चित्रशिला तीर्थ रानीबाग-पूर्व काल में बद्रीनाथ (हरि) तथा कैलाश (हर) यात्रा का भी यह प्रवेश द्वार था

by Deepak Joshi
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पूर्व काल में बद्रीनाथ ( हरि ) तथा कैलाश ( हर ) यात्रा उत्तराखंड का भी यह प्रवेश द्वार था । राज्य को देवभूमि के नाम से भी हमारे देश में जाना व पहचाना भी जाता है । यहाँ की भूमि के कण – कण में देवता विद्यमान है ऐसी यहाँ के निवासियों की आस्था है । जगह जगह पर यहाँ पवित्र तीर्थ स्थान है । उन्हीं तीर्थ स्थानों में से एक नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर से उत्तर दिशा की ओर पवित्र तीर्थ रानीबाग भी स्थित है । हिमालय राज के श्री चरणों में स्थापित यह तीर्थ चित्रशिला तीर्थ रानीबाग के नाम से प्रचलित है । यह मैदानी भाग से पहाड़ की ओर प्रवेश का मुख्य द्वार भी है ।

रानीबाग अति रमणीक घाटी है यहाँ पर प्रतिवर्ष 14 जनवरी को जियारानी की गुफा में उत्तरायणी का प्रसिद्ध मेला लगता है , जिसमें दूर – दूर से साधु – सन्त व भक्तगण तथा कत्युरिए के डंगरिये आकर जागरण करते हैं तथा जियरानी की जय जय कार करते हैं । यही पर गोला ( गार्गी ) नाम की नदी बहती है इस नदी के 100 मीटर उत्तर -पश्चिम की छोटी पहाड़ी में जिया रानी की गुफा है , कहते है यह गुफा और गोला नदी हरिद्वार की हर की पैड़ी पर मिल जाती है । इसलिए रानीबाग को एक पवित्र तीर्थ की संज्ञा दी गयी है । यह पूरे कुमाऊँ का तीर्थ है । जिया रानी के गुफा के पास अनेक छोटे बड़े मंदिर हैं । प्रतिवर्ष 14 जनवरी को जब कुमाऊँ में छू छूलिया व घुघतिया पर्व मनाया जाता है , उसकी पूर्व संध्या को रानीबाग में स्नान करना पवित्र माना जाता है ।निर्धन लोग इस दिन रानीबाग में ही यज्ञोपवित संस्कार भी करवाते हैं । सन् 1400 के आस – पास प्रीतम देव का समरकंद के तुर्की सम्राट तैमूर लंग की सेना से युद्ध छिड़ गया पर तैमूर की सेना को पराजय का मुँह देखना पड़ा । इस युद्ध के दौरान जियारानी ने रानीबाग की गुफा में बैठकर तपस्या की थी , परिणाम स्वरुप विजयश्री ने उनके पति का वरण किया था ।

ऐसा कहा जाता है कि सदियों पहले यहाँ जियारानी का आम , लीची तथा कटहल का बाग था । जिसे जियारानी का बाग के नाम से जाना जाता था , कालांतर में इसी ने रानीबाग का स्वरुप धारण कर लिया ।इसी तीर्थ में उत्तरायणी संक्रांति का मेला भी आयोजित होता । मेले में पहुंचने वाले श्रद्धालु जन संक्रांति के पहले ही दिन पहुँच जाते हैं । भक्तजन में ढोल – नगाड़े बजाते हुए वज फहराते हुए आते हैं । कत्यूरी वंश के लोगों द्वारा रात्रि जागरण कर अपने ईष्ट देव को याद किया जाता है एवं घर में खुशहाली हेतु आशीर्वाद की कामना भी की जाती है । रात भर ‘ जय जिया -जय जिया स्वर गूंजता रहता है । प्रातः काल स्नान पूजा कर भक्तजन अपने – अपने घरों को वापस चले जाते हैं



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