उत्तराखंड मे कई जगह कालू सैयद बाबा का मंदिर स्थित हैं। हल्द्वानी और इसके आस – पास के कई इलाकों में भी कालू सैयद बाबा का मंदिर स्थित है। यहां भक्तों की भीड़ दिन भर लगी रहती हैं। यहां भक्त बाबा को गुड़ की भेली का प्रसाद चढ़ाते हैं।
कालू सैयद बाबा एक तुर्क थे। इनका जन्म तुर्की में हुआ था। इन्होंने वहीं से अपनी धार्मिक शिक्षा ग्रहण की।
इनको आकाशीय आदेश हुआ कि वे हिन्दुस्तान जाकर हजरत निजामुद्दीन औलिया से रूहानी ज्ञान हासिल करे। इस प्रकार बाबा अफगानिस्तान के बीहड़ रास्ते को पैदल कर हिन्दुस्तान पहुंच गए। बाबा ने हजरत औलिया से आध्यात्मिक ज्ञान हासिल किया।
औलिया के दर पर कव्वाली की महफिलें लगती थी। ऐसी ही एक महफ़िल में बाबा ने एक कव्वाल से कहा जो चाहे मांग ले, समझदार कव्वाल ने कहा मेरी उम्र एक दिन और बड़ा दी जाए । इस मांग से बाबा का शरीर प्रताप और तेज से भर गया, उनके जिस्म में शोले उठने लगे।
यह खबर हजरत औलिया तक पहुंची, उन्होंने आकर बाबा को शांत किया। औलिया ने अपने चेलों से कहा कि कालू सैयद बाबा को हिमालय की गोद में ले जाया जाये, ताकि ठंडी हवा में उनके तेज की गरमी में थोड़ा कमी आये और वे खुदा की इबादत में गहरे डूब सकें।
कालू सैयद बाबा कई चेलों और एक सफ़ेद घोड़ा लेकर जसपुर, काशीपुर, कालाढूंगी, हल्द्वानी और रानीखेत होते हुए अल्मोड़ा पहुंचे और यहाँ इबादत करने लगे. इस यात्रा के दौरान उनके द्वारा किये गए चमत्कारों के किस्से आज भी मशहूर हैं.
प्रसाद मे बीड़ी चढ़ाने की परम्परा
हल्द्वानी और लोहाघाट में इन्हें गुड़ का प्रसाद चढ़ाया जाता है. बसानी में कालू सैयद बाबा को बीड़ी चढ़ाई जाती है। इस सम्बन्ध में कहावत है कि एक बार यहाँ एक बूढ़ा बाबा लोगों से बीड़ी मांग रहा था और बदले में कुछ भी मांग लेने का वादा कर रहा था। लोगों ने बीड़ी तो दी मगर बदले में कुछ माँगा नहीं। बीड़ी देने वालों ने कुछ दूर जाकर मुड़कर देखा तो बाबा गायब हो गए थे। तब से यहाँ यह चढाने की परम्परा बन गयी।
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