Uttarakhand: अल्मोड़ा उत्तराखंड में कुमाऊँ क्षेत्र का सवार्धिक चर्चित और ऐतिहासिक नगरों में से एक हैं। कई लोग अल्मोड़ा का परिचय उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी देते हैं।
कुमाऊ में पहाड़ी क्षेत्रों में रहने के लिए लोग अल्मोड़ा को अधिक पसंद करते हैं। क्योकि एक प्रांचीन नगर होने के साथ ही यह रेलवे स्टेशन और मैदानी क्षेत्र से लगभग 2-3 घंटे की दूरी पर स्थित कुमाऊँ के पहाड़ों में स्थित किसी भी अन्य नगर से अधिक सुविधा संपन्न है।
शहर की सीमा कर्बला बाई पास से शुरू होती है जहाँ दो रोड दिखाई देती हैं, दाई और चढाई की और जाने वाली सड़क माल रोड और बायीं और ढलान की और जाने वाली सड़क लोअर मॉल रोड कही जाती है। कभी पैदल सैर के लिए स्वर्ग माने जानी वाली माल रोड वाहनों के ट्रेफिक से भरी रहने लगी है। जिसमे अब लोग पैदल चलने से बचना चाहते है।
माल रोड और लोअर मॉल रोड के अलावा अल्मोड़ा में एक और महत्वपूर्ण सड़क है जिसे धारानौला रोड कहते है। शहर की सीमा में मैदानी क्षेत्रों से आते हुए पहला आबादी क्षेत्र कर्बला है, और छोटा रिहायशी क्षेत्र यहाँ से बायी ओर जाती सड़क है मॉल रोड जो मुख्य शहर की ओर जाती है, और दायी और जाने वाली रोड दुगालखोला होते हुए धारानौला अल्मोड़ा की ओर जाती है।
अल्मोड़ा में ऊँची नीची पहाड़ियों पर बने भवन, यहाँ की घनी आबादी को शहर में प्रवेश करते दिखाई देने लगते है।
उत्तराखंड राज्य की राज्य मिठाई बाल मिठाई, जो यहाँ की स्वादिष्ट डेलीकसी है और लगभग हर मिठाई की दुकान मे मिल जाती है। और पूरे उत्तराखंड में यही की बाल मिठाई फेमस है। कुछ दुकाने इसके लिए ज्यादा फ़ेमस है – जैसे मॉल रोड मे स्थित खीम सिंह मोहन सिंह और लाला बार स्थित – हीरा सिंह जीवन सिंह।
हालांकि समय के साथ इन चीजों की चमक फीकी पढ़ी है, बाल मिठाई के विकल्प के रूप मे कई ब्रांडेड डिब्बाबंद chocolates और दूसरी मीठाइयाँ जो अधिक समय तक चल जाती है यहाँ भी खूब प्रचलित हो गई है।
अल्मोड़ा की पटाल बाज़ार यहाँ का मुख्य आकर्षण का केंद्र है। पटाल इस बाज़ार के एक कोने से दूसरे कौने तक बिछे है। इस पटाल बाज़ार मे हर कुछ कदम चलने के बाद मुहल्लों के नाम बादल जाते है। पटाल बाज़ार के चपटे बिछे पत्थरों की जगह कोटा के चिकने पत्थरों ने ले ली है तो इनमे चलने मे वो पुराने घर के आँगन मे चलने का एहसास खो सा गया गया है। इनमे से नन्दा देवी क्षेत्र ही एक ऐसी जगह है, जहां आज भी पटाल बिछे दिखते हैं यहाँ समतल रास्ते कि जगह चलने के लिए सीढ़ीनुमा रास्ते है।
अल्मोड़ा में बाज़ार कुछ नाम लाला बाज़ार, चौक बाज़ार, कारख़ाना बाज़ार, कचहरी बाज़ार, जोहरी बाज़ार, थाना बाज़ार, पलटन बाज़ार आदि है।
अल्मोड़ा की और भी कई चीजे लोकप्रिय हैं जैसे, यहाँ के नौले यानि प्राकृतिक जल स्रोत यहाँ सेकड़ों नौले हुआ करते है, और नौलों के पास मंदिर भी। अल्मोड़ा की आबादी नौलों के आस पास बसती थी, अब जगह जगह पानी की लाइन आने के बाद शहर का विस्तार बढ़ता जा रहा है। कई नौले अब भी है लेकिन उन पर निर्भरता कम होने से, लोग उनके संरक्षण के प्रति उदासीन हो गए।
पहले पहाड़ी इलाकों मे रहने वाले लोग दूर से इसे देखने आते, और इस पर चर्चा कौतूहल का विषय होता था। उस समय पहाड़ों मे दूर, हल्द्वानी जैसे समीपवर्ती मैदानी क्षेत्र मे भी इतने ऊंचे भवन देखने को नहीं मिलते थे। लेकिन अब तो हल्द्वानी में कई बड़े-बड़े भवन है लेकिन तब बिना कम्प्युटर तकनीक और भारी भरकम मशीनों के पहाड़ी क्षेत्र मे ऐसा निर्माण अपने आप मे आश्चर्य था।
स्वामी विवेकानंद, महावतार बाबा, लाहीड़ी महाशय, परमहंस योगानन्द, महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर सहित अनेकों भारतीय संत, आमजन और विदेशियों ने यहाँ की पहाड़ियों मे अपना समय बिताया, और अपने-अपने समय मे यहाँ की ऊर्जा और शांति से प्रभावित और प्रेरित हुए है।
यहाँ की हवाएँ लोगों को क्रिएटिव energy से भर देती है । यहाँ लोगों का जीवन के प्रति नजरिया स्पष्ट है। वो यहा तो यहाँ की गलियों और आस पास की पहाड़ियों मे लांघते अपना एक शांतिपूर्ण जीवन गुजार देते है या यहाँ से मिली ऊर्जा से दुनियाँ मे अपनी एक अलग राह बना लेते है।
अल्मोड़ा में लगभग हर जगह पहुचने के लिए कुछ सीढ़िया चढ़ना-उतरता पढ़ता है। यहाँ ब्रिटिश टाइम मे बने भवन देखने के साथ, चंद राजाओं के समय के निर्माण भी देखे जा सकते है।
अल्मोड़ा शहर ने कत्युरी और चंद शासन परम्पराएँ, गोरखाओं का राज भी देखा, ब्रिटिश शाशन के दौर को भी देखा है। सन 1568 मे राजा कल्याण चंद ने अपनी राजधानी स्थापित करते समय इस जगह को अल्मोड़ा नाम दिया। अल्मोड़ा चंद वंश से पूर्व कत्यूरी राजवंश के अधीन थी।
कत्यूरी राजवंश से पूर्व महाभारत काल मे भी यहाँ मानवों के रहने के विवरण मिलते है। अल्मोड़ा के पास – लखु उडियार नाम के स्थान मे मे प्रगतिहासिक मानवों द्वारा पत्थर मे उकेरी आकृतियाँ मिलती है।
चंद राजवंश के अवसान के बाद, और ब्रिटीशेर्स के आने से पूर्व अल्मोड़ा कुछ समय तक नेपाल के गोरखा राजाओं के आधीन भी रहा। गोरखा शासकों के आने से पूर्व 1744 मे रोहिल्ला शासक अली मोहम्मद खान के भी अधीन रहा। अल्मोड़ा के तत्कालीन चंद राजा उनका विरोध नहीं कर सके लेकिन यहाँ के ठंडे मौसम के परेशान होकर साथ महीने मे ही वो अल्मोड़ा को छोडकर वापस अपनी राजधानी बरेली लौट गए।
ब्रिटिश काल से यूरोपियन अल्मोड़ा मुख्यतः कसारदेवी और उसके आस पास के स्थानों मे आने लगे थे, जो अब भी आते है, और कई तो यहाँ बस गए है । अल्मोड़ा की जलवायु ठंडी है, जो यूरोप के कई भूभागों से मिलती है। साथ ही, कसार देवी और आस पास के क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता यूरोप के खूबसूरत प्रदेशों से किसी भी मामले मे कम नहीं है।
यहाँ ट्रैकिंग करते हुए समय बिताने के बाद जाना जा सकता है कि क्यों यह क्षेत्र महाभारत काल से ही हर युग में लोगों को पसंद आता रहा। न सिर्फ यहाँ यहाँ की स्वच्छ और स्वास्थ्यप्रद जलवायु के लिए बल्कि ध्यान और योग के लिए भी ये जगह बेहद महत्वपूर्ण रही।
कसारदेवी मे रोड से गुजरते हुए इस जगह की खूबसूरती को, बिना आस के वन क्षेत्र मे विचरण किए बिना नहीं समझा जा सकता।
अल्मोड़ा जनपद मुख्यालय के प्रमुख धार्मिक स्थल है – नंदा देवी मंदिर, कसार देवी मंदिर, चितई गोलू मंदिर, गैराड गोलू देवता मंदिर, जागेश्वर धाम, बानडी देवी मदिर , कटारमल सूर्य मंदिर, बिनसर महादेव मंदिर रानीखेत, गणनाथ मंदिर ताकुला, झुला देवी मंदिर आदि
अल्मोड़ा के नजदीकी हवाई अड्डा, पंतनगर में स्थित है, जो अल्मोड़ा से लगभग 127 किलोमीटर दूर है।
निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित है। काठगोदाम रेलवे से सीधे देश की राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, और उत्तराखंड की राजधानी देहरादून सहित कलकत्ता आदि महत्वपूर्ण स्थानों हेतु ट्रेन चलती है।
काठगोदाम और समीपवर्ती शहर हल्द्वानी से अल्मोड़ा का लिए दिन के समय नियमित अन्तराल में टैक्सी/ और बस उपलब्ध हो जाती है।
अल्मोड़ा के बारे में और जानने के लिए CLICK करें। https://youtu.be/TtTIRoJ4S68