शारदीय नवरात्र है आजकल; सुनाई तो दे रहा है ;परन्तु दिखाई नही दे रहा …
Himanshu Pathak
Himanshu Pathak
हिमाँशु पाठक मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट के पठक्यूड़ा गाँव से है। पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटे व सबके प्यारे ।आपका जन्म अल्मोड़ा में 14 जुलाई को एक प्रतिष्ठित ब्राहमण परिवार में हुआ पिता जी का नाम श्री हेम चन्द्र पाठक एवं माताजी का नाम श्रीमती गोबिन्दी पाठक था । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई, व उच्च शिक्षा हल्द्वानी में हुई। वर्तमान में आप हल्द्वानी में शिक्षण कार्य में संलग्न हैं। आपकी रूचि बचपन से ही शिक्षण के साथ-साथ लेखन, गायन व रंगमंच में भी रही । आपकी प्रमुख रचनाओं में से कु छ निम्न प्रकार रही हैं। प्रकाशित पद्य रचनाऐं :- ढलता हुआ सूरज, वो गरीब की बेटी, एक ही स्थल पर, युग आयेगें, दो छोर,गांधारी ,चाय की चुस्की ,जिन्दगी, सप्त-शर्त ,चिट्ठी, बाबूजी, पथिक,वेदना,बैचैनी,चाय पर चर्चा,कोई रोता है, एक पुरोधा का अंत ,काश,कृष्ण से द्वारिकाधीश तक,प्रतीक्षा, अप्रकाशित पद्य रचनाऐं- , , तेरी अदा, दीवारें,,,' आज अगर आजाद भगत सिंह भारत में जिन्दा होते', मौन हूँ मैं, परिवर्तन, दूरी, आदि। प्रकाशित गद्य रचनाऐं : - कुसुम दी, अपने दोहन पर व्यथा-मैं प्रकृति हूँ ,आँखें,जड़ो से दूर,आँगन,सूर्योदय उत्तराखंड का,ढलता हुआ सूरज, इस रात की सुबह,पाती प्रेम की,एक पुरोधा का अंत व एक मोड़ पर,तेरहवीं(धारावाहिक) , एक था बचपन,वो कौन थी,उस मोड़ पर(धारावाहिक),और व्यक्ति का निर्माण या रोबोट का अप्रकाशित गद्य रचनायें :- गंगा के तट पर, छोटी-छोटी बातें,मैं नहीं हम,आत्म परिचय,सफर जिन्दगी का आदि नाट्य रचना : - एक और विभाजन, दोहन प्रकृति का, आत्मदाह, शहीद की हसरत आदि
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आज मुझे अपना पहाड़ रह-रहकर याद आता है। ना जाने क्यों मुझें ऐसा लगता …
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आज लगभग बयालीस वर्षों के बाद अपनी जन्मभूमि अल्मोड़ा की पावन भूमि की मिट्टी …
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“दीदी ओ दीदी आओ हों, काट छा हो दी हम लोग पाख में आपण …
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नमस्कार मेरे प्यारे बालकों ,युवाओं, मेरे मित्रगणों एवम् मेरे सभी सम्मानीय जनों, आपका स्नेह …
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हम सभी का मन करता है कि एक बार फिर लौट चलें बचपन में। …
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आज, आप लोगों को मेरे विषय का ये शीर्षक शायद कुछ अटपटा सा लग …
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आज मैं जब इस विषय पर चर्चा करने जा रहा हूँ तो मेंरे अंतर्मन …
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मैैं यहाँ स्वयं नही आया, बल्कि माँ गंंगा ने मुझे बुुलाया था अपने सानिध्य …
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घनी स्याह रात है, हर जगह संशय है। हर चेहरे में भय है। आज …
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बचपन! क्या दिन हुआ करते थे वो भी। सुबह-सुबह बिस्तर से उठकर घर की …
- Interesting ExperiencesStoriesUttaraPedia Special
ढलता हुआ सूरज (पुत्र के आधुनिक और पेरेंट्स के पुराने होने की मार्मिक कहानी)
मैं ढलता हुआ सूरज हूँ। लाचार, बेबस और असहाय, मुझे मेरी उस संतान ने …
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कोरोना काल क्या आया ? अपने साथ कुछ संशय लाया, कुछ संभावनायें भी लाया। …
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सुबह का समय था, मैं बैठक में बैठकर अखबार पढ़ रहा था और चाय …
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मेरा आज का विषय पलायन से जुड़ा हुआ है। ये वर्ष 2000 की बात …
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[dropcap]म[/dropcap]हानगरों की चमक से आकर्षित हो, हम चले आते हैं छोड़ कर, अपनी जगह …
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[dropcap color=”#000000″]”ऊँ [/dropcap]नमः दैवेये, महा दैवेये शिवायै सततः नमः। नमः प्रकृतयै भद्रायै नियताःप्रणताः स्मताम।।” …