Patal Bhuvaneshwar (पाताल भुवनेश्वर) Cave Uttarakhand

by Neha Mehta
1.3K views


उत्तराखंड जिसे देवभूमि कहा जाता है। यहाँ कई मंदिर हैं, जिनसे कई कथाऐ जुड़ी हुई है। इन्हीं में से एक है उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के गंगोलीहाट का पाताल भुवनेश्वर मंदिर।

देवदार के वृक्षों से घिरा पाताल भुवनेश्वर भगवान शिव को समर्पित को समर्पित गुफा मंदिर हैं। पाताल भुवनेश्वरगुफा गंगोलिहाट हाट कालिका मंदिर के निकट हैं।

पाताल भुवनेश्वर देवदार के घने जंगलों के बीच अनेक भूमिगत गुफ़ाओं का समूह है | जिसमें से एक बड़ी गुफ़ा के अंदर शंकर जी का मंदिर स्थापित है । 2007 से यह गुफा मंदिर  भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा सरंक्षित हैं।

पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यह गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है । पाताल भुवनेश्वर की मान्यताओं के मुताबिक, इसकी खोज आदि जगत गुरु शंकराचार्य ने की थी । पाताल भुवनेश्वर गुफा में केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी होते हैं।

पौराणिक इतिहास पाताल भुवनेश्वर

पुराणों के मुताबिक पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एकसाथ चारों धाम के दर्शन होते हों। यह पवित्र व रहस्यमयी गुफा अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है। मान्यता है कि इस गुफा में 33 कोटि देवी-देवताओं ने अपना निवास स्थान बना रखा है।

पाताल भुवनेश्वर गुफा के अन्दर भगवान गणेश जी का मस्तक है हिंदू धर्म में भगवान गणेशजी को प्रथम पूज्य माना गया है। गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में  गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, माना जाता है कि वह मस्तक भगवान शिवजी ने पाताल भुवानेश्वर गुफा में रखा है |

पाताल भुवनेश्वर की गुफा में भगवान गणेश कटे ‍‍शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है।

इससे ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है। मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था।

पाताल भुवनेश्वर गुफा के अन्दर रखी चीजों का रहस्य

इस गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं। इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। यह माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।

पाताल भुवनेश्वर का इतिहास और मान्यताये (History, Patal Bhuvaneshwer)

इस गुफा के अंदर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं | जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

गुफ़ा में घुसते ही शुरुआत में (पाताल के प्रथम तल) नरसिम्हा भगवान  के दर्शन होते हैं। कुछ नीचे जाते ही शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है । गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है । यह आकृति कामधेनु गाय का स्तन है कहा जाता था की देवताओं के समय मे इस स्तन में से दुग्ध धारा बहती है। कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है।

इस गुफा के अन्दर आपको मुड़ी गर्दन वाला गौड़(हंस) एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखाई देता है। यह माना जाता है कि शिवजी ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन मोड़ दी।

ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जुठा कर दिया था।

यहाँ गुफा दर्शन के लिए आने वाले यहाँ पर्यटक वाहनों की पार्किंग, सड़क के किनारे करते, जिसके आस पास, कुछ दुकाने और भोजन गृह, साथ में कुछ अतिथि गृह भी हैं। पाताल भुवनेश्वर के गेट से के बाद कुछ सीडियाँ उतर कर मंदिर के लिए रास्ता जाता हैं.  पाताल भुवनेश्वर एक अत्यंत छोटा गाँव हैं।

कैसे पहुचे!

पिथोरगढ़ जिले में स्थित इस मंदिर के सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पंतनगर 180 किलोमीटर, व नैनी सैनी एयरपोर्ट पिथोरागढ 60 किलोमीटर, नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम, यहाँ से लगभग 150 किलोमीटर, जहां से वाया अल्मोड़ा, चितई, धौलछिना, बेरीनाग, राईआगर होते हुए पहुंचा जा सकता है।

कब आयें?

यहाँ पुरे वर्ष कभी भी आया जा सकता हैं। बरसात के मौसम मे सड़क की स्तिथि का पता कर लें।

कहा रुके?

पाताल भुवनेश्वर में रुकने के लिए कुछ गेस्ट हाउस हैं, साथ ही आस पास के प्रसिद्ध स्थलों जैसे गंगोलिहाट, बेरीनाग, चौकोडी, कौसानी, बिनसर में रुकने वाले पर्यटक भी दिन मे गुफा मंदिर के दर्शन कर शाम को लौट सकते हैं।

इन जगहों पर हर बजट के होटल, गेस्ट हाउस आदि मिल जाते हैं, मई – जून अथवा अक्टूबर में त्योहारों के समय आप आना चाहते हैं, तो एडवांस मे रूम्स की बूकिंग करा लें, बाकी समय अमूमन रूम यहाँ मिल ही जाते हैं।

पाताल भुवनेश्वर के इतिहास को जानने के लिए वीडियो देखें।

 

 

 

 



Related Articles

Leave a Comment

-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.