न्याय के देव – दुनिया भर से लोग यहाँ मनोकामना पूर्ति हेतु अर्जियां भेजते है

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[dropcap]गो[/dropcap]लू देवता या भगवान गोलू भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक भगवान हैं और उनके देवता हैं।

चितई गोलू देवता मंदिर देवता को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिर है और बिनसर वन्यजीव अभयारण्य के मुख्य द्वार से लगभग 4 किमी (2.5 मील) और अल्मोड़ा से लगभग 10 किमी (6.2 मील) है। दूसरा प्रसिद्ध मंदिर भवाली के पास सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के निकट स्थित है। गोलू देव अपने घोड़े पर दूर-दूर तक यात्रा करते थे और अपने राज्य के लोगों से मिलते थे, गोलू दरबार लगते थे और गोलू देव लोगों की समस्याएं सुनते थे और उनकी किसी भी तरह से मदद करते थे, उनके दिल में लोगों के लिए एक खास जगह थी और लोगों के प्रति उनके पूर्ण समर्पण के कारण वह हमेशा उनकी मदद के लिए तैयार रहते थे। गोलू देव आज भी अपने लोगों के साथ मिलते हैं और कई गांवों में गोलू दरबार की प्रथा आज भी प्रचलित है, जहां गोलू देव लोगों के सामने दिखाई देते हैं और उनकी समस्या सुनते हैं और लोगों की हर संभव मदद करते हैं, इन दिनों गोलू देव दरबार का सबसे आम रूप जागर है। वह न्याय के देवता हैं और वह इसकी अच्छी तरह से सेवा करते हैं। यही कारण है कि लोग उन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजते हैं।

ग्वालियर कोट चम्पावत मैं झालरॉय राजा राज्य करते थे। यह बहुत पहले की बात है । उनकी सात रानियाँ थी. परन्तु वह संतानहीन थे। एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने जंगल मैं गए। शिकार खेलते खेलते वह बहुत थक गए, और विश्राम करने लगे, उन्हो़ने अपने दीवान से पानी की मांग की पानी पीते समय सोने के गडुवे मैं उन्हें सात हाथ लम्बा सुनहरा बाल दिखाई दिया। राजा कुछ आगे बड़े तो उन्हो़ने देखा की एक सुंदरी दो लड़ते हुए सांडो को छुडा रही थी। राजा उसकी वीरता व सौंदर्य पर मुग्ध हो गए। राजा ने सुंदरी के आगे शादी का प्रस्ताव रखा। सुंदरी कालिंका के पिता रिखेशर ने अपनी बेटी का विवाह सहर्ष स्वीकार किया।

कालांतर मैं कालिंका गर्भवती हो गयी. राजा की अन्य सातों रानियों को बहुत जलन हुई। उन्हो़ने सोचा की अब उनकी पूँछ नहीं रहेगी। राजा कालिंका को ही प्यार करेगा । अतः उन्हो़ने किसी भी प्रकार उसके गर्भ को नष्ट करने की सोची, प्रसव के दिन राजा शिकार खेलने गया था। सातों रानियों ने बहाना बनाकर कालिंका की आंखों मैं पट्टी बाँध दी, उससे रानियों ने कहा की तुम मूर्छित न हो जाओ इसलिए पट्टी बाँध रहे हैं। बच्चा होने पर फर्स पर छेद करके बच्चे को नीचे गो मैं डाल दिया ताकि बकरे बकरियों द्बारा उसे मार दिया जाय। रानी के आगे उन्हो़ने सिल बट्टा रख दिया, बच्चा जब गो मैं भी जिन्दा रहा तो रानियों ने बच्चे को सात ताले वाले बक्से मैं रख कर काली नदी मैं डाल दिया।

चितई मंदिर पर बना यह विडियो भी देख सकते है।

मां कालिंका ने जब अपने सामने सिल बट्टा देखा तो वह बहुत रोई उधर सात ताले वाले बक्शे में बंद बच्चा धीवर कोट जा पहुंचा, धीवर के जाल में वह बख्शा फंस गया, धीवर ने जब बख्शा खोला तो उसने उसमें जिंदा बच्चा देखा, उसने ख़ुशी ख़ुशी बालक को अपनी पत्नी माना को सौंप दिया। इस बालक का नाम गोरिया, ग्वल्ल पड़ा, माना ने बच्चे का लालन पोषण बड़े प्यार से किया, कहा जाता है की बालक गोरिया के धींवर के वहा पहुचने पर बाँझ गाय के थनोँ से दूध की धार फूट पड़ी, बालक नए नए चमत्कार दिखाता गया, उसे अपने जन्म की भी याद आ गयी।

एक दिन गोरिया अपने काटी के घोडे के साथ काली गंगा के उस पार घूम रहा था । वहीँ रानी कालिंका अपनी सातों सौतों के साथ नहाने के लिए आई हुई थीं, बालक गोरिया उन्हें देखकर अपने काटी के घोडे को पानी पिलाने लगा, रानियों ने कहा देखो कैसा पागल बालक है, कहीं काटी का निर्जीव घोड़ा भी पानी पी सकता है, गोरिया ने जबाब दिया की यदि रानी कालिंका से सिल बट्टा पैदा हो सकता है, तो काटी घोडा पानी क्यों नहीं पी सकता? यह बात राजा हलराय तक पहुँचते देर न लगी, राजा समझ गया की गोरिया उसी का पुत्र है। गोरिया ने भी माता कालिंका को बताया की वह उन्हीं का बेटा है, कालिंका गोरिया को पाकर बहुत प्रसन्न हुई, उधर राजा ने सातों रानियाँ को फांसी की सजा सुना दी।

राजा हलराय ने गोरिया को गद्दी सो़प दी तथा उसको राजा घोषित कर दिया, और खुद सन्यास को चले गए, मृत्यु के बाद भी वह गोरिया, गोलू ग्वेल, ग्वल्ल. रत्कोट गोलू, कृष्ण अवतारी, बालाधारी, बाल गोरिया, दूधाधारी, निरंकारी, हरिया गोलू, चमन्धारी गोलू द्वा गोलू  घुघुतिया गोलू आदि नामों से पुकारे जाते हैं । उनकी मान रानी कालिंका पंचनाम देवता की बहिन थी।

आज भी भक्तजन कागज़ में अर्जी लिख कर गोलू मंदिर में पुजारी जी को देते हैं । पुजारी लिखित पिटीशन पढ़कर गोल्ज्यू को सुनाते हैं, फिर यह अर्जी मंदिर मैं टांग दी जाती है । कई लोग सरकारी स्टांप पेपर मैं अपनी अर्जी लिखते हैं । गोलू देवता न्याय के देवता हैं, वह न्याय करते हैं । कई गलती करने वालों को वह चेटक भी लागाते हैं, जागर मैं गोलू देवता किसी के आन्ग (शरीर) मैं भी आते हैं । मन्नत पूरी होने पर लोग मंदिर मैं घंटियाँ बाधते हैं, तथा बकरे का बलिदान भी देते हैं । मंदिर मैं हर जाति के लोग शादियाँ भी सम्पन्न कराते हैं।

गोलू देवता के कुछ प्रसिद्ध मंदिर और स्थल

  • चितई गोलू देवता- मंदिर चितई अल्मोड़ा में स्थित है।
  • घोरखल गोलू देवता- घोरखल मंदिर जो नैनीताल जिले में है।
  • गैराड का गोलू देवता- गैराड मंदिर, बिंसर वन्यजीव अभ्यारण्य के मुख्य द्वार से लगभग 2 किमी दूर पर है।
  • भतरा गोलू देवता- जिसकी स्थापना लोग अपने घर के अंदर मंदिर में करते हैं।
  • डाणा गोलू देवता- जिसकी स्थापना लोग पहाड़ी में करते हैं।(डाणा मतलब पहाड़ी)

“रूप एक और नाम अनेक आइये जोर से बोलेन जय गोलू देवता की।”


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