अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र में स्थित द्रोणागिरी वैष्णवी शक्तिपीठ को, वैष्णो देवी के बाद दूसरा वैष्णवी शक्तिपीठ माना जाता है। दूनागिरी माता का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। दूनागिरी मंदिर द्वाराहाट क्षेत्र से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
दूनागिरी मंदिर द्रोणा पर्वत की चोटी पर स्थित है। कहा जाता है कि पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने इस पर्वत पर तपस्या की थी। उन्हीं के नाम पर इस पर्वत का नाम द्रोणागिरी पड़ा। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से हिमालय के सौंदर्य का लुफ्त उठाया जा सकता है। इस मंदिर में माँ दूनागिरी वैष्णवी रूप में पूजी जाती है।
मंदिर का पौराणिक महत्व
मंदिर निर्माण के बारे में जानकार कहते हैं, कि त्रेता युग में रामायण युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण को मेघनाथ के द्वारा शक्ति लगी थी, तब हनुमान जी से सुसैन वैद्य द्वारा द्रोणाचंल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा गया था। जब हनुमान जी पर्वत उठा कर ले जा रहे थे, तो पर्वत एक छोटा सा हिस्सा यहाँ गिर गया। जिसके बाद उसी स्थान पर दूनागिरी मंदिर बनवाया गया। कत्यूरी शासक सुधारदेव ने 1318 ई. में मंदिर का निर्माण कर मां दुर्गा की मूर्ति को स्थापित की।
कुछ पौराणिक कथाओं में कहा जाता है, कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने युद्ध में विजय तथा द्रोपदी ने सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी की मां दुर्गा रूप में पूजा की।
दूनागिरी मंदिर बास, अकेसिया, देवदार और सुरेई समेत अन्य प्रजाति के पेड़ों के बीच में स्थित है। मंदिर में प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिंडिया माता भगवती के रूप में पूजी जाती है। मंदिर में अखंड ज्योति का हमेशा जलते रहना, यहां की विशेषता है। मां दूनागिरी वैष्णवी रूप में पूजी जाती है, जिसके कारण यहां किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है। यहां तक भेंट स्वरूप में अर्पित किया जाने वाला नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता हैं।
माँ दूनागिरी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है, और अपने भक्तों पर अपना आशीर्वाद सदा बनाए रखती है। मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु मंदिर में सोने और चांदी के छत्र घटियां और शख आदि चढाते हैं। मंदिर में लगी हुई हजारों घंटियां प्रेम, विश्वास और आस्था का प्रतीक है।