बात है उन दिनों के जब मैं बहुत छोटी थी, इतनी छोटी कि मुझे याद भी नहीं, शायद दो-तीन साल की।
दादी मां ने वैसे तो मेरी फिक्र करना मेरे इस दुनिया में आने के पहले दिन से ही शुरू कर दिया था, लेकिन ज्यादा बचपन वाली बातें याद नहीं है मुझे, लेकिन जब से होश संभाला उनके प्यार और स्नेह का हर एक पल मुझे याद है।
दादी मां मुझे प्यार करती भी क्यों ना आखिर में परिवार में बच्चों में सबसे बड़ी और पहली नातिन थी उनकी।
बचपन में शायद बच्चों को भूख ज्यादा ही लगती है, और मुझे तो सुबह उठते ही भूख लगने लगती थी, फिर भूख से मेरा रोना सुनकर दादी मां रात का बचा हुआ दाल-चावल, साग-रोटी जो भी बचा हो अपने हाथों से सान कर कौड़ा (सर्दियों में सेकने वाली आग) पर गर्म करके खिलाने लगती थी।
उनके हाथों से दूध-रोटी भी बहुत खाई है मैंने, तभी घर में आज भी मुझे सब चिढ़ाते हैं कि तभी तो आज तक तू इतनी मोटी है, सुबह उठते ही खाने में लग जाती थी, मुझे हंसी भी आती है, लेकिन दादी मां भी बहुत याद आती है।
अगर बचपन में मां किसी काम से घर से बाहर चली जाती थी तो, दादी मां उस समय भी मेरे खाने का पूरा ख्याल रखती थी, कई बार उनके हाथों का बना मंडुआ, चावल, मक्के की रोटी और भिंडी, परमल, बैंगन और आलू के चोखे का स्वाद आज भी याद है।
मुझे याद है कभी-कभी शकलगंजी भी पकाती थी, जो आग में पकने के बाद बहुत मीठी और स्वादिष्ट लगती थी, वह गरम-गरम शकलगंजी को अपने हाथों से फूंक-फूंक कर मुझे खिलाती थी।
यदि उनके पास चाचा पापा के दिए फुटकर पैसे ज्यादा इकट्ठे हो जाते थे तो, घर में अपने पैसे वह मुझसे ही गिनवाती थी, क्योंकि उनकी सबसे ईमानदार नातिन शायद मैं ही थी।
उन्होंने पैसे रखने के लिए मुझसे मेरा एक पुराना छोटा सा पर्स भी लिया था, उसी में अपने पैसे रखती थी, लेकिन वह पर्स आज भी वैसे का वैसा ही मौजूद है, लेकिन मेरी दादी नहीं है, सिर्फ यादों के पन्नों में सिर्फ उनका स्नेह और प्यार है।
घर में जब भी शादी की बात होती थी मेरी और जब मैं कभी रोने लगू तो मुझे चुप कराने के लिए सबसे बोलती थी, मैं नहीं भेजूंगी अपनी नातिन को किसी के घर, इसीलिए पाल पोष कर इतने प्यार से बड़ा किया है क्या मैंने?
बचपन में सुनी उनकी कहानियां और उनके गाए हुए गीत आज भी याद है, उनकी याद में कभी कभी गुनगुना लेती हूं मैं भी।
वह मेरे सभी स्कूल कॉलेज के रिजल्ट्स को बहुत संभाल कर रखने की सीख देती थी, उन्हें हमेशा संभाल कर रखना, यह किसी जमीन के कागज से कम नहीं है, खो गए तो दोबारा नहीं मिलेंगे।
हमेशा यह भी सीख देती थी कि रोड पर कैसे चलना है और यह भी बोलती थी कि पापा की पगड़ी कभी नीचे मत होने देना मतलब, उनकी शान हमेशा बनाए रखना।
उनकी सभी बातें, उनकी हंसी, उनका बात करने का तरीका और उनकी आवाज मुझे आज भी याद है। टीवी में कोई हंसी वाला सीन आए तो बहुत जोर से हंसती थी, उनका हंसता हुआ चेहरा मुझे आज भी याद है।
वह जब भी मेरे पास बैठती थी तो, हमेशा मेरे बालों को सवारती और मुझे स्नेह दुलार करती, मुझे आज भी याद नहीं है कि मैंने उनसे डांट कब खाई थी।
मां अगर किसी गलती पर मुझे डांटने या मारने को आती तो दादी भी मां पर बरस पड़ती थी, वह मुझे हमेशा मार खाने से बचा लेती थी, भले ही गलती मेरी क्यों ना हो।
मलाल इस बात का हमेशा रहता है कि, उनके आखिरी समय में मैं उनके पास नहीं थी। मेरी बोर्ड की परीक्षाएं चल रही थी और सिर्फ उनके तबीयत खराब होने की खबर मुझे दी गई थी। अब दादी सिर्फ सपनों में ही दिखती है, आशा है कि वह जहां भी होंगी खुश होंगी।
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