हिमालय दिवस के जरिये हिमालय के संरक्षण की मुहिम अब दस साल पूरे कर चुकी है। इस बार हिमालय दिवस का हॉट स्पॉट दिल्ली है। उपराष्ट्रपति एम.वैंकेया नायडू, केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक सहित अन्य कई केंद्रीय मंत्री इस बार हिमालय के संरक्षण पर मंथन करेंगे।
हिमालय जम्मू कश्मीर से लेकर अरुणांचल तक फैली यह श्रृंखला भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। भारत की जलवायु , मौसम चक्र , किसानों की आजीविका , भारत का बहुत बड़ा आर्थिक क्षेत्र भी हिमालय पर निर्भर करता है। हिमालय भारत का जीवन आधार है। अतः इसका संरक्षण बेहद जरूरी है।
जलवायु परिवर्तन के कारण आज हिमालय के 26 ग्लेशियर , यहां की नदियों के जलस्तर में बहुत तेजी से परिवर्तन हो रहा है। कई नदियां तो केवल बरसात पर निर्भर हो गयी है। नदियों में इस परिवर्तन के कारण खेती पर विपरीत असर है। सदियों से सुरक्षित माने जाने वाले गांव और शहर प्राकृतिक आपदाओं के कारण असुरक्षित हो गए हैं। इतनी चिंता होने के बाद भी अभी तक हिमालय के संरक्षण की मुहिम कुछ खास दिन और वर्ग तक ही सीमित रही। 2019 में हिमालय राज्यों ने एकजुट होने की पहल की थी।इस बार एकजुटता की ये मुहिम अब और आगे बढ़ सकती है। जानकारी के मुताबिक इस बार के दिल्ली में आयोजित मुख्य आयोजन में सभी वर्गों को साथ में लेने की रणनीति तय की जा सकती है। हैस्को के संस्थापक निदेशक अनिल जोशी के मुताबिक हिमालय संरक्षण की मुहिम को सिर्फ कुछ राज्यों तक सीमित न रहने देने पर भी बात की जाएगी।
आयोजन में हिमालय संरक्षण के लिए अधिक जानकारी जुटाने, नए शोध और समस्याओं को भली भांति समझने के लिए नए प्रस्तावों पर भी बात की जा सकती है। 2006 में योजना आयोग की ओर से गठित माउंटेन टास्क फोर्स ने भी यह मामला उठाया था। टास्क फोर्स ने एक अंब्रेला संस्थान का सुझाव भी दिया था। पर्वतीय राज्यों की ग्रीन बोनस की मांग पुरानी है और इस पर हर बार बात भी होती है। अब हिमालयी राज्य ग्रीन अकांउटिंग के जरिये पुख्ता दावे के साथ मैदान में हैं। 15वें वित्त आयोग ने वनों को अधिमान देकर राज्यों के इस दावे को कुछ हद तक स्वीकार भी किया है।
दस साल का सफर पूरा
वैसे तो संरक्षण हिमालय की प्रकृति में ही शामिल है। यही गुुण हिमालय की गोद में पलने वाले लोगों का भी है। चिपको से लेकर मैती, अन्य कई आंदोलनों और अब हरेला से यह साबित भी हुआ है।
इतना होने पर भी हिमालय दिवस राज्य के गठन के बाद की उपज है। आंदोलन से उपजे राज्य को तेज विकास की दरकार थी। यह कोशिश राजनीतिक रूप से औद्योगिक विकास के रूप में सामने भी आई, लेकिन इसने मैदान और पहाड़ में विषमता का बीज भी बो दिया। प्रदेश के कुछ हिस्से पीछे छूट गए। विकास के विमर्श से हिमालय संरक्षण की एक और मुहिम निकली।
जानकारों के मुताबिक 2010 में सुंदरलाल बहुगुणा, राधा बहन और अनिल जोशी की संयुक्त कोशिश से हिमालय दिवस का आयोजन हुआ। इसके बाद यह काफिला बढ़ता ही चला गया। हिमालय दिवस के आयोजनों में कुछ झिझकते और कुछ ठिठकते हुए सरकार भी शामिल हुई। गैर सरकारी संगठन भी सामने आए।
2014 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने हिमालय दिवस को आधिकारिक रूप से मनाने की घोषणा की। यह अकारण नहीं है कि उस समय तत्कालीन प्रदेश सरकार की इस घोषणा को विपक्ष ने हाथों-हाथ लिया, बल्कि यह प्रस्ताव ही विपक्ष की ओर से आया था।
2019 में इस मुहिम ने एक मुकाम और हासिल किया। प्रदेश सरकार ने मसूरी में 11 हिमालयी राज्यों का कान्क्लेव आयोजित किया। इसी से उपजा हिमालय बचाओ का मसूरी घोषणा पत्र। इस घोषणा पत्र में सभी पर्वतीय राज्यों ने एकजुट होकर हिमालय की रक्षा का संकल्प लिया, एक दूसरे से तकनीक और प्रौद्योगिकी के आदान प्रदान पर सहमति जताई और केंद्र से ग्रीन बोनस, अलग पर्वतीय मंत्रालय आदि की मांग की।
हिमालय के लिए अब अलग नीति बनाने की जरूरत
हिमालय के लिए अब अलग से नीति बनाने की जरूरत है। हिमालय में बड़े निर्माण कार्यों से जल स्रोत, तालाब और चाल-खाल को भी नुकसान पहुंच रहा है। हिमालय में बेहद चौड़ी सड़कों के कारण बिगड़ती स्थिति को समझना भी जरूरी हो गया है। हिमालय दिवस पर हम सबसे पहले निवेदन करना चाहते हैं कि हिमालय की कमजोर पर्वतमालाओं के विषय पर विचार किया जाए। जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए स्थानीय सहयोग से स्थायी विकास का मॉडल तैयार होना चाहिए। जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान की ओर से हिमालय बचाने की पहल पर ध्यान देकर अलग हिमालय नीति बनाने की जरूरत है।
– सुरेश भाई, पर्यावरणविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता