विचारों के बंधन का साथ उसने छोड़ दिया,
जब विचारों ने उसे, उसके ख़यालों में उसे तोड़ दिया।
पसीने से भीगा जो बैठा छाँव में सुखाने,
हवाओं ने भी अपना रुख मोड दिया।
नाकाम जिंदगी के ख्याल से जो गुजरा,
निराशा ने उसमें और दुख जोड़ दिया।
अरमानों भरी उसकी जिंदगी को,
रहनुमाओं ने गुब्बारे सा फोड़ दिया।
दोस्ती भरा हाथ जो बढ़ाया उसने,
हमसफर ने उसे मरोड़ दिया।
कविता को अधूरा रख, कवि ने
किरदार को मझधार में छोड़ दिया।