उत्तराखंड के प्रमुख लोकगीत 

by Neha Mehta
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Cholliya Dance
उत्तराखंड के पहाड़, नदियां, झीलें, झरने, पर्यटन स्थल जितने लोकप्रिय हैं, यहाँ की संस्कृति भी यहाँ का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। संस्कृति से परिपूर्ण उत्तराखंड में कई तरह के लोकगीत भी हैं जिन्हें अलग-अलग अवसरों में लोगों द्वारा गया जाता हैं।

झुमैलो गीत:

गढ़वाल क्षेत्र में गाये जाने वाले झुमैलो गीत वेदना और प्रेम के प्रतीक हैं। इन गीतों में नारी हृदय की वेदना के साथ ही उसके रूप सौन्दर्य का वर्णन भी मिलता है। ये गीत बसन्त पंचमी से विषुवत संक्रांति तक गाये जाते हैं।

बसंती गीत:

गढ़वाल क्षेत्र में बसन्त के आगमन पर किशोरियां फंयूली के फूलों को एकत्रित कर प्रातः घर-घर जाकर देहली पूजा करती हैं और बसन्त पंचमी के दिन देहलियों और द्वारों पर चावलों के पीठे से चित्र बनाकर गोबर से हरे जौ की गुच्छियां थाप कर लगायी जाती हैं। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान बासन्ती गीत गाये जाते है।

होरी गीत:

बसन्त के ही मौसम में यह गीत होली के दिन गाया जाता है। लोग शंख, ढोलक और दमाऊ बजाते हुए गांव-गांव जाते हैं और होरी गीत गाते हैं।

बाजूबन्द नृत्य गीत:

रवांई-जीनपुर क्षेत्र में गाया जाने वाला यह एक प्रणय संबाद नृत्य गीत हैं। इसे जंगल में बांज, बुरांश,काफल, चीड़ और देवदार के पेड़ों के नीचे बैठकर गाते हैं। इसे दूड़ा नृत्य गीत भी कहते हैं।

 खुदेड़ गीत:

पहले गढ़वाल में लड़कियों का विवाह बचपन में ही हो जाता था। ससुराल में उन्हें घर के सारे कार्य करने पड़ते थे। अतः वे मायके की याद में खुदेड़ गीत गाती थी।

चौफला गीत:

यह स्त्री-पुरूष द्वारा सामूहिक रूप से गाया जाने वाला एक प्रकार का प्रेम व मिलन गीत है, इसमें रति, हास, मनुहार व अनुनय चारो भाव समाहित होते हैं। यह नृत्य प्रधान गीत है।

कुलाचार या विरूदावली गीत:

ये गीत राज्य में औजी व बद्दी जाति के लोगों द्वारा अपने ब्राह्मण-क्षत्रिय यजमान के घर मांगलिक अवसरों पर जाकर गाए जाते हैं। इन गीतों में औजी तथा बद्दी लोग अपने यजमान और उनकी जाति-वंश का गुणगान करते हैं।

चैती पसारा गीत:

चैत के महीने में औजी और वही जाति के लोग अपने स्त्रियों के साथ अपने यजमान के यहाँ विभिन्न प्रकार के गीत गाते हैं और उनकी स्त्रियां नृत्य करती हैं। बदले में वे रूपये, अन्न आदि प्राप्त करते हैं।

चौमासा गीत:

ये गीत वर्षा ऋतु में गाये जाते है, जिसमें अधिक वर्षा एवं प्रिय मिलन की आस रहती है। इन गीतों में विरह की भावना दृष्टिगोचर होती है।

बारामासा:

गढ़वाल क्षेत्र में विरहणी स्त्रियों द्वारा गाये जाने वाले बारामासा गीत में बारहों महिनों के लक्षणों (कैसा मौसम, कौन-कौन फूल, कैसा प्राकृतिक सौन्दर्य आदि) का वर्णन होता है।

पट गीत:

पट गीत उपदेशात्मक गीत होते हैं।

 चूरा गीत:

यह लोक गीत वृद्ध भेड़ चरवाहों द्वारा युवा चरवाहों को कुछ सीख देने के लिए गाया जाता है।

छोपती गीत:

यह संयोग-शृंगार ( पिय-मिलन) प्रधान गीत है. जो कि समूह में गाया जाता है। गढ़वाल के रवांई-जौनपुर क्षेत्र में यह अधिक प्रचलित है।

छपेली गीत:

मेला, विवाह आदि उत्सवों पर इस गीत को गाया जाता है। इसमें हुड़का बजाने वाला ही गाता भी है और अन्य लोगों को नाचता है।

 जागर गीत:

वे लोकगाथाएं, जिनका सम्बंध पौराणिक व्यक्तियों या देवताओं से होता हैं, जागर कहलाते है। ये किसी धार्मिक अनुष्ठान, तंत्र-मंत्र, पूजा आदि के समय देवताओं या पौराणिक व्यक्तियों के आह्वान या सम्मान में गाये जाते हैं। इसके गायक को जागरिये कहा जाता है। पाण्डव, कौरव, नरसिंह, भैरवनाथ, गोलू, करननाथ, गंगनाथ, मलयनाथ, बूढ़ाकेदार, गढ़देव, कालादेव, गढ़देवी आदि राज्य के प्रमुख जागर या जागर गीत हैं। इसको गाते समय जागरिया डमरू-थाली, हुड़की या ढोल-ढमामा बजाता है और डंगरिया को नचाता है।

झोड़ा गीत:

कुमाऊँ क्षेत्र में माघ महिने में गाया जाना यह एक प्रमुख समूह नृत्य गीत है। स्त्री-पुरुषों के श्रृंगारिक नृत्य वाले इस नृत्य-गीत का मुख्य गायक वृत के बीच में हुड़की बजाता हुआ गाता और नाचता है।

चांचरी (भौनी):

यह कुमाऊ-गढ़वाल के मध्य क्षेत्र का एक नृत्य गीत है, जिसमें स्त्री-पुरुष दोनों भाग लेते हैं। उत्तरायणी के अवसर पर इसे अधिक गया जाता है।

भगनौल गीत:

कुमाऊँ क्षेत्र का यह एक अनुभूति प्रधानगीत है। इसमें प्रेम की प्रधानता रहती है। ये गीत स्त्री के मन में कल्पना करते हुए उसके मधुर एहसास में प्रेमी द्वारा मेलों में हुड़के एवं नगाड़े के धुन पर नृत्य के साथ गाए जाते हैं।

न्यौली:

यह भी भगनौल की तरह इस क्षेत्र का एक अनुभूति प्रधान गीत है।

पॅवाड़ा या भड़ौ गीत:

वीरों के जीवनी से सम्बंधित गीतों को गढ़वाल में पॅवाड़ा तथा कुमाऊँ में भड़ो या कटकू कहते हैं। माधोसिंह भण्डारी, चिमलचंद, जीतु बगडवाल आदि वीरों सम्बंधी पॅवाड़े गाये जाते हैं।

थड्यागी:

इसमें सामूहिक रूप से स्त्रियों द्वारा एक-दूसरे पर हाथ रखकर लोकनायकों की गाथाएं गीत के रूप में गाई जाती है।
इसका गायन प्रायः बसंत पंचमी से विषुवत संक्रांति तक होता है।

 ठुलखेल गीत:

ये गीत कुमाऊ क्षेत्र में पुरुषों द्वारा भाद्रपद महिने में कृष्ण जन्म अष्टमी के आस-पास गाये जाते हैं। इसमें प्रायः राम-कृष्ण सम्बंधी प्रसंग गाये जाते हैं।

बैर गीत:

यह कुमाऊँ क्षेत्र का एक तर्क प्रधान नृत्य गीत है। प्रतियोगिता के रूप में आयोजित किये जाने वाले इस नृत्य-गीत के आयोजन में दो गायक तार्किक वाद-विवाद को गीतात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं। कुशाग्र बुद्धि वाला बैरीया अपना पक्ष मजबूत करता है और गीत के माध्यम से प्रतिद्वन्द्वी पर हावी होते-होते जीत जाता है।

हुड़कि बोल गीत:

कुमाऊँ क्षेत्र के ये कृषि सम्बंधी (खरीफ के समय) गीत हैं। हुड़कि बोल का अर्थ है हुड़के के साथ किया जाने वाला श्रम । प्रमुख गायक विशेष वेशभूषा के साथ इस वाद्य पर थाप देते हुए गीत की एक पंक्ति गाता है जिसे खेत में काम करने वाले लोग दुहराते हैं।


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