चम्पावत : उत्तर भारत के प्रसिद्ध मां पूर्णागिरि धाम में होली के बाद लगने वाले मेले से इस बार पूर्णागिरि मंदिर के पुजारियों और नगर के व्यापारियों को काफी आशाएं हैं। पिछले साल कोरोना महामारी के कारण मेले को बीच में ही रोकना पड़ा था, जिससे न तो पुजारियों की आमदनी हो पाई और न ही व्यापारियों का व्यवसाय चल पाया। जिससे इन सभी लोगों को आर्थिक मंदी से जूझना पड़ा। अब हालात सामान्य होने के बाद मेले की तैयारियां पुनः आरम्भ हो गयी हैं। पुजारियों और कारोबारियों को उम्मीद है कि इस बार मेले में भीड़ उमड़ने के साथ उनका व्यवसाय भी चल निकलेगा।
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प्रतिवर्ष होली के अगले दिन से शुरू होने वाले इस मेले की प्रतीक्षा न केवल धाम के पुजारी और दुकानदार करते हैं, बल्कि टनकपुर बाजार के व्यवसायी भी मेले की प्रतीक्षा में रहते हैं, ताकि उनका कारोबार को नया बाजार मिल सके। सरकारी तौर पर आयोजित होने वाले इस मेले की समयावधि लगभग तीन महीने की होती है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। धाम के 500 से अधिक पुजारी परिवारों के अलावा टैक्सी व्यवसायी, होटल व्यवसायी, दुकानदार, भोजनालय आदि कारोबार सीधे इस मेले से जुड़ा है। पिछले वर्ष मेला कोरोना के कारण अपनी गति नहीं पकड़ पाया था, और बीच में रोक देना पड़ा था। प्रशासन ने इस बार मेला तीन माह के बजाए एक माह का करने का निर्णय लिया है, इससे व्यवसायियों को आशा है कि एक माह ही सही मेला ठीक ठाक चला तो वे आर्थिक तंगी से उबर जाएंगे।
अगर नेपाल सीमा खुली तो सिद्धबाबा के भी दर्शन कर पाएंगे श्रद्धालु
नेपाल सरकार द्वारा भारत से लगी सीमाओं को खोलने के बाद, शीघ्र ही टनकपुर से लगी ब्रह्मादेव की सीमा पर भी आवाजाही शुरू होने की आशा है। पूर्णागिरि मेले तक सीमा दोनों देशों के नागरिकों के लिए खुल जाती है तो पूर्णागिरि आने वाले श्रद्धालु ब्रह्मदेव जाकर सिद्धबाबा के दर्शन कर पाएंगे। मान्यता है कि पूर्णागिरि की यात्रा तभी पूरी मानी जाती है जब साथ में सिद्धबाब के भी दर्शन कर लिए जाएं।
पूर्णगिरी मंदिर समिति के अध्यक्ष भुवन चन्द्र पाण्डेय ने बताया कि – मेले के दौरान मंदिर समिति कोविड के नियमों का पूरा पालन करवाएगी और इस कार्य में प्रशासन का पूरा साथ देगी।
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