नन्दा देवी: उत्तराखंड की पूजनीय देवी की कथा

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Maa Nanda Devi Mountains Uttarakhand

उत्तराखंड की संस्कृति में नन्दा देवी का नाम विशेष स्थान रखता है। उन्हें हिमालय की राजकुमारी, पार्वती का अवतार और पूरे कुमाऊँ और गढ़वाल की रक्षक देवी माना जाता है। नन्दा देवी का नाम आते ही श्रद्धा, शक्ति, और आस्था का अनुभव होता है। यह लेख नन्दा देवी की कथा, उनकी धार्मिक महत्ता, और विशेष नन्दा राजजात यात्रा के बारे हैं, जो हर बारह साल में आयोजित होती है और इस यात्रा का केंद्र बिंदु नन्दा देवी होती हैं।


नन्दा देवी की पौराणिक कथा

नन्दा देवी की पौराणिक कथा भारतीय हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। देवी नन्दा को हिमालय की देवी और कुमाऊं क्षेत्र की कुलदेवी माना जाता है।

नन्दा देवी का जन्म:

नन्दा देवी का जन्म ऋषि कश्यप और कांची देवी के यहाँ हुआ था। कांची देवी हिमालय क्षेत्र की प्रमुख देवी थीं, और देवी नन्दा को हिमालय की कन्या के रूप में पूजा जाता है। देवी नन्दा का विवाह भगवान शिव से हुआ था, और उनके साथ देवी ने पर्वतीय क्षेत्र में जीवन व्यतीत किया।

नन्दा और भगवान शिव:

कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी नन्दा का विवाह एक दिव्य और पवित्र संबंध था। यह विवाह केवल सांसारिक नहीं था, बल्कि इसमें आध्यात्मिक और धार्मिक शक्ति का समावेश था। नन्दा देवी का स्थान हिमालय के कुमाऊं क्षेत्र में बताया जाता है, जहाँ उन्हें हिमालय की बेटी माना जाता है।

नन्दा देवी और उनका पर्वतीय स्थान:

नन्दा देवी का स्थान मुख्यतः नन्दा देवी की श्रृंखला के रूप में पहचाना जाता है। यह पर्वत श्रृंखला उत्तराखंड राज्य में स्थित है और इसे देवी नन्दा की पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इस श्रृंखला के शिखर पर नन्दा देवी पर्वत स्थित है, जो 7,816 मीटर (25,643 फीट) ऊँचा है। यह पर्वत भारतीय उपमहाद्वीप का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है और यह देवी नन्दा की शक्ति और दिव्यता का प्रतीक है।

नन्दा देवी की पूजा:

नन्दा देवी की पूजा का एक विशेष रूप है जिसे नन्दा चौथ कहते हैं। यह पर्व कुमाऊं क्षेत्र में खासतौर पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। नन्दा चौथ में देवी की पूजा की जाती है, जिसमें विशेष रूप से नन्दा देवी का रथ कुमाऊं के विभिन्न इलाकों में यात्रा करता है और लोग रथ की पूजा करते हैं। यह पर्व एक धार्मिक और सांस्कृतिक महोत्सव का रूप ले चुका है।

नन्दा देवी को कुमाऊं की कुलदेवी के रूप में माना जाता है और कुमाऊं के लोगों का विश्वास है कि देवी नन्दा उन्हें अपनी आशीर्वाद देती हैं। यही कारण है कि कुमाऊं क्षेत्र में नन्दा देवी के पूजा स्थल की अत्यधिक मान्यता है।

नन्दा देवी के महत्व के कारण:

  1. धार्मिक महत्व: नन्दा देवी का पूजा स्थल कुमाऊं क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में से एक है। नन्दा देवी को हर घर में पूजा जाती है और विशेष रूप से नन्दा चौथ पर उनका पूजन अत्यधिक श्रद्धा से किया जाता है।
  2. सांस्कृतिक महत्व: नन्दा देवी की पूजा कुमाऊं क्षेत्र के लोककला, संगीत, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ी हुई है। उनके सम्मान में कई मेले, उत्सव और रैलियाँ आयोजित की जाती हैं।
  3. ऐतिहासिक महत्व: नन्दा देवी का पर्वतीय क्षेत्र कुमाऊं की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है। यहां के पहाड़ों पर देवी की उपस्थिति से लोगों को शक्ति और सुरक्षा का आभास होता है।

नन्दा देवी और उनके संबंधी पर्वत:

नन्दा देवी पर्वत श्रृंखला की उपस्थिति इस क्षेत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को और बढ़ाती है। यह पर्वत हिमालय की सबसे ऊँची चोटियों में से एक है और इसे पूजा का एक प्रमुख स्थल माना जाता है। नन्दा देवी पर्वत और अन्य चोटियों का दृश्य भक्तों को अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति का अहसास कराता है।

नन्दा देवी का कुमाऊं क्षेत्र में योगदान:

कुमाऊं क्षेत्र के लोग नन्दा देवी की पूजा करते हुए अपने जीवन के सभी पहलुओं को धर्म, संस्कृति और आस्था से जोड़ते हैं। उनका विश्वास है कि देवी नन्दा से उनके जीवन में सुख, समृद्धि, और सुरक्षा मिलती है। यही कारण है कि नन्दा देवी की पूजा से जुड़ी परंपराएँ और उत्सव आज भी कुमाऊं क्षेत्र में जीवित हैं और इनका आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है।

पार्वती के तपस्या और शिव से विवाह के बाद, नन्दा देवी का स्थान विशेष बन गया। कहा जाता है कि शिव और पार्वती ने हिमालय में तपस्या के लिए कड़ी मेहनत की और इसी के प्रतीक रूप में कुमाऊँ और गढ़वाल में उनकी प्रतिष्ठा स्थापित हुई। यहाँ तक कि उनकी उपस्थिति को महसूस करने के लिए लोग नन्दा देवी के मंदिरों की यात्रा करते हैं और उनकी पूजा करते हैं।


नंदा देवी के प्रमुख मंदिर

  1. नंदा देवी मंदिर, अल्मोड़ा
    अल्मोड़ा में स्थित नंदा देवी का यह मंदिर प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र में नंदा देवी की प्रमुख पूजा स्थली है और यहाँ नंदा अष्टमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। अल्मोड़ा के नंदा देवी मंदिर में देवी के साथ उनके अन्य रूपों की भी पूजा होती है, और इसे स्थानीय लोग गहरी आस्था से पूजते हैं।
  2. नंदा देवी मंदिर, नैनीताल
    नैनीताल में स्थित नंदा देवी का मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ नंदा अष्टमी और नंदा महोत्सव के दौरान हजारों श्रद्धालु देवी के दर्शन और पूजा के लिए आते हैं। नैनीताल का यह मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है, जहाँ नंदा देवी की प्रतिमा के दर्शन से भक्तों को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  3. नंदा देवी मंदिर, जोशीमठ
    जोशीमठ में स्थित यह नंदा देवी का मंदिर जोशीमठ का प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहाँ हर बारह साल में नंदा देवी राजजात यात्रा का आयोजन होता है, जो जोशीमठ से लेकर नंदा देवी के पवित्र स्थल तक जाती है। यह यात्रा पूरे क्षेत्र में आस्था और उत्साह के साथ मनाई जाती है।
  4. नंदा देवी मंदिर, मुनस्यारी
    मुनस्यारी में स्थित नंदा देवी का यह मंदिर हिमालय की गोद में बसा हुआ है, और यहाँ से नंदा देवी पर्वत का दृश्य भी देखा जा सकता है। मुनस्यारी के लोग विशेष रूप से नंदा देवी की पूजा करते हैं, और यहाँ से नंदा अष्टमी पर्व का आयोजन किया जाता है।
  5. नंदा देवी मंदिर, बागेश्वर
    बागेश्वर में भी नंदा देवी का मंदिर स्थित है, जहाँ हर साल नंदा अष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। यह मंदिर स्थानीय भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जहाँ भक्त नंदा देवी की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

नन्दा देवी न केवल एक देवी हैं बल्कि उन्हें समूचे क्षेत्र की रक्षक के रूप में देखा जाता है। जब लोग कठिनाइयों और विपत्तियों में होते हैं, तो नन्दा देवी से प्रार्थना करते हैं और उनकी शक्ति पर विश्वास करते हैं। माना जाता है कि देवी नन्दा अपने भक्तों को कष्टों से मुक्ति दिलाती हैं और उनके जीवन में शांति का संचार करती हैं।

माँ नन्दा देवी के मंदिर अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, चमोली सहित कुमाऊँ और गढ़वाल में कई स्थानों में है। इन स्थानों पर नन्दा देवी की पूजा में विशेष आस्था रखी जाती है। हर वर्ष नन्दा अष्टमी के समय देवी की पूजा पूरे हर्षोल्लास के साथ होती है और श्रद्धालु देवी का आशीर्वाद पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं।


नन्दा देवी राजजात यात्रा

उत्तराखंड की सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक यात्राओं में से एक है नन्दा देवी राजजात यात्रा। यह यात्रा हर बारह वर्षों में होती है और इसमें हजारों भक्त नन्दा देवी के सम्मान में शामिल होते हैं। राजजात यात्रा का आरंभ कर्णप्रयाग से होता है और यह हिमालय की दुर्गम घाटियों, नदियों और ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से होकर गुजरती है।

इस यात्रा में नन्दा देवी की प्रतिमा को विभिन्न देवी-देवताओं के प्रतीकों के साथ ले जाया जाता है। यह एक सामूहिक उत्सव होता है जिसमें न केवल उत्तराखंड बल्कि अन्य राज्यों और यहाँ तक कि विदेशों से भी लोग शामिल होते हैं। यात्रा के दौरान भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ और धार्मिक आयोजन होते हैं। लोग नन्दा देवी से प्रार्थना करते हैं कि वे उनकी जिंदगी में सुख-शांति बनाए रखें।

राजजात यात्रा के प्रमुख स्थान:

  • नौटी गाँव: यात्रा का प्रारंभ बिंदु।
  • बेदनी बुग्याल: हरे-भरे बुग्याल जहाँ भक्त रुकते हैं और विशेष पूजा की जाती है।
  • होमकुंड: यात्रा का अंतिम पड़ाव जहाँ देवी को विदा दी जाती है।

नन्दा देवी और लोक आस्थाएँ

नन्दा देवी के प्रति गहरी आस्था रखने वाले लोग उन्हें कुमाऊँ और गढ़वाल के हर घर में पूजते हैं। उनके बारे में कई लोककथाएँ भी प्रचलित हैं, जिनमें से एक यह है कि नन्दा देवी ने एक बार अपने भक्तों को बचाने के लिए भयंकर राक्षस का संहार किया था।

इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि नन्दा देवी आज भी हिमालय में निवास करती हैं और अपने भक्तों को हर संकट से बचाती हैं। उनका नाम लेकर लोग कई कठिनाइयों में धैर्य प्राप्त करते हैं। उनके प्रति आस्था इतनी गहरी है कि उत्तराखंड के लोग उन्हें अपने जीवन का अभिन्न अंग मानते हैं।


सांस्कृतिक महत्व और विरासत

नन्दा देवी की पूजा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक आयोजन है जो समाज को एकजुट करने का कार्य करता है। नन्दा देवी के प्रति आस्था पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। यहाँ तक कि कई लोकगीत और लोकनृत्य भी नन्दा देवी के सम्मान में गाए जाते हैं।

कुमाऊँनी और गढ़वाली समाज में नन्दा देवी को लेकर जो भक्ति है, वह अपने आप में अनोखी है। इस क्षेत्र के लोग उन्हें अपनी बेटी की तरह मानते हैं जो समय-समय पर अपने मायके आती हैं। देवी नन्दा को कुमाऊँनी में ‘माँ’ के रूप में भी संबोधित किया जाता है, और उनके प्रति भक्ति में आदर, स्नेह और आस्था का अद्भुत संगम है

उत्तराखंड के हर कोने में नन्दा देवी के प्रति आस्था का यह अद्भुत रूप देखने को मिलता है। चाहे नन्दा देवी का मंदिर हो या राजजात यात्रा, हर स्थान पर उनके प्रति प्रेम और श्रद्धा की गूंज सुनाई देती है। नन्दा देवी केवल एक धार्मिक देवी नहीं हैं, बल्कि वह एक सांस्कृतिक प्रतीक हैं जो उत्तराखंड के समाज को जोड़ती हैं और उसे अपनी अनोखी पहचान देती हैं।

उत्तरपीड़िया पर इस लेख के माध्यम से हम नन्दा देवी की कथा, उनके प्रति आस्था, और उनकी महान यात्रा की महत्ता को हर पाठक के हृदय तक पहुँचाना चाहेंगे, ताकि यह सांस्कृतिक धरोहर सदा बनी रहे।

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