आमतौर पर भांग को नशीले पदार्थ के रूप में जाना जाता है । लेकिन इसके रेशे से वस्त्र भी बनते है। भांग यानि की कैनाबिस स्टीवा को शताब्दियों से वस्त्र, कैनवस और कागज़ बनाने के लिए प्रयोग लाया जा रहा था।
पन्द्रवीं शताब्दी में तो दुनिआ भर में चक्कर लगाने वाले यूरोपियन जहाजों के पाल पतवार और रस्से भांग के मजबूत रेशो से ही बनाये जाते थे।
उत्तराखंड में 5000 फीट से अधिक ऊंचाई पर रहने वाले पुराने लोग पहले भांग से वस्त्र ,जुते, रस्सियां, अनाज रखने वाली वस्तुए, मछली पकड़ने के जाल, खेती में काम आने वाली सहायक वस्तुएँ व और भी कई वस्तुएँ बनाते थे।
भांग से बने कपड़ो को “भंग्योल” तथा जूतों को “छ्प्योल” कहा जाता था प्राकृतिक रूप से बने होने के कारण इनसे बने जुते मंदिरो में भी वर्जित थे। भांग का रेशा सबसे मजबूत रेशो में से एक है।