Himanshu Pathak Articles 14
हिमाँशु पाठक मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट के पठक्यूड़ा गाँव से है। पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटे व सबके प्यारे ।आपका जन्म अल्मोड़ा में 14 जुलाई को एक प्रतिष्ठित ब्राहमण परिवार में हुआ पिता जी का नाम श्री हेम चन्द्र पाठक एवं माताजी का नाम श्रीमती गोबिन्दी पाठक था । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई, व उच्च शिक्षा हल्द्वानी में हुई। वर्तमान में आप हल्द्वानी में शिक्षण कार्य में संलग्न हैं। आपकी रूचि बचपन से ही शिक्षण के साथ-साथ लेखन, गायन व रंगमंच में भी रही । आपकी प्रमुख रचनाओं में से कु छ निम्न प्रकार रही हैं। प्रकाशित पद्य रचनाऐं :- ढलता हुआ सूरज, वो गरीब की बेटी, एक ही स्थल पर, युग आयेगें, दो छोर,गांधारी ,चाय की चुस्की ,जिन्दगी, सप्त-शर्त ,चिट्ठी, बाबूजी, पथिक,वेदना,बैचैनी,चाय पर चर्चा,कोई रोता है, एक पुरोधा का अंत ,काश,कृष्ण से द्वारिकाधीश तक,प्रतीक्षा, अप्रकाशित पद्य रचनाऐं- , , तेरी अदा, दीवारें,,,' आज अगर आजाद भगत सिंह भारत में जिन्दा होते', मौन हूँ मैं, परिवर्तन, दूरी, आदि। प्रकाशित गद्य रचनाऐं : - कुसुम दी, अपने दोहन पर व्यथा-मैं प्रकृति हूँ ,आँखें,जड़ो से दूर,आँगन,सूर्योदय उत्तराखंड का,ढलता हुआ सूरज, इस रात की सुबह,पाती प्रेम की,एक पुरोधा का अंत व एक मोड़ पर,तेरहवीं(धारावाहिक) , एक था बचपन,वो कौन थी,उस मोड़ पर(धारावाहिक),और व्यक्ति का निर्माण या रोबोट का अप्रकाशित गद्य रचनायें :- गंगा के तट पर, छोटी-छोटी बातें,मैं नहीं हम,आत्म परिचय,सफर जिन्दगी का आदि नाट्य रचना : - एक और विभाजन, दोहन प्रकृति का, आत्मदाह, शहीद की हसरत आदि
नमस्कार मेरे प्यारे बालकों ,युवाओं, मेरे मित्रगणों एवम् मेरे सभी सम्मानीय जनों, आपका स्नेह व आशीष मुझे समय-समय पर प्राप्त होता रहा है। इसके लिये आप सभी आत्मीय जनों का हृदय से आभार। कुमाऊँ क... Read more
हम सभी का मन करता है कि एक बार फिर लौट चलें बचपन में। खासतौर पर तब, जब हम उम्र के उस पड़ाव में पहुँच जाते हैं, जब हम जीवन में वो सब प्राप्त कर चुके होतें हैं, जो हम प्राप्त करना चाहते थें। स... Read more
आज, आप लोगों को मेरे विषय का ये शीर्षक शायद कुछ अटपटा सा लग रहा होगा, परन्तु ये कड़वा लेकिन सत्य है। अतीत से वर्तमान का निर्माण हुआ है और वर्तमान से ही भविष्य का निर्माण होना है। ये सब कुछ... Read more
आज मैं जब इस विषय पर चर्चा करने जा रहा हूँ तो मेंरे अंतर्मन में अनेक विचारों का आवागमन चल रहा है।कभी सोच रहा हूँ कि प्राचीन काल में लोगों के आतिथ्य भाव का तुलनात्मक अध्ययन वर्तमान काल में... Read more
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मैैं यहाँ स्वयं नही आया, बल्कि माँ गंंगा ने मुझे बुुलाया था अपने सानिध्य में, अपने शुभ-आशीष और स्नेह के साथ। माँ पुत्र को बुलाए और पुत्र ना जाए, ऐसा भला होता है क्या? वर्ष 2018 की बात है... Read more
घनी स्याह रात है, हर जगह संशय है। हर चेहरे में भय है। आज का दिन तो सुरक्षित गुजर गया। कल क्या होगा? एम्बुलेंस के सायरन की आवाज से डर सा लगने लगता है। अगले दिन पता चलता कि फलां मोहल्ले में फ... Read more
बचपन! क्या दिन हुआ करते थे वो भी। सुबह-सुबह बिस्तर से उठकर घर की देहरी में बैठकर, मिचमिचाई आँखों को मलते हुऐ, मैं, आँगन को निहारा करता था। आँगन में चिड़ियाऐं चहचहाती थी। पेड़ों से छनती हु... Read more
मैं ढलता हुआ सूरज हूँ। लाचार, बेबस और असहाय, मुझे मेरी उस संतान ने ही सड़क पर लाकर रख दिया है। जिस पर मै कभी गौरवान्वित हुआ करता था। कभी मैं भी उगता हुआ (बाल सूरज हुआ) करता था। मैं और मेरे ब... Read more
कोरोना काल क्या आया ? अपने साथ कुछ संशय लाया, कुछ संभावनायें भी लाया। लाँकडाऊन हुआ, लोगों को अपना घर याद आया। ये लोग वही थे, जो पहले कहते थें उत्तराखण्ड में क्या है? जब मैं कहता था यारो यह... Read more