उत्तराखंड राज्य की बात करें तो यह एक पर्वतीय राज्य है पहाड़, गाड़, गधेरे इस राज्य को विरासत में मिले हुए हैं । इन्हीं प्राकृतिक संपदाओं से राज्य की एक विशिष्ट पहचान बनी हुई है ।।
आज हम बात करेंगे लिगुंण की जो कि एक जंगली पौधा है और सिर्फ पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है गजब का स्वाद तथा औषधीय गुणों से भरपूर है लिगुंण।
यह ना सिर्फ उत्तराखंड बल्कि भारत के अनेक पहाड़ी राज्यों में प्राकृतिक तौर से उगता है इसमें प्रमुख राज्य हैं जम्मू कश्मीर, हिमाचल, सिक्किम और अन्य पहाड़ी राज्य। अलग-अलग क्षेत्रों में इसे विभिन्न नामों से पहचाना जाता हैै।
उत्पादन की बात करें तो लिगुंण प्राकृतिक तौर से गाड़-गधेरों तथा नमी वाले क्षेत्रों के आसपास उगता है । वैसे तो यह वर्ष भर उगता रहता है परंतु यह खाने योग्य वर्ष के सिर्फ कुछ महीने रहता है जिसमें मार्च से लेकर अगस्त तक उत्तम है।
शुरुआती तौर पर कुंडली बनाए हुए तने के तौर पर विकसित होता है जोकि बरसात का मौसम खत्म होते-होते बड़े झाड़ के रूप में फैलने लगता है। इसकी कोमल पत्तियां बड़े तथा कठोर पत्तों में बदल जाती हैं।
सेवन की बात करें तो इसकी पहचान होना अति आवश्यक है वरना यह खतरनाक साबित हो सकता है, और मुख्यतः यह दो प्रकार का होता है ।।
(१) हल्का हरा तथा हल्के भूरे रेशे और छोटा पौधा इस प्रकार के पौधे को ग्रामीण जहरीला बताते हैं तथा इसका सेवन करने से बचते हैं।
(२) गहरा हरा काले रेेेशे आकार में थोड़ा बड़ा लिगुंण उपयोग हेतु सर्वोत्तम है।
औषधीय गुणों के नजरिए से देखें तो यह मधुमेह की समस्या तथा पेट की समस्या और फोड़े फुंसी आदि में एक कारगर दवा का काम करती है पोषक तत्वों की बात करें तो इसमें कैल्शियम, पोटेशियम तथा आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
ग्रामीण बताते हैं कि यह आकाशीय बिजली के कड़कने के साथ उगते हैं , क्योंकि यह एक जंगली पौधा है तो इसके उगने पर देखभाल की कोई आवश्यकता नहीं होती।
इन्हें जंगल से लाने के लिए सावधानी तथा अनुभव की जरूरत है, फिर इन्हें गर्म पानी से धोकर इसके काले रेशे निकाल लिए जाते हैं बाद में छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर इसे प्याज तथा लहसुन के साथ भूना जाता है ।हल्के मसाले तथा बिना पानी डालें यह टपकी के रूप में इस्तेमाल जाती है
गांवो से सटे छोटे कस्बे या बाजारों में यह पौधा बिकने हेतु कभी कभार उपलब्ध मिल जाता है
उपलब्धता होने पर इसका स्वाद लेना ना भूलें धन्यवाद।।