हमारा देश – उच्च आध्यात्मिक उपलब्धि प्राप्त संतो, सन्यासियों की भूमि रहा है। कुछ वर्ष पहले मीडिया की सुर्ख़ियों में भारत का एक मंदिर आया था, जब फेसबुक के फाउंडर मार्क ज़करबर्ग ने बताया कि वे फेसबुक के बुरे समय में बाबा जी का आशीर्वाद लेने वे – भारत के एक मंदिर आये थे, जिसका उनके बिज़नेस में इतनी सफलता में बड़ा योगदान हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वो यहाँ एप्पल कंपनी के फाउंडर स्टीव जॉब्स की सलाह पर आये थे, जो कई वर्ष उस मंदिर में जा चुके थे, और स्टीव जॉब्स ने मार्क को बताया था कि वो अपने निराशा से भरे, मुश्किल समय में – यही से सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद लेने के बाद, वो एप्पल कंपनी को नयी ऊंचाई पर ले जा सके। हालंकि अंतरार्ष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आने से बहुत पहले से ही यह मंदिर और आश्रम भक्तो और श्रद्धालुओं के लिए अपार आनंद और ऊर्जा का स्रोत रहा है।
आप में से कई लोग तो जान ही गए होंगे कि किस मंदिर की बात हो रही है, और संभव कि आप इस मंदिर के दर्शन कर भी चुके हों। कैंची मंदिर और इसके साथ लगा आश्रम – उत्तराखंड के नैनीताल जिले में कैंची नाम की सुन्दर और छोटी सी जगह में हैं।
कैंची मंदिर और आश्रम, नैनीताल से 23 किलोमीटर दूर नैनीताल-अल्मोड़ा रोड़ पर भवाली के समीप समुद्र तल से 1400 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। देश की राजधानी दिल्ली से 321 किलोमीटर, उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 343 किलोमीटर और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से कैंची की दुरी 390 किलोमीटर हैं।
25 मई 1962 को बाबा ने अपने पावन चरण प्रथम बार इस भूमि पर आए थे, यह जगह उन्हें बहुत पसंद आयी, और शिप्रा नाम की छोटी पहाड़ी नदी के किनारे सन् 1962 में उन्होंने, अपने भक्तों के सहयोग से कैंचीधाम की नींव रखी। यहां दो घुमावदार मोड़ है जो कि कैंची के आकार के हैं, इसलिए इस जगह का नाम कैंची पड़ा। कैची प्रकृति से घिरा एक छोटा सा शांत और रमणीय क़स्बा है, यहाँ दैनिक सामान की कुछ दुकाने और कुछ थोड़े से रेस्टोरेंट हैं। कैंची मंदिर का परिसर सड़क से लगा है, कुछ सीढ़ियाँ उतर कर मंदिर और आश्रम तक पंहुचा जा सकता है, मंदिर के निकट सड़क के किनारे गाड़ियों के खड़े करने के लिए पार्किंग हैं, एकदम व्यस्त सीजन न हो तो सामन्यातया वाहन पार्क करने के लिए जगह मिल जाती है।
यह आश्रम बाबा नीम करोली महाराज को समर्पित है। बाबा नीम करोली आश्रम में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं और बाबा जी का आशीर्वाद पाते हैं। बाबा नीम करोली महाराज को कई लोग हनुमान जी यानी रूद्र अवतार मानते हैं। मंदिर और आश्रम परिसर में श्रद्धालु शीतकाल में नवंबर से मार्च तक सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक, और शेष वर्ष सुबह 6 से सायं 7 बजे तक किये जा सकते हैं। मंदिर चारों ओर से ऊँची पहाड़ियों से घिरा है और मंदिर में हनुमान जी के अलावा भगवान राम एवं सीता माता तथा देवी दुर्गा जी के भी छोटे–छोटे मंदिर बने हुए हैं। किन्तु कैंची धाम मुख्य रूप से बाबा नीम करौली और हनुमान जी की महिमा के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आने पर व्यक्ति अपनी सभी समस्याओं के हल प्राप्त कर सकता है। बाबा के दर पर मन्नतें लेकर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
बाबा नीम करोली महाराज का सन्यास पूर्व नाम नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनका जन्म सन 1900 के आसपास उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। छोटी अवस्था गृह त्याग के पश्चात साधना कर उन्होंने ज्ञान प्राप्ति कर लिया था और अपना जीवन लोककल्याण में समर्पित कर दिया।
बाबा से जुड़ीं कहानियों से श्रद्धालु हमेशा चमत्कृत और विस्मित होते रहे हैं, परन्तु बाबा स्वयं सादगी पसंद और दिखावे से दूर रहते थे। उनसे जुड़ी एक रोचक कथा निम्न प्रकार से है।
ब्रिटिश काल में एक टिकट परीक्षक ने ट्रेन में प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे एक युवा साधु को टिकिट नहीं होने पर अपमानित कर अगले स्टॉप ट्रैन से उतार दिया। परंतु इसके बाद गार्ड के ग्रीन सिग्नल देने के बाद बाद भी ट्रेन आगे नहीं बढ़ पायी। और इसके किसी यात्री ने बताया कि- साधू से माफ़ी मांगी जाए तो ट्रेन शायद आगे बड़े। रेलवे कर्मी अपनी गलती का अहसास हुआ और साधू से श्चमा मांग, ससम्मान उन्हें सीट में बैठाया, तब ट्रेन आगे बढ़ी। जिस जगह पर बाबा को उतारा था – उस जगह का नाम नीबकरोली हैं, जो इस घटना के बाद विख्यात हो गया, इसके बाद उन्हें बाबा नीबकरोरी या बाबा नीमकरोली कहा जाने लगा।
बाबा के बारे में लोग बाबा के समय के भक्तो से सुने/ लिखे किस्से बताते हैं – बाबा कहीं भी प्रकट और अंतर्ध्यान हो सकते थे,और उन्हें भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्व से ज्ञान होता था। बाबा नीमकरोली महाराज किसी का दुःख या किसी की आँखों में आंसू देखते ही द्रवित हो उठते, और भक्तो के दुःख निवारण के लिए स्वयं कष्ट सहने को तैयार रहते।
रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर ‘मिरेकल ऑफ़ लव‘ नामक एक किताब लिखी, जिसमे 1943 की ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र है।
बाबा के कई भक्तों में से एक बुजुर्ग दंपत्ति थे जो फतेहगढ़ में रहते थे। एक शाम अचानक बाबा उनके घर पहुंच गए। दोनों दंपत्ति को अपार खुशी तो हुई, लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी था कि घर में महाराज की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। हालांकि जो भी था उन्हों बाबा के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बाबा वह खाकर एक चारपाई पर कंबल ओढ़कर लेट गए।
महाराजजी कंबल ओढ़कर रातभर कराहते रहे, ऐसे में बुजुर्ग दम्पति परेशान हो गए, वे रात भर बाबाजी की चारपाई के पास रात भर परेशान बिना सोये बैठे रहे। पता नहीं महाराज को क्या हो गया। जैसे कोई उन्हें मार रहा है। जैसे–तैसे कराहते–कराहते सुबह हुई। सुबह बाबा उठे और चादर को लपेटकर बजुर्ग दंपत्ति को देते हुए कहा इसे गंगा में प्रवाहित कर देना।
इसे खोलकर देखना नहीं अन्यथा फंस जाओगे। दोनों दंपत्ति ने बाबा की आज्ञा का पालन किया। जाते हुए बाबा ने कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा। जब वे कंबल लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया की इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है, लेकिन बाबा ने तो खाली कंबल ही हमारे सामने लपेटकर हमें दे दी थी। खैर, हमें क्या। हमें तो बाबा की आज्ञा का पालन करना है। उन्होंने वह चादर वैसी की वैसी ही नदी में प्रवाहित कर दी।
लगभग एक माह के बाद बुजुर्ग दंपत्ति का इकलौता पुत्र बर्मा फ्रंट से लौटा। वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त बर्मा फ्रंट पर तैनात था। उसे देखकर दोनों बुजुर्ग दंपत्ति खुश हो गए और उसने घर आकर कुछ ऐसी कहानी बताई जो किसी को समझ नहीं आई।
उसने बताया कि करीब महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के साथ घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई। उसकेसारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं। उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रातभर वह जापानी दुश्मन सेना के बीच जिन्दा बचा रहा। सुबह जब अधिक ब्रिटिश टुकड़ी आई तो उसकी जान में जा आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा जी उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुके थे।
बाबा जी की कृपा से अनेक भक्त कृतार्थ हुए, महाराज जी किसी भी लीला का प्रदर्शन करना पसंद नहीं करते, हैं बाबा जी अपने भक्तों का बहुत ध्यान रखते, और उनके कष्ट निवारण के लिए वो कुछ करते, वो वो भक्तो को चमत्कार के रूप में नज़र आता। भक्तो के दुःख हरने की कितनी ही कहानिया बाबा नीम करोली महाराज के आश्रम में मिलने वाली कई पुस्तकों से जानी जा सकती हैं।
उनके कैंची के अलावा दूसरी कई जगहों में भी उनके बनाये या उनसे जुड़े सैकड़ो की संख्या में मंदिर हैं।
बाबा ने अपनी समाधि के लिए वृंदावन की पवित्र भूमि को चुना, जहाँ अब बाबा नीम करोली महाराज का एक आश्रम भी है। 10 सितंबर 1973 की मध्य रात्री में वृन्दावन के रामकृष्ण मिशन अस्पताल में उन्होंने देह त्याग दिया और निरंकार में लीन हो गए।
1976 में बाबा नीम करोली महाराज के निर्वाण के तीन वर्ष पश्चात – 15 जून के दिन, महाराजजी की मूर्ति की स्थापना और अभिषेक किया था, यह दिन महाराज जी ने स्वयं तय किया था। उस दिन वेदों मंत्रो के साथ, पवित्र समारोह और पूजा की निर्दिष्ट विधि के साथ, महाराजजी की मूर्ति स्थापित की गई थी। तब से प्रति वर्ष कैंची धाम में प्रतिवर्ष – 15 जून को बड़ा मेला होता हैं, जिसमे देश विदेश से लाखो की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस तरह, एक मूर्ति के रूप में बाबाजी महाराज श्री केन्ची धाम में आज भी बैठे हैं। पवित्र ह्रदय से आने वाले श्रद्धालुओं को आज भी हमेशा यहाँ बाबाजी महाराज की उपस्थिति महसूस होती हैं।
कैंची मंदिर और आश्रम में रुकने के पूर्व में ईमेल या पत्र लिखकर अनुमति लेनी होती है, कैंची आश्रम के निकट के वर्तमान में गेस्ट हाउस/ होटल के ज्यादा विकल्प नहीं हैं, आश्रम के नियरेस्ट होटल/ रिसोर्ट – भवाली, भीमताल या नैनीताल हैं। और इन जगहों से कैची मंदिर आकर प्रातः और सायंकालीन पूजा में शामिल हुआ अथवा अपनी सुविधा अनुसार दिन के समय भी श्रद्धालु आकर मंदिर दर्शन कर सकते हैं।
महाराजजी की शाश्वत शिक्षा और अंतहीन लीलाओं के कारण, हिंदू, मुसलमान, सिख, जैन, ईसाई, यहूदी और यहाँ तक की नास्तिक भी उनकी ओर आकर्षित हुए। भारत के पूर्व राष्ट्रपति वी.वी.गिरी, गोपाल स्वरूप पाठक, जस्टिस वासुदेव मुखर्जी, जुगल किशोर बिड़ला, जैसे सुविख्यात महत्त्वपूर्ण लोग और अनगिनत दूसरे लोग उनके प्रति आकर्षित हे। स्टीब जॉब्स, मार्क ज़करबर्ग, जूलिया रॉबर्ट्स सहित कई पश्चिमी लोग महाराजजी के भक्त रहें हैं।
कैंची धाम से जुड़ा विडियो देखने के लिए नीचे दिये लिंक में क्लिक करें ?
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