प्रस्तावना – इस लेख में, मैंने किरदार के जीवन के अफेयर्स जो कई वर्षों के दरमियान हुए, को कुछ पैराग्राफ में समेटने का प्रयास किया है, कि कैसे उनके जीवन के बदलते दिनों और हालात ने उनके जज़्बात बदले। साथ ही ये लेख, किरदार से अलग अलग समय (कालखंड) पर हुई बातों और उनकी हरकतों पर आधारित है। किसी के छवि धूमिल करना, आरोप लगाना इस लेख का उद्देश्य नहीं है।
तो ये रहे होंगे कुछ 7-8 साल के, जब पहली बार प्यार हुआ होगा इन्हें। स्कूल से घर जाने का रास्ता बदल देते थे ये उस उम्र में, ताकि लड़की के साथ नहीं तो क्या पीछे-पीछे तो चल लें। कुशाग्र थे तो किसी अच्छे Co-educational विद्यालय में दाखिला मिला। लो! कन्या भी वहीं। फिर क्या अपने शहर से, अपने गली का, अपना पहला प्यार… खैर 12 वर्ष का होते-होते इन्हें भावुकता से ज्यादा सालाना और छमाही इम्तेहान ले गए।
फिर दूसरा, एक क्रिकेट खेलने वाली कन्या से हुआ (और उन दिनों प्रेमियों के दिलों में और chart-buster लिस्ट में ये गाना अपनी टॉप position बनाए हुए था – “चोरी चोरी जब नजरें मिली, चोरी चोरी दिल ने कहा, चोरी में भी है मजा…. )। अभी 11वीं में थे, और लड़की के उस भाई को पता लगा, जो हॉकी खेलता था। मार खाते-खाते रह गए, या खा ही ली थी, इस पर अलग अलग लोगों के अलग अलग मत हैं। इस बार खुद्दारी में निकल लिए।
विश्वविद्यालय पहुंचे और सांख्यिकी के ‘स्टैण्डर्ड डेविएशन’ के प्रैक्टिकल के बीच, फिर हुआ तीसरा प्यार- फाइनल, पक्का, सच्चा- जीने-मरने की कसमें वाला! लेकिन लड़की को शादी करनी थी, और ये थे बेरोजगार। इस बार व्यावहारिकता और दुनियादारी के फेर ने पटक दिया।
फाइनल के बाद वैसे तो अक्सर सिर्फ ‘प्राइज-सेरेमनी’ होती है, लेकिन इन्हें फिर से प्यार हुआ, एक बार फिर से आखिरी वाला, फाइनल वाला… इस बार किसी शहर के अनाम कोने में… आदमी ये ठीक-ठाक से अच्छे हैं, तो गुरु पिक्चर हाल से बाहर निकलने के बाद लड़की ने कहा – “अपने घर पे बात कर लो”; अचानक इस स्थिति/ सवाल से अचकचाए ये थूक गटकते, सिर खुजलाते हुए इनके मुंह से “हैं!” की जगह निकला “ऐ” (“टै” के उच्चारण से मिलता जुलती आवाज)। लड़की समझदार थी, सो समझ गयी।
इनके भी जज़्बात और गाने सुनने की प्राथमिकताए, अपने दिल के हालात और जीवन की परिस्थितियों के हिसाब से, बदलते रही। जो पहले कुछ और थी, फिर यों हुई ?
“घुंघरू की तरह, बजता ही रहा हूँ मैं…” से होते हुए, ?
“जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्यार को प्यार को मिला, हमने तो जब कलियाँ मांगी, कांटो का हार मिला…”
के बाद, अब कुछ इस तरह की गजलें ?
“दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है… ”
जैसी रचनाएँ सुनने तक आ गया था।
एक बार फिर से प्यार में असफल होने के बाद इन्होने एक दिन यूहीं बातों बातों में खुद अपने बारे में बताया कि हर बार दिल टूटने पर, अब तो आँसू भी निकलने से पहले पूछते हैं – “मालिक, हम निकलें क्या?“, और इनका दिल किसी सच्चे (और पहले से भी अच्छे) प्यार के आस में कहता (थोड़ा झल्ला के) – “अरे! रुको यार अभी“। ऐसे ही कभी लड़की, तो कभी ये एक दूसरे की destiny बदलते रहे।
ये थे आज से लगभग डेढ़ साल पहले इनका आखिरी प्यार! (हाहाहा…)। भाई ये तो थे सच्चे प्यार- चारों। ऐसा नहीं है कि अब इन्हें प्यार नहीं होता, अक्सर होता है, होता ही रहता है। अगर बताऊँ एक-तरफा वाले जिनमें लड़की को, या मुझको आज तक पता नहीं लगा तो संख्या दर्जन भर से उप्पर होगी। ये भाईसाहब, ईश्वर के शुक्रगुजार रहते हैं कि, इनकी वो इच्छाए मुकम्मल न हो सकी। इनका मानना है – प्रेम मुक्कम्मल होने के मसले में इंसान, कुछ समय बाद स्वयं एक मसला बन जाता है।
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