मानसिक पिटाईयाँ

by Bharat Bangari
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सबसे पहले पिटाई हुयी थी-जिसकी याद है- सन 93 में। अल्मोड़ा आये साल-दो-एक हो गए थे- दीदी को दीदी बोलो, उसके नाम पे नहीं। माँ की खास आदत थी कि, जो हाथ में हो वो फैंक के मार दें, या फिर पकड़-पकड़ के धो दें। बिलकुल (वर्ष 1997 तक यही रही- फिर वो शारीरिक रूप से इतनी दुरुस्त नहीं रही कि पिटाई कर सकें,  वरना चाहें तो आज भी, कभी भी-कहीं भी)। फिर भाईसाहब अक्सर नूतन फिजिक्स या फिर गणित में, सही कहूं तो हाई-स्कूल के बाद गणित ना लेने का एक कारण ये पिटाई भी थी कि, कौन रोज-रोज मार खाए (और भाईसाब तो हमेशा शारीरिक रूप से बेहतर ही हुए)।

गुरु जी.आई.सी., अल्मोड़ा में आप बिना पिटे सात साल काट के दिखा दो, जुबान पे जलती चवन्नी ले के दुगालखोला से कसारदेवी पैदल जाऊंगा। लगा लो शर्त! आखिरी साल तक बचे थे कि, एक दिन एक मैथ्स वाले टीचर, हमारी क्लास को फिजिक्स का प्रैक्टिकल करा रहे थे, चुल्ल में एक वोल्टमीटर गिर पड़ा बगल वाले से, हमारे पैरों के पास। खैर, एक थप्पड़ बिना बात का यहाँ मिला। एक प्रचलित बुक लिखी थी मासाब ने, और हमारे भाईसाब के फेवरेट गुरु थे ये। हम भी बड़ी इज्जत करते थे, अब भी करते हैं। तो ये था वर्ष 2000, अभी तक परिवार के बड़े लोगों के अलावा, बस ये जोशी मास्साब ने ही पिटाई की थी। पंतनगर गांधी-भवन कमरा ११५ रियर-विंग में एथिल में शायद थोडा मिथाइल-अल्कोहल ज्यादा होने की वजह से बहक गए थे। बहरहाल वार्डन पीटते हुए कह रहे थे, अच्छा यार हैं हम तुम्हारे? पता नहीं क्या-क्या बोला उनको। कोई कह रहा था, गाली भी दी एकाध मैंने वार्डन को। लेकिन मैं नहीं मानता। बहुत ही सज्जन थे यार वो। फिर एक भाईसाब पता नहीं क्यूँ एक-दिन किसी लड़की के मामले में कुछ कहने लगे और फिर धुनाई शुरू, चोटिल मैं फुटबॉल में पसीना बहाया था, थोडा और सही, लो आप भी धो लो। एक कंडक्ट-प्रोबेशन होता था पंतनगर में तो बात वहीँ गड्डी। और वैसे भी जितनी भाषाएँ उनको आती थी उस समय पे, आप-हम क्या हैं? काफी कुछ सीखा उनसे। जो तब जो था, वो अब वो नहीं। ये था वर्ष 2003, ये आखिरी होगी समझ के बढ़ लिए। साल-दो-एक इधर-उधर और अब तक ऐसा ही है। अब सोचता हूँ कि पिछले 11 सालों में कितना कुछ मिस किया। सबसे ज्यादा- मिस करता हूँ- पिटना- साला शारीरिक रूप से पिटने में आदमी का बेबात वाला ईगो पिटता है, जो सही भी है, तात्कालिक होता है, पिटने दो।

अब साला मानसिक पिटाईयाँ होती हैं, जिंदगी की, झेली नहीं जाती, कोई कुछ उपाय बताओ यार

क्या कहा! आप भी ढूंढ रहे हो? ओहो- सॉरी-सॉरी, आप ढूंढो,  मेरे नये लोन की नयी नयी किस्तें चालू हुई हैं, उनको भरने के लिए मुझे शाम तक कुछ और चलना है।


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