शांति की दूत और मानवता की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा की आज 110 वीं जयंती है। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को अल्बेनियाई परिवार में हुआ था दुनिया उन्हें मदर टेरेसा के नाम से जानती है, लेकिन उनका वास्तविक नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था उन्होंने भारत के दीन-दुखियों की सेवा की थी, कुष्ठ रोगियों और अनाथों की सेवा करने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। उनकी इन्हीं काम के चलते नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
मदर टेरेसा के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- मदर टेरेसा कैथोलिक थीं, लेकिन उन्हें भारत की नागरिकता मिली हुई थी उन्हें भारत के साथ साथ कई अन्य देशों की नागरिकता मिली हुई थी, जिसमें ऑटोमन, सर्बिया, बुल्गेरिया और युगोस्लाविया शामिल हैं।
- साल 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों की सेवा का संकल्प लिया था निस्वार्थ सेवा के लिए टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की थी. 1981 में उन्होंने अपना नाम बदल लिया था।
- अल्बानिया मूल की मदर टेरेसा ने कोलकाता में गरीबों और पीड़ित लोगों के लिए जो किया वो दुनिया में अभूतपूर्व माना जाता है।
- उन्होंने 12 सदस्यों के साथ अपनी संस्था की शुरुआत की थी और अब यह संस्था 133 देशों में काम कर रही है. 133 देशों में इनकी 4501 सिस्टर हैं।
- मदर टेरेसा को उनके जीवनकाल में गरीबों और वंचितों की सेवा और उत्थान के लिए कई पुरस्कार मिले इसमें 1979 में मिला नोबेल शांति पुरस्कार सबसे प्रमुख था, जो उन्हें मानवता की सेवा के लिए प्रदान किया गया था।
- वेटिकन सिटी में एक समारोह के दौरान रोमन कैथोलिक चर्च के पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी दुनियाभर से आए लाखों लोग इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बने थे।
- मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन गरीब और असहाय लोगों की भलाई के लिए समर्पित कर दिया था वह सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी अपने मानवता के कार्यों के लिए जानी जाती हैं।
- मदर टेरेसा अपनी मृत्यु तक कोलकाता में ही रहीं और आज भी उनकी संस्था गरीबों के लिए काम कर रही है. उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के साथ भारत रत्न, टेम्पटन प्राइज, ऑर्डर ऑफ मेरिट और पद्म श्री से भी नवाजा गया है। उनका कहना था, ‘जख्म भरने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठ से कहीं ज्यादा पवित्र हैं।’
- अपने जीवन के अंतिम समय में मदर टेरेसा पर कई लोगों ने आरोप भी लगाए उन पर गरीबों की सेवा करने के बदले उनका धर्म बदलवाकर ईसाई बनाने का आरोप लगाया गया। लगातार गिरती सेहत की वजह से 5 सितंबर 1997 को उनकी मृत्यु हो गई।