खरगोश की खूबसूरती उसका रंग सभी इंसानो को बहुत लुभाता है। लोग इस प्यारे से छोटे जीव को घरो में भी पाले रखते है इसके बालो का सफ़ेद रंग बिलकुल रुई की तरह होता है कुमाऊँ क्षेत्र में भी यह छोटा जीव यहां के जंगलो में बहुत पाया जाता है इनका रंग भूरा होता है वैसे सामन्यतः जो पालतू खरगोश होते है। उनका रंग सफ़ेद होता है। इसे कुमाउँनी भाषा में यहां के लोग (शोस ) कहते है। अगर यह किसी को दिख भी जाता है तो सेकण्ड्स में गायब भी हो जाता है। क्योकि इसके भागने की रफ़्तार बहुत ज्यादा होती है। यहां के ग्रामीण क्षेत्रो में मांसहारी लोग इन्हें मार कर इनका मांस भी खाते हैं। यहां इसे दमा रोग की दवा के तोर पर उपयोग में लाया जाता है।
ऐसे ही एक जानलेवा खरगोश की कहानी यह भी है जो रात को राह पे चलते लोगो को या तो चोटिल करता है या सीधे स्वर्ग पहुंचा देता है। हल्द्वानी से गगास को जोड़ता राष्ट्रीय राजमार्ग सँख्या (109) जहां दिन के मुकाबले रात को गाड़ियों की आवाजाही बहुत कम रहती है। इस राजमार्ग के उपराडी से रानीखेत के बीच या रानीखेत से गगास की और जाते वक़्त रात को अकेले निकलती हुई गाड़ियों को एक खरगोश बहुत ही असमंजस में डाल देता है। यह खरगोश जब इस जगह से कोई गाडी निकलती है तो उस गाड़ी की हेडलाइट के आगे भागना शुरू कर देता है। और बहुत लम्बी दुरी तक ऐसा ही करता रहता है गाड़ी चला रहा चालक भी इसका पीछा गाड़ी की स्पीड बड़ाकर करने लगता है क्योकि गाड़ी के आगे फुदकता खरगोश बहुत ही खूबसूरत लगता है। और रोड को भूलकर बस खरगोश पर उसका पूरा ध्यान चला जाता है। खरगोश आगे चलकर गहरी खाइयो को खुद को मोड़ लेता है। गाड़ी चला रहा चालक भी उसी की ओर गाड़ी मोड़ देता है।
जिस वजह से गाड़ी गहरी खाइयो में जा गिरती है लोग अपनी जाने गवा बैठते है। इस जगह पर इस जानलेवा खरगोश की वजह से बहुत दुर्घटनाये हो गयी है। जिसमें या तो लोग बुरी तरह चोटिल हुए है या उन्होंने अपनी जान दी है।
यह खरगोश अन्य मार्गो पर मिलने वाले खरगोशो से बहुत अलग है लोकल के लोग इसे भूतिया खरगोश मानते है अगर आप भी कभी इस मार्ग से रात के वक़्त निकले तो इन खरगोशो का पीछा कभी ना करे।