पोलट या पलट आपन पहाड़ों पने य परम्परा अब विलुप्त हुणे कगार पर छु। कोई कोई गोनु में य परम्परा आई ले बच रे। ना तो लोग लेबर लगे बेर आपण काम करे ली री।
आजकल उतवे फेसिलीटी ले है गाय बे तब उसी ले मेंसु क तली पने भल लागर अब का जाडनी उ पोलट पुलट
हमार अगल बगलाक बुड बाड़ी आयी ले बतोनी कसी पेली बे- पाख वाल मकान, गाड़ भिड़ा काम, रोपाई,ब्या काम काज मैं एक दोहरे मदद कसी करछी
अब घरू पन पेली कोई रोण नी चा रोयी जो रोण ले रयी ना अब दोहर तरीकल काम करू रई। पेली बे जो घरू पन मकान बन छी वी ली जी दूर दूर बे पाथर, बली, सब गो पना लोग मिल जुल बेर लयोंछी
आजकल मकानों में कानटरकट है जा रो फिर सिद ग्रह परिवेश हुणो। उसे खेती बाड़ी में ले हेगो धान, गयो, मानडी मशीन ए गयी सब आपन आपन काम कर रयी दोहरो हो भले नी हो भले के मतलब नहन
अब घर घरू तले कच्ची पक्की रोड ले पहुंच गयी पेली बे नतर घा लयुह दूर दूर जे बे लयुण पड़ ने र होयी राती जेबे बयाउ है जा नेरी हेयी आजकल पिकअप वाल घरू पने ताल या माल धार में चाखे घड़ीम दवी लुट घा उ ले ली बेर खेड़ी दीनो।
ब्यानु मैं तो अब सिद मैरिज हॉले बुक है जानो ,घरो पन को करनो काम काज ,नतर पेली बे चाउ चाहनी बे लिबे खान बनूनी तले सब गोओ पना लोग बागे हाय अब सब अलगे हैगो ।
हुडी ठिके हु रोयी लेकिन आदिम इकलकटु होते जा रो अपनी अपनी कर रो दोहरो दुख दर्द भुल जाडो हमर पूर्वजु सिखायी य चीज हमुल ध्यानम धरण चेनेरी हेयी जब हम मिल जुल बेर रूल तबे आघिला बडुल दोहरे मदद कर बे आपण भोल होनेर होय।
पोलट – बिना किसी लाभ हानि के एक दूसरे की मदद करना होता है।
जय उत्तराखंड