Home Interesting Experiences ना कह पाने की व्यथा की कथा

ना कह पाने की व्यथा की कथा

by Rajesh Budhalakoti

यात्रा ए लेह
जब भी किसी मित्र को यात्रा वृतांत अथवा किस्से कहानियां सुनाते पाते है तो बड़ा रश्क होता है कि देखो, कितना भाग्यशाली है, जो अपने अनुभव किस्से कहानियों को इतने सुन्दर अंदाज में बया कर दिल की बात कह डालने के सुख को अनुभव कर रहा है। क्योकि हमे जिंदगी ने ये सुख नहीं दिया और जिंदगी भर अच्छे वक्ता के बजाय अच्छे श्रोता ही बने रहे।
एक अभिन्न मित्र, दफ्तर के काम से लेह यात्रा पर गए, किसी विशेष मंतव्य को पूरा करने। वहाँ से वापसी के पश्चात उनकी लेह यात्रा का जीवंत वर्णन सुनने को मिला, बड़ा ही रोचक लगा। धीरे धीरे हर मुलाकात में चाय कॉफ़ी के साथ उसी यात्रा का वर्णन, कैसे गए, कहा रुके, क्या खाया, कौन मिला, उसी क्रम में चलने लगा। और अब तो हमको तक याद हो गया के गेस्ट हाउस के चपरासी का क्या नाम था, ड्राईवर उमेश ने अगर ब्रेक न लगाये होते तो ये किस्से कहानी न सुनने पड़ते, उनका स्वागत सत्कार कहाँ – कहाँ, कैसे – कैसे हुआ आदि आदि…

कालान्तर में हमको भी अपने मित्रो के साथ लेह जाने का मौका मिला। लेह भ्रमण की ख़ुशी से ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि, अब हम भी चटखारे ले ले कर अपने मित्रो,  रिश्तेदारों को लेह यात्रा का नख शिख वर्णन सुनाएंगे, और अपने अनुभवो से उनको लाभान्वित करेंगे। श्रीमतीजी तो अपनी डायरी में यात्रा की छोटी से छोटी बात नोट करती जा रही थी। पर हाय री किस्मत जैसे ही हम अपनी लेह यात्रा का वर्णन प्रारम्भ करते, उनके मोहल्ले के किसी लड़की के भाग कर शादी करने का किस्सा आड़े आ जाता और हमारी लेह यात्रा की किस्से सुनाने का अवसर मिलते मिलते रह जाता

जब भी कोई मेहमान घर आता, तो हम दोनों का चेहरा चमकने लगता कि आज तो लेह यात्रा के वर्णन से मेहमान का मनोरंजन अवश्य करना है, और चाय पकोड़े खिलाने के बाद हम उनके एकलौते पुत्र को सफल इंजीनियर बनाने में उनके द्वारा किये सांघर्षो और त्याग की कहानी सुन रहे होते और उनके जाने के बाद याद आता के हम तो लेह यात्रा का जिक्र तक न कर पाये, और उन्होंने अपने पुत्र को सफल इंजीनियर तक बना डाला

अभी बीच में एक मित भाषी मेहमान घर पधारे तब लगा, आज अवश्य लेह यात्रा का वर्णन मित भाषी मेहमान से साझा कर हमे भी अपनी बात कहने का सुख मिलेगा पर शिमला से निकल मंडी भी नहीं पहुचे मेहमान ने दो बार पानी माग लिया। पानी पिला यात्रा मंडी से आगे बढ़ती, उनकी झल्लाहट उनके हाव भाव से बया होने लगी, एक मिनट में जब चार बार उन्होंने उबासी ले ली तो हार कर हमे अपनी लेह यात्रा, मनाली से पहले ही समाप्त करने पड़ी

अंत में जब किसी ने हमारी इस लेह यात्रा के वर्णन को नहीं सुना तो थक हार कर श्रीमती जी ने यात्रा वर्णन को कलमबद्ध कर नेट पर डाला, और ये कथा, किसी को न सुना पाने की व्यथा से मुक्त किया


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