Home History गोरखाओं की न्याय प्रणाली

गोरखाओं की न्याय प्रणाली

by Mukesh Kabadwal

उत्तराखंड के इतिहास में गोरखाओं का शासन क्रूर माना जाता है । क्रूर शासन की न्याय प्रणाली का भी सुव्ययस्थित ना होना भी स्वाभाविक है । गोरखाओं  की न्याय व्यवस्था हर प्रान्त में ‘सुब्बा’ ‘नयाबसुब्बा ‘ सेना का कमांडर या अन्य सेना के कर्मचारी देखते थे ।  जिस  प्रशासनिकक्षेत्र में जो  कमांडेंट नियुक्त होता था वह वहा के छोटे मोटे मामलो को निपटा लिया करता था । महत्वपूर्ण मामलो का निर्णय सुब्बा फौजी अधिकारियो की मदद से करता था । पंचायत में एक निश्चित शुल्क लेकर मामले निपटाए जाते थे । यदि किन्ही दो व्यक्तियों का विवाद सुलझाना हो तो पहले उन्हें पंचो के लिए दारू और बकरे का संकल्प लेकर उस पर पानी का छिड़काव कराया जाता था । दारू व् बकरा भोजनार्थ पहले से ही हाज़िर रहता था ।

गोरखों की न्याय प्रकिर्या उनके पूर्ववर्ती शासको एंव अधिकांश हिन्दू राज्यों में आखिर तोर पर सामान्य एंव  सर्वमान्य थी । अदालत में वादी व् प्रतिवादी को बुलाकर परीक्षा ली जाती थी ।यदि किसी गवाह पे शक होता था तो उसे महाभारत के एक भाग हरिवंश की कसम खिलायी जाती थी । यह प्रथा अंग्रेज़ो की काल में भी प्रचलित रही । जहाँ कोई चस्मदीद नहीं मिलता था वह फिर ‘दिव्य ‘ नाम की अग्नि परीक्षा होती थी इसके लिए चार  दिव्य प्रचलित थे ।—

गोला दीप – इसमें एक हाथ में गरम लोहे का डंडा पकड़कर चलना पढ़ता था ।

कड़ाई दीप – इसमें कढ़ाई में उबलते तेल में हाथ डालना पड़ता था। यदि हाथ जल गया तो दोषी , यदि नहीं जला तो निर्दोष ।

तराजू का दीप –इसमें दोषी व्यक्ति को तराजू में तौला जाता था यह प्रक्रिया शाम के वक्त होती थी जीन पथरो से दोषी को तौला जाता था । उन पथरो को सुरक्षित स्थान में छुपा दिया जाता था पहर सुबह उन्ही पथरो से दुबारा तौला जाता था यदि दोषी का भार पहले से  ज्यादा होता था तो दोषी निर्दोष होता था , यदि कम होता था तो व्यक्ति दोषी माना जाता था ।

घात  का दीप – यह दीप कुमाऊं में आज भी प्रचलित है। इनमें न्याय के देवता ( गोलू , गरदेवी , कोटगाडी ) विवादित वस्तु -रुपया या मिटटी – मूर्ति के ठीक सामने रख दी जाती थी ।अपने को निर्दोष सिद्ध करने वाला व्यक्ति उस वस्तु को मंदिर से उठाता था । वास्ताव में जो निर्दोष होता था । वही इसे उठाने की हिम्मत करता था । उस वस्तु को उठाने के छः महीने बाद यदि उसके परिवार को जान हानि या देवी प्रकोप नहीं होता था तो वह व्यक्ति निर्दोष  माना जाता था ।

 

You may also like

Leave a Comment

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00