[dropcap]घ[/dropcap]र के समीप की डेयरी में दूध, कुछ दूरी पर स्थित एक ग्रामीण क्षेत्र से आता था। दूध प्रतिदिन दो बार, एक बार सुबह, दूसरी बार शाम को मिलता था। मैं अपनी सुविधानुसार अधिकतर शाम को ही लेने जाता था।
गाँव से इस डेयरी की दूरी होगी लगभग 20-22 किलोमीटर के आस पास। और शाम के वक़्त कभी कभी दूध पहुँचने में अधिक ट्रेफिक होने की वजह से गाँव से डेयरी तक दूध पहुचने में समय लग जाता था। कभी-कभी आधे घंटे या एक घंटे तक इंतज़ार करना होता। दूध गाय का था, और बाकी जगह की तुलना में दूध की quality अच्छी थी, इसलिए लोग अपने व्यस्त ज़िन्दगी के बाद भी प्रतीक्षा करने को तत्पर रहते।
तो ऐसे ही कल शाम, डेयरी के समीप, दूध के इन्तेजार में, अपने विचारो की उधेड़बुन में खोया हुआ मै, अपनी बाइक को सेण्टर स्टैंड में लगा कर उस पर बैठा था… तभी बाजू में एक बाइक रुकने की आवाज आई, और
उस पर बैठे सवारियों में से एक ने पुछा – “यहाँ इतनी भीड़ क्यों लगी है?“
मैं- “दूध के लिए।“
वो – ” कैसा है?“
मै- “ठीक है।“
वो- “क्या भाव?“
मै- “50/- रुपये लीटर।“
फिर वो बोलने लगे – “महंगाई बहुत बढ़ गयी है, अब तो 2-4 गाय रख, दूध का धंधा कर लो, बहुत प्रॉफ़िट रहेगा…“
(इसी बातचीत के दौरान मैंने देखा, उनकी बाइक में जो झोला टंगा था, उसमे थी विदेशी $₹।ब की बॉटल्स, और थे 20 -25 रुपये वाला हवा के २-३ पैकेट जिसमे नमकीन भी होती है।)
हम दोनों हसे, वो मेरी हसी को ग़लतफ़हमी में उनकी बात पर सहमति समझ लिए… (पता नहीं किसकी हसी के पीछे ज्यादा दर्द छुपा था।)
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