सपनों की साइकिल से हकीकत का सफर

by Sunaina Sharma
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यह बात है उन दिनों की जब मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी।

सपनों की साइकिल से हकीकत का सफर

जब मैं साइकिल चलाना सीख रही थी तो बहुत बार गिरी लेकिन चोट नहीं लगी, वो सभी पल यादगार लम्हा बन गए। एक बार फुल स्पीड में साइकिल चला रही थी, साइकिल चलाते हुए रेतली जमीन पर गिर गई, फिर जल्दी से उठकर अपनी चोट को देखने से पहले – अपने चारों तरफ देखा – कि मुझे किसी ने देखा तो नहीं। नहीं तो उस बात से ज्यादा दर्द होता।

एक बार मैं, मेरी दोस्त और मेरा भाई हम तीनों साइकिल चलाना सीख रहे थे। मैं साइकिल चलाने लगी तो उन्होंने पीछे से साइकिल चुपके से छोड़ दी, मैं साइकिल चलाते हुए काफी आगे बढ़ गई, फिर एहसास हुआ कि पीछे से साइकिल किसी ने पकड़ी ही नहीं है, अब मैं साइकिल से उतरूं कैसे? यह सोच कर गिर गई।

फिर जब साइकिल चलाना सीख गई तो अपनी दोस्त और भाई को बिठाकर साइकिल चलाने लगी, फिर जब नहीं संभाल पाई तो साइकिल चलाते हुए ले गई, और हम तीनों नाली में गिर गए, फिर हम खूब हंसे। वो हंसी के पल यादगार लम्हा बन गए। चलाने की धुन इतनी सवार थी कि, मैं सपने में भी खुद को साइकिल चलाते हुए देखती थी, ऐसा लगता था मानो मैं हवाओं में उड़ रही हूं।

सातवीं क्लास में जब अच्छे नंबर लाई थी तो पापा से गिफ्ट में साइकिल ही मांगी थी, पापा मुझे साइकिल देने से डरते थे, लेकिन जब मैंने साइकिल चलाना अच्छे से सीख लिया तो पापा ने मुझे साइकिल गिफ्ट में दी, उस दिन मैं बहुत खुश थी, मेरा सपना हकीकत में बदल गया।

मेरे पापा ने भी मुझे साइकिल चलाना सिखाया, आज भी मुझे साइकिल चलाना बहुत पसंद है।

न धुआं, न प्रदुषण, न पार्किंग की समस्या, ना फ्यूल भराने का झंझट, न रोड टैक्स की चिंता, ना मेंटेनेंस के बडे खर्चे, न फोर लेन के सड़कों की जरुरत, बस पैडल मारों और अपनी मंजिल को चल दो, और खुद को फिट रखने के लिए भी यह कितनी अच्छी है। अब तो अच्छी गियर वाली साइकिल भी आने लगी हैं, जिनसे पहाड़ों की ऊंचाई भी नापी जा सकती है।

स्टेटस, दिखावे के मानवीय चाह, कार, बाइक निर्माताओं के लुभावने विज्ञापन और दूसरों से आगे बढ़ने की नासमझ होड़ ने – सड़कों को भारी – भरकम वाहनों से लाद कर कितनी ही समस्याओं को जन्म दे दिया है। साइकिल जैसे मैकेनिकल यंत्र हम अपनाये तो, देश की कितनी ही समस्या हल हो जाएँ, न अमेरिका- यूरोप से पार्ट्स इम्पोर्ट करने होंगे, न खाड़ी देशो पर तेल के लिए निर्भरता रहेगी, न इलेक्ट्रिसिटी के लिए नेचर का दोहन करना होगा।

कम से कम अपने शहर के भीतर को साइकिल से एक जगह से दूसरी जगह आ सकते है, लोग वैसे भी शहर में इतना ट्रैफिक होता है कि – फेरारी से जाएँ या साइकिल से, बराबर समय ही लगेगा, कई अवसरों पर तो साइकिल कहीं जल्दी मंजिल तक जल्दी पंहुचा देगी।

कही भी सड़क बने तो उसमे एक लेन साइकिल चलाने के लिए होनी ही चाहिए।

अगर आप भी मानते है – साइकिल एक अच्छा वाहन हैं, और इसको बढ़ावा मिलना चाहिए तो इस लेख को अपने ग्रुप में अपने शेयर करें

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