मानव जीवन की शुरुआत और विकास की यात्रा समझने के लिए वर्षों से वैज्ञानिक शोध में जुटे हैं, लेकिन एक कोशिकीय अमीबा से बहुकोशिकीय मानव बनने का सफर तय कर लेने के बावजूद जीवन की उत्पत्ति और प्रारंभिक उत्क्रांति की पहेली अब तक अनसुलझी है।
भारत में इसी पहेली को सुलझाने के लिए कुमाऊं और गढ़वाल में हिमालय की तलहटी यानी लेसर हिमालय क्षेत्र में न्यू प्रोटेरोजोइक और कैंब्रियन युग (आज से 541 मिलियन साल पहले) की शैल में किए गए भूवैज्ञानिक शोध के चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। इसमें पता चला है कि उत्तराखंड के नैनीताल, मसूरी और ऋषिकेश से लगे शिवपुरी क्षेत्र में पृथ्वी पर प्रारंभिक जीवन दर्शाने वाले जीवाश्म मुख्यत: अक्रिटार्क और स्पॉन्ज मौजूद हैं, जो शुरुआती बहुकोशिकीय जीवों की असाधारण की विविधता दर्शाते हैं।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की पूर्व वैज्ञानिक डॉ.मीरा तिवारी और कुमाऊं विवि में भू-विज्ञान के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ.राजीव उपाध्याय के निर्देशन में शोध करने वाली पिथौरागढ़ राजकीय महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापिका डॉ.हर्षिता जोशी ने 14 अक्तूबर को अमेरिकी जरनल प्रीकैंब्रियन रिसर्च में प्रकाशित अपने शोध के जरिए यह दावा किया है।
541 मिलियन साल पहले हिमालय की जगह समुद्र था।
डॉ.हर्षिता के अनुसार वर्तमान में जहां हिमालय है, पुरातन युग में आज से 541 मिलियन साल वहां समुद्र था। नैनीताल, मसूरी और गढ़वाल हिमालय का तलहटी क्षेत्र समुद्री तट थे। पुरातन हिमयुग खत्म हुआ तो समुद्र का तापमान बढ़ा। इसके बाद ज्वालामुखियों से निकले पोषक तरलों से समुद्री तटों पर जीव विविधता को बढ़ावा मिला।
इन जीवों के जीवाश्म आज भी लेसर हिमालय क्षेत्र में पाए जाते हैं। मसूरी और शिवपुरी क्षेत्र में मिले मेगाथ्रिक्स और परदिएगोनेल्ला नामक जीवाश्म भी पुरातन मेटाजोन हैं, जो यहां पहली बार मिले हैं। लेसर हिमालय में इन जीवाश्म की मौजूदगी का और अधिक अनुमान है। इससे भविष्य में हाई रेज्यूलेशन स्टडी के जरिए हिमालय की क्रोन बेल्ट में पहली बार एकरीटार्क बीओजोनेशन स्कीम में मदद मिलेगी।
उत्तर भारत और दक्षिण चीन एक ही समुद्र तट थे
वर्तमान अध्ययन में नैनीताल क्षेत्र से टीआनजूशानिया नामक जीवाश्म खोजा गया है, जो पूरे विश्व में अब तक सिर्फ चीन के दोसंतुओ क्षेत्र में ही पाया जाता था। इसकी यहां उपस्थिति दर्शाती है कि आज से 541 मिलियन साल पहले पुरातन युग में आज का उत्तर भारत और दक्षिण चीन एक ही समुद्र तट का हिस्सा थे। यहां मिले शैल (चर्ट) में ऑक्सीजन आइसोटोप के अध्ययन में यह भी पता चला है कि तब समुद्री पानी का पारा 70-80 डिग्री सेल्सियस था। इससे पता चलता है कि पहले एनॉक्सिक (कम ऑक्सीजन वाली) परिस्थितियां थीं, जो बाद में ऑक्सिक में बदल गई। पोषक तत्वों के बढ़ने के साथ नए जीवों का विकास हुआ।
दुनिया में पहली बार प्रारंभिक जीवन के अवशेष उत्तराखंड में मिले हैं। अब शोध कार्य के परिणाम सामने आने के बाद समाज नई सोच की ओर अग्रसारित होगा।
प्रोफेसर राजीव उपाध्याय, वरिष्ठ भू वैज्ञानिक, कुमाऊं विवि, नैनीताल
शोध के क्षेत्र में यह एक बड़ी उपलब्धि है। यही नहीं इस शोध के बाद नैनीताल से मसूरी और ऋषिकेश समेत इस बेल्ट में अन्य शोध कार्यों की भी संभावनाएं बढ़ गई हैं।
डॉ.मीरा तिवारी, पूर्व वैज्ञानिक, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी