जंगली जानवरों से खेती को होते नुकसान को देखकर किसानों का मोह भंग हो गया खेती किसानी से

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farming in hills

भारत जैसा देश जिसको कहा जाता है कि – यह देश गांव में बसता है, और जब गांव के किसान जी तोड़ मेहनत करते हैं तो तब पूरे देश के लोगों का पेट भरता है। भारत जैसे देश की दो ही नींव में, एक बार्डर पर सेना दूसरा गांव के किसान जिनके मेहनत परीश्रम से पूरे देश के लोग जीवित हैं। लेकिन आज की स्थिति ऐसी है कि अधिकतर लोग खास तौर पर किसान जो अपनी खेती-बाड़ी छोड़ चुके हैं, उसका कारण कोई और नहीं वो जंगली जानवर हैं जो दिनभर खेतों में की गई मेहनत को रात में मिट्टी में मिला देते हैं।

ऐसा हाल राज्य के हर पहाड़ी जिले में है, अगर चंपावत जिले की बात करें तो इस जिले में साग सब्जी के साथ,आलू, धान, जों, गेहूं, मक्का, सहित सारी फसलें उगाई कुछ साल पहले तक उगाई जाती थी पर अब जंगली जानवर का ऐसा भय है कि ग्रामीण ने 80 प्रतिशत खेती करना बंद कर दिया है।

उसका कारण यही है कि जो भी खेती करो जंगली सूअर, हिरन, घुरण, व खरगोश बर्बाद कर देते हैं। जिले में आलू की फसल हर किसान 5 लाख से लेकर 50 लाख तक कमाता था पर आज के समय में वही किसान सब्जी के लिए आलू उगा रहे हैं। ऐसा ही हाल हर खेती पर है जितने में किसान बीज लाता है जंगली जानवर ऐसे खेती बर्बाद करते हैं कि किसान लोन, या उधार में लिया रुपया भी नहीं चुका पाते।

इसी कारण चंपावत में खेती बाड़ी 100 से 20 प्रतिशत में आ गई, पर राज्य सरकार के पास ऐसी कोई कोई समाधान है ही नहीं कि किसानों की खेती कैसे बढ़ाई जायेगी, और जंगली जानवरों को खेती नष्ट करने से कैसे बचाया जाए, चंपावत जिले की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां खेती बाड़ी के अलावा अन्य कार्य नहीं हो सकते पूरे पहाड़ी क्षेत्रों में, क्या इस समस्या के निराकरण का कोई उपाय है तो बताना चाहिए राज्य सरकार को, क्यों कि खेती-बाड़ी में लगे लोग भी पलायन करने को मजबूर हैं पढ़ें लिखे लोग तो पलायन हर साल ही करते हैं।

अच्छे रोजगार के लिए, अगर राज्य सरकार इन सब लोगों की व्यवस्था कर दे तो ही पहाड़ की जवानी व पानी काम में आयेगा, वरना ये भी जुमला ही बन के रह गया है। ये केवल चंपावत जिले की समस्या नहीं है पूरे राज्य के परेशानी के कारण बन गये हैं जंगली जानवर।


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