Home Poem पीर ये पहाड़ सी (कविता)

पीर ये पहाड़ सी (कविता)

by Nirmala Joshi
year end

बरस फिर गुज़र गया
तिमिर खड़ा रह गया
उजास की आस थी
निराश क्यों कर गया

शहर शहर पसर गया
साँस साँस खा गया
कोविड का साल ये
जहर जहर दे गया

सनसनी मचा गया
आँख हर भिगो गया
जीवन की आस थी
क्रूर काल बन गया

दंश हमें दे गया
बरस ही दहल गया
पीर ये पहाड़ सी
बरस हमें दे गया

झेल सब बरस गया
आस पर जगा गया
हिम्मत न हार कभी
जाते जाते कह गया

  • निर्मला जोशी ‘निर्मल’
    हलद्वानी,देवभूमि
    उत्तराखंड।

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