Home UttarakhandKumaonAlmora लोकगाथा और इतिहास के आईने में अल्मोड़ा नगर की स्थापना का इतिहास

लोकगाथा और इतिहास के आईने में अल्मोड़ा नगर की स्थापना का इतिहास

by Deepak Joshi
History of Almora in Folklore

मानव सभ्यता की बसावट के साथ ही अल्मोड़ा का अपना पृथक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व रहा है. लाखू उडियार, फलसीमा, कसार देवी जैसे शहर के निकट के ही के प्रागैतिहासिक स्थल मानव सभ्यता की बसावट को लेकर अल्मोड़ा शहर की ऐतिहासिकता का दर्शाते हैं. मानसखण्ड में उल्लेख किया गया है कि कोसी और सुयाल नदी के मध्य स्थित काषाय पर्वत है जिसके पश्चिमी भाग में विष्णु क्षेत्र है. इस विष्णु क्षेत्र को वर्तमान कचहरी परिसर से जोड़ा जाता है जिसे रामक्षेत्र कहा जाता है.

लोकगाथा के आईन में

अल्मोड़ा की स्थापना के सम्बन्ध में लोककथा प्रचलित है जिसका उल्लेख बद्रीदत्त पाण्डे ने कुमाऊं के इतिहास नामक पुस्तक में किया है. लोककथा के अनुसार चंद शासक उद्यान चंद के समय पं. श्रीचंद तिवारी नामक ब्राह्मण गुजरात के वड़नगर के आनन्दपुर नामक स्थान से काली कुमाऊं में आगमन हुआ. श्रीचंद के साथ उसका पुत्र श्री शुकदेव भी साथ थे. लड़के की काली कुमाऊं में राजा से भेंट हुई किन्तु श्रीचंद की भेंट न होने पर वे नाराज होकर काली कुमाऊं से बारामंडल की तरफ आ गये. बारामंडल क्षेत्र में इस समय कत्यूरी शासकों की विविध शाखाएं विभिन्न क्षेत्रों में शासन कर रहे थे.

श्रीचंद तिवारी जी ने खगमरा राजा के राजबाड़ी अथवा राजकीय उद्यान में अपना डेरा बनाया. राजा का माली राजा हेतु फल तोड़ के ले रहा था तब तिवारी जी ने उससे कहा इसमें जो नींबू है उसे राजा को मत खिलाना इसके अन्दर एक और नींबू है जो राजा के लिए अहितकर है. माली ने राजा को यह बात बताई किन्तु माली की बात अनसुनी कर राजा ने फल काटा तो उसके अन्दर से सच में एक नींबू निकला तब राजा ने पंडित जी को बुलवाया तथा बुरे वक्त से बचने का उपाय पूछने लगा तब तिवारी जी ने राजा से कहा कि जिस क्षेत्र में ये फल पैदा हुआ है वो क्षेत्र किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर दो. तब राजा ने कहा आपसे अधिक सुपात्र और कौन मिलेगा और भूमि दान कर दी.

लोककथा उल्लिखित उक्त क्षेत्र अल्मोड़ा में वर्तमान तिवारी खोला है जिसे श्रीचंद ने बसाया था. यह तिवारी खोला अल्मोड़ा शहर क्षेत्र की प्रथम बसावट और श्रीचंद तिवारी को अल्मोड़ा शहर का संस्थापक माना जाता है.

इतिहास के आईने में अल्मोड़ा

इतिहास के आईने में देखा जाय तो नगर की स्थापना को लेकर लोकगाथा वाले मत का ही अगला रूप ही प्रचलन में है क्योंकि इसका ऐतिहासिक स्वरूप इससे इतर नहीं है. खगमरा के कत्यूर शासक को पराजित कर चंद शासक भीष्म चंद ने खगमरा क्षेत्र में राजधानी निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया. राजधानी निर्माण कार्य में लगे भीष्मचंद की व्यस्तता का लाभ उठाकर रामगढ़ के गढ़पति गजुवा ठिंगा द्वारा हमला कर चंद सेना को परास्त किया तथा भीष्मचंद की हत्या कर दी. इसके बाद चंद सेना वापस चम्पावत गढ़ी लौट गये. सम्भवतः इस समय चन्दों में सत्ता संघर्ष का जटिल दौर चल रहा था. चूंकि भीष्म चंद के बाद पुनीचंद व रामचंद अल्पकालीक शासक रहे. इन दो शासकों के बाद बालो कल्याण चंद का शासन शुरू हुआ जिसने भीष्मचंद के सपने को साकार करते हुए पुनः रामक्षेत्र का विजित कर लगभग 1563 में आलमनगर की स्थापना की.

बालो कल्याण चंद ने जिस स्थान पर आलमनगर को बसाया था वह स्थान कत्यूरी शासक द्वारा प्रदत्त श्रीचंद तिवारी के अधिकार क्षेत्र में था. बालो कल्याण चंद ने श्रीचंद तिवारी को प्राप्त सनद मंगवाई तथा खालसा भूमि (राजा के अधीन की भूमि जिसका राजस्व राजा के खर्च हेतु प्रयुक्त होता है.) तथा श्रीचंद तिवारी की भूमि को पृथक करके श्रीचंद के वंशजों को कुछ मुआवजा दिया एवं छखाता परगने के अधीन नदीगांव में दस गुना अधिक भूमि दान कर वर्तमान अल्मोड़ा नगर को राजधानी के रूप में स्थापित किया.

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