने से वह बहुत खुश होती थी।
बातचीत में उन्हें पता चला कि, मैं इधर तीन महीने के लिए हूं। और इस होटल में ठहरा हूं। एक दिन अपने साथ पॉलिथीन में कुछ संतरें मुझे दिये, और बताया कि यह उनके पेड का है। मैंने पैसे देने की कोशिश की, जिसे उन्होंने लेने से इंकार कर दिया। रविवार को उनकी दुकान बंद रहती थी, लेकिन सोमवार को मेरे लिए कुछ न कुछ लेकर आती थी। कभी ऑरेंज कभी एवाकाडो। मेरे बहुत कहने पर भी उन्होने कभी पैसे नहीं लिए।
खैर तीन महीना का समय गुजर गया, अब मुझे लौटना था। संडे दिन में 12:00 बजे की फ्लाइट थी दार ए सलाम से नैरोबी, नैरोबी से मुम्बई। 3 माह बाद स्वदेश और घर वापसी का समय था, तो मैं बहुत खुश था। 9:00 बजे मैं रिसेप्शन पर आया, बिल सेटल करने के लिए। पहले ही टैक्सी बुला ली थी। बिल सेटल कर होटल गेट से बाहर निकला। गेट पर वह महिला खड़ी थी, मैंने उन्हें नमस्कार किया और पूछा, आज तो संडे है, आपकी दुकान तो बंद होगी। आज इस ओर कैसे! उन्होंने कहा, वह मुझे सी आफ (विदा) करने आई हैं, मैंने उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने एक पैकेट मुझे थमाया। मैंने पैकेट खोल कर देखा, उसमें 1 किलो काजू का पैकेट और कुछ ऑरेंज थे। मैंने अपना पर्स खोल कर उन्हें पैसे देने की कोशिश की। उनका कहना था, काजू मुझे घर ले जाने के लिए दिया है, और ऑरेंज रास्ते में खाने के लिए। मैं भाव विह्वल हो गया, मेरे बहुत जिद करने पर भी उन्होंने पैसे नहीं लिए। मैं उनके पैर छूकर निकल पड़ा, मुड़ कर देखा तो वह हाथ हिला रही थी।
दूसरी दफा जब मैं तंजानिया गया, तो मैं उनके लिए एक शॉल लेकर गया। वे बहुत खुश हुई, अब भी तंजानिया जाता हूं, तो उनकी दुकान पर जाता हूं, बहुत खुश होती है मुझे देख कर।
आप को पता नहीं होता कि, जो आपके लिए आज अंजान है, उसका कोई व्यवहार आपके दिल को छु सकता है। कुछ रिश्ते भाषा और सीमा से परे होते हैं

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