बढ़ता निजीकरण और उसका आम जन पर प्रभाव

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Privatization

क्या आप जानते हैं की निजीकरण क्या होता है? निजीकरण से क्या तात्पर्य है?

​भारत में निजीकरण का कार्यक्रम विनिवेश तक ही सीमित नहीं है । औघोगिक एवं व्यावसायिक लाईसेन्स की नीति, विदेशी विनिमय की नीति, आयात-निर्यात की नीति तथा कर-नीति को उदार बनाकर निजी क्षेत्र के निवेशकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

​अब निजी क्षेत्र के किसी प्रतिष्ठान के राष्ट्रीयकरण की बात नहीं हो रही है। रणनीतिक क्षेत्र जैसे सुरक्षा, उर्जा, रेलवे आदि को छोड़कर अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों के अंश निजी निवेशकों के हाथ बेचे जा रहे हैं या उन पर विचार किया जा रहा है। कई क्षेत्र शत-प्रतिशत निवेश के साथ विदेशी निवेशकों के लिए खोल दिए गए हैं भारतीय निवेशकों के साथ मिलकर अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेशको की भागीदारी में उत्तरोत्तर वृद्धि की जा रही हैं ।

​आज के आधुनिक काल में निजीकरण बहुत अधिक बढ़ गया है। सबसे ज्यादा निजीकरण शिक्षण संस्थानों में देखा जा रहा है, अब तो बहुत सारे सरकारी तंत्र भी निजीकरण पर उतारू हैं, सरकार को इससे होने वाले नुकसान दिखाई नहीं देते या इससे होने वाले या मिलने वाले मुनाफे को सरकार अपने कुछ चयनित उद्योग पतियों और कुछ चुनिंदा लोगों की ही जेब में जाने देना चाहती है। क्या जो काम निजी कंपनियां कर सकती हैं, क्या वही काम सरकारी तंत्र नहीं कर सकता?

​निजीकरण के बहुत से मामले सामने आ रहे हैं उत्तराखंड बीते वर्ष 2019 में बिजली कर्मचारी संगठनों ने केंद्र सरकार पर ऊर्जा सेक्टर को निजी हाथों में देने का आरोप लगाया। संगठनों ने बिजली कंपनियों को ऊर्जा निगम के खातों से सीधे पैसे निकालने का अधिकार देने का विरोध किया। यहां तक कुछ कार्यों को तो निजीकरण में दे भी दिया गया है, जिससे कई प्रकार की समस्याएं सामने आती हैं। जैसे की क्या उन व्यक्तियों को उचित वेतन प्राप्त होता है, जिन्हे निजीकरण से ठेकेदारों ने रखा है। सरकार के द्वारा टेंडर में प्रति व्यक्ति जो शुल्क देह होता है क्या उसके बारे में सरकार का कभी पूछना नहीं बनता है। सरकारी विभाग में कितने ही पद खली रहते हैं, यदि आप उत्तराखंड के किसी भी बिजली विभाग में पता करेंगे, तो आपको पता चलेगा की कहीं पर ऑपरेटर नहीं हैं। तो कहीं पर बिल डिस्ट्रीब्यूटर और जो कर्मचारी निजीकरण के तहत रखे गए है उन्हें 6-7 हज़ार के वेतन में 2-3 कर्मचारियों का काम कराया जाता है, आज अत्यधिक बिजली विभाग कर्मचारियों का निजीकरण हो चूका है, यदि सरकार ही निजीकरण की पॉलिसी में खुद से काम करे और किसी भी सरकारी अधिकारी के प्रारंभिक वेतन जो की कम से कम 20-25 हज़ार होता है, यदि सरकार उसमे 2 कर्मचारी रखे, तो काम भी समय में होगा और बेरोजगारी दर में भी कमी आएगी।

​रेलवे का निजीकरण किस प्रकार होगा?

​वर्तमान में देश में 13 हजार ट्रेनें चल रहीं हैं और डिमांड और सप्लाई के बीच समानता लाने के लिए 7 हजार ट्रेनें और चलायीं जायेंगीं। वर्तमान में इन ट्रेनों का रेगुलेशन और मैनेजमेंट इंडियन रेलवे ही करता है, लेकिन अब मैनेजमेंट का काम प्राइवेट प्लेयर्स के हाथ में चला जायेगा। इसी दिशा में कदम उठाते हुए, भारत सरकार ने इंडियन रेलवे के निजीकरण की दिशा में कदम उठाते हुए 109 रुट्स पर 152 यात्री ट्रेनें चलाने के लिए प्राइवेट पार्टीज को इनविटेशन दिया है।

​रेलवे के निजीकरण से लाभ और नुकसान –

​1. सरकार का तर्क है कि निजी भागीदारी के तहत बनने वाली सभी ट्रेनें ‘मेक इन इंडिया’ प्रोजेक्ट के तहत बनेंगी, जिससे रोजगार पैदा होगा जो कि एक बहुत छोटा तर्क है क्योंकि ट्रेनें बिना निजी सेक्टर को दिए बिना भी ‘मेक इन इंडिया’ प्रोजेक्ट के तहत बन सकतीं हैं।

​2. ट्रेनों का रखरखाव निजी क्षेत्र द्वारा किया जायेगा जिससे उनमें साफ सफाई रहेगी।

​(प्रश्न यहाँ यह उठा है की क्या बिना निजीकरण के साफ़ सफाई नहीं रहेगी?)

​3. निजी क्षेत्र में जाने से ट्रेनें समय पर पहुंचेगीं। यह तर्क भी बहुत मजबूत नहीं है, क्योंकि सरकार उन कमियों को दूर कर सकती है जिसकी वजह से ट्रेनें लेट होतीं हैं। निजी प्लेयर ऐसा क्या करेंगे कि ट्रेनें लेट नहीं होंगी? यदि निजी प्लेयर्स ट्रेनें लेट होने से रोक सकते हैं तो फिर सरकार क्यों नहीं?

​4. रेलवे के निजीकरण से सबसे बड़ा नुकसान यह है, कि इससे बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियां ख़त्म होंगीं, क्योंकि निजी प्लेयर्स कम लोगों से ज्यादा काम करवाकर लाभ अधिकतम करना पसंद करेंगे, जिससे कर्मचारियों का शोषण होता है।

​5. निजीकरण का सबसे भयंकर प्रभाव रेलवे के किरायों में बढ़ोत्तरी का होगा जिसे गरीब और मध्यम वर्ग बर्दाश्त नहीं कर पायेगा।  ऐसा कहा जा सकता है कि रेलवे का निजीकरण ठीक वैसा ही परिणाम लायेगा जैसा कि सरकारी और निजी स्कूलों के बीच है।

उत्तराखंड में कुछ राजकीय आई टी आई के भीतर कर्मचारियों का भी निजीकरण होने की तैयारीयां चल रही हैं, जिसके चलते वे पद भरे जायेगे जो बहुत समय से रिक्त चल रहे हैं। उत्तरप्रदेश के एक न्यूज़ पेपर ने इसकी पुष्टि भी की है की उत्तरप्रदेश में आई टी आई में निजीकरण की तैयारीयां शुरू हो चुकी हैं।

​शिक्षा विभाग भी यदि अपनी नई शिक्षा निति के साथ-साथ शिक्षा में निजीकरण और ठेकेदारी प्रक्रिया अपनाता है तो इसकी कई हानियां हो सकती हैं। जबकि, एक तरफ शिक्षा के निजीकरण से शिक्षा व्यवस्था में कुछ अनुकूल परिवर्तन आया है, वहीं दूसरी तरफ, इसने गंभीर समस्याओं को भी जन्म दिया है जिनका यदि समय रहते समाधान नहीं किया गया तो ये देश की नींव को हिला सकती है।

​शैक्षिक संस्थानों के प्रशासकों के लिए समय आ गया है कि शिक्षा की पवित्रता और महत्ता को महसूस करें और इसका व्यवसायीकरण न करें। यह सरकार की जवाबदेही है कि उचित कानून बनाकर शिक्षा के निजीकरण से उत्पन्न समस्याओं को रोके ताकि देश की नींव को सुरक्षित रखा जा सके।

निष्कर्ष:

​निजीकरण का उद्देश्य केवल उत्पादकता और लाभदायकता में सुधार करने तक ही सीमित नहीं है। इन उद्देश्यों की पूर्ति से तो केवल अंशधारी या निवेशक लाभान्वित होंगे निजीकरण का लाभ उपभोक्ताओं को भी प्राप्त होना चाहिए।

​यह तभी संभव है जब उन्हें उच्च-स्तर की वस्तु और सेवा कम कीमत पर उपलब्ध हों। अपेक्षाकृत गरीब उपभोक्ताओं के लिए विभेदात्मक न्यून कीमत की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि उपभोक्तावाद की वर्तमान सस्कृति में वे भी अपने रहन-सहन के स्तर को यथासंभव नया आयाम दे सकें।

​निजीकरण के कार्यक्रम न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप विनियमन और उदारीकरण के वातावरण में चलाये जाते हैं। अर्थव्यवस्था बाजारोंमुखी और अति प्रतिस्पर्धात्मक हो जाती है और इसका स्वाभाविक लाभ उपभोक्ताओं को प्राप्त होता है।

निजीकरण के सम्बन्ध में आपके क्या विचार है, नीचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते है

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6 COMMENTS

  1. Sir
    आप ये बताइए, आप प्राइवेट courier service choose करेंग करेंगे या फिर पोस्ट ऑफिस द्वारा डांक भेजना प्रिफर करेंगे?
    आपका लेख का आधा हिस्सा, सिर्फ सवाल उठाता है, समाधान नहीं सुझाता।
    सरकार का निर्णय बिल्कुल सही है। सरकार का काम facilator का होना चाहिए, व्यापारी का नहीं।
    सरकारी उपक्रम प्रायः लापरवाही से ही चलते हैं और घाटे में भी रहते हैं (BSNL, AIR INDIA, India Post आदि), रेलवे को छोड़ कर क्यूंकि वहां विकल्प नहीं है । इस सब में बर्बादी तो आप हम जैसे टैक्स payers के पैसों का ही होता है।

    • प्रिये दीपक जी मुझे अच्छा लगा आपने अपने विचार प्रकट किये, परन्तु आप मुझे ये बताईये की क्या जो प्राइवेट कंपनी जो कर सकती हैं वो काम सरकारी कंपनी नहीं कर सकती?
      रही बात लापरवाही की तो सरकारी मुलाज़िम आप और हम ही तो हैं और आपने मुझे सवाल पूछा है की आप कोन सी कूरियर सर्विस चुनगें, तो में आपको बताना चाहता हूँ, सरकारी कूरियर सर्विस भी बहुत अच्छी है। कोई भी सरकारी लेटर या आर्डर कभी लेट होता है क्या? मैं आपसे ये पूछता हुँ, की क्या आप जब बीमार होते है तो क्या आप सरकारी हॉस्पिटल मे जाते भी हैं और जाते भी हैं तो क्या उतना ही ध्यान रखते हैं, साफ़ सफाई का जितना किसी निजी हॉस्पिटल में रखते है?
      जॉब सबको सरकारी चाहिए परन्तु शिक्षा के लिए स्कूल प्राइवेट जब तक हम अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं भेजेंगे तो उन स्कूलों को तो बंद ही करना पड़ेगा।
      इस आर्टिकल में हमने किसी एक का पक्ष नहीं लिया है।

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