Home Entertaining जिस समाज में हम रहते हैं उस समाज के मानक

जिस समाज में हम रहते हैं उस समाज के मानक

by Bharat Bangari

ये वो होते हैं जो बरसात में पैंट मोजों के अन्दर करके सड़क पार करते हैं। ये अक्सर क्लास में पीछे से तीसरी लाइन में बैठते हैं, ताकि टीचर या तो आगे के बच्चों को देखे या पीछे के, इन्हें नहीं। ये मुंह में अक्सर खैनी दबा के बैठते हैं क्लास में, और लोग सोचते हैं ये कम बोलते हैं। ये अक्सर महफ़िलों में किसी को एक को पकड़ के दर्शन-शास्त्र समझाते मिल जाते हैं। ये चुप-चाप एक अनोखी दुनिया समेटे चलते हैं। गुमनाम जिंदगी बिताते हैं। पैंतीस-चालीस के बाद ये सरकारी नौकरी पे लग ही जाते हैं, कैसे न कैसे और उस से पहले ये एड-होक पे नौकरी करते हैं, और इंटर के बच्चों को ट्यूशन पढाते हैं।

समाज कहता है- देखो मदन ने कितनी मेहनत करी। ईजा-बाबू का बनाया मकान ठीक किया, छोटी बहन की शादी भी कर दी। देखो तो, अब जाके अपना सेटल हो पाया है। बड़ा ‘प्रैक्टिकल’ है रे, कभी कोई ऐब नहीं किया, हमेशा बचत करी इसने तो। सुना पी.सी.एस. निकल रखा है इस बार। आबकारी-अधिकारी बन गया है, बहरहाल मदन दा जैसे लोग होते बड़े रोचक हैं।

एक बार ये इंटर कॉलेज में पढ़ाते थे, एड-होक पे। वहां पिपेट से नाप के ६० एम्.एल. का पेग बनाते थे रम का, इनके घर में हमेशा गाँव का घी मिलता था। स्कूल-फीस माफ़ कर देते थे ये – उन बच्चों की, जो घी लाते थे। अहा, देखते इनको आप पाठक जी की शादी में, इनकी नजरें सालियाँ ढूंढ रही थी बस। जो भी हो- होते प्रैक्टिकल हैं।  कुछ न कुछ ऐसा कर देते हैं कि पूरा समाज गुण-गान करता है इनके और कहता है- बनो तो मदन जैसे। वाह क्या आदमी है। खैर मुझे तो लगता है गुब्बारे में भरी गैस है,  एक दिन निकलेगी जरूर।


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