निर्मला जोशी सेवा निवर्त शिक्षिका है और अभी हाल मे उनकी कविताओ का सकलन 'निर्मल नीर' प्रकाशित हुआ है....
उनकी कविताए बेहद सारगर्भित तथा प्रेणना दायक होती है... वर्तमान मे वह कठघरिया, हल्द्वानी (जिला नैनीताल), उत्तराखंड मे निवास कर रही है।
कह डालो, कह डालो जो कहना है बाहर निकालो पर रोक लिया अंगद के पैर से जमे हुवे संस्कारों ने और….. अनकही रह गईं कुछ बातें उन अनकही बातों का स्वाद जब उभरता है आज तब बड़ा सुकून मिलता है अच्छा... Read more
आओ नूतन वर्ष मनाएं दस्तक देने लगा द्वार पर फिर से नूतन वर्ष कुछ करें नया ऐसा कि सबका हो उत्कर्ष आओ नई उमंगें जगाएं आशाओं के बंदनवारों को मन देहरी के द्वार सजाएं दिल के केनवास पर नये उछाह के... Read more
बरस फिर गुज़र गया तिमिर खड़ा रह गया उजास की आस थी निराश क्यों कर गया शहर शहर पसर गया साँस साँस खा गया कोविड का साल ये जहर जहर दे गया सनसनी मचा गया आँख हर भिगो गया जीवन की आस थी क्रूर काल बन गय... Read more
आज के भयावह संकट पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय है पौधा रोपण। पौधा रोपण हमारी प्राचीन संस्कृति है । अपने सुख औए स्वार्थ की पूर्ति के लिये मानव इस संस्कृति से दूर होता चला गय... Read more