महात्मा बुद्ध जिनसे जुड़े हैं भारत और श्रीलंका का इतिहास

by Yashwant Pandey
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साल 2015
मैं 2 सप्ताह के लिए श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में था। श्रीलंका के पश्चिमी तट पर स्थित कोलंबो एक बेहद खूबसूरत शहर है, जहां आपको एक तरफ मिलता है विराट हिंद महासागर और दूसरी और उसके किनारे बसा हुआ एक खूबसूरत शहर। समुद्र के किनारे बसा होने के कारण कोलंबो का तापमान सालों पर लगभग एक समान रहता है हाट और हुमीड।
शनिवार रविवार को छुट्टी थी, मैंने सोचा अनुराधापुरा चला जाए, जो श्रीलंका का प्राचीन राजधानी है। पूरा शहर ही वर्ल्ड हेरीटेज साइट है और बहुत सारे स्तूप और विहार हैं। लगभग 2200 साल पुराना स्तूप भी वहां पर हैं। कोलंबो से शाम की ट्रेन थी। लगभग 2:00 बजे रात में अनुराधापुरा पहुंच गया, मेरा होटल बुक था।
होटल पहुंचकर सो गया, सुबह 9:00 बजे उठा, स्नान ध्यान कर होटल के रेस्टोरेंट में नाश्ता करने पहुंचा। नाश्ता करने के बाद मैंने मैनेजर से बात की मुझे अनुराधापुरा कैसे घूमना चाहिए। उसका कहना था यदि मैं एक साइकिल ले लेता हूं किराए पर तो मैं पूरा अनुराधापुरा एक दिन में घूम सकता हूं। उसने मुझे बताया कहां साइकिल मिल सकती है किराए पर।
मैं होटल से निकलकर लगभग 300 मीटर चलकर एक साइकिल स्टैंड पर पहुंचा। साइकिल का किराया दिन भर का भारतीय रुपया में लगभग ₹100 था। मैंने उससे साइकिल ली। मजेदार बात थी उसने मुझसे कोई भी कागज या आईडी प्रूफ भी नहीं मांगा। उसने मुझे साइकिल दे दी, पैसे आप आकर दे देना कहा। मैं साइकिल से अनुराधापुरा का एंट्रेंस गेट पर, श्री लंका टूरिज्म ऑफिस में टिकट लिया।  भारतीय पासपोर्ट पर मेरे लिए टिकट ₹500 भारतीय मुद्रा के बराबर थी।  टिकट के साथ उन्होंने मुझे एक प्रिंटेड मैप भी दिया।
मैं सबसे पहते प्रमुख मंदिर में पहुंचा, जहां एक पीपल का विशाल पेड़ था। वह पेड़ उसी पेड़ के टहनी से हुई थी जिस पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। बहुत से लोग जो उस पेड़ के नीचे ध्यान करने के लिए बैठे हुए थे। सम्राट अशोक की पुत्री युवराज्ञी संघमित्रा दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व बोधगया के महाबोधि वृक्ष के टहनी को लेकर गई थी। वह टहनी को उन्होंने वहां लगायी थी। उन्होंने अपना जीवन बौद्ध भिक्षुनी के तरह वहीं पर गुजारा था।
श्रीलंका में उन्हें बहुत सम्मान दिया जाता है। थोड़ी देर ध्यान लगाने के बाद, मैं और भी बौद्ध विहार और स्तूप देखने के लिए निकल पड़ा। लगभग 40 स्क्वायर किलोमीटर की एरिया में बहुत से बौद्ध स्तूप मौजूद थे। 7 – 8 बौद्ध स्तूप देखने के बाद दोपहर हो चुकी थी, और मुझे भूख भी लग चुकी थी। मैं कुछ खाने का जगह ढूंढ रहा था, वापस शहर आने का मतलब था कम से कम दस किलोमीटर साइकिल और चलानी पड़ती और मैं पूरा अनुराधापुरा भी देख नहीं पाता। दूसरा दिन सुबह मेरी वापसी की ट्रेन थी, मुझे एक स्तूप के सामने ठेले पर पपीता तरबूज और अनानास बेचता हुआ एक व्यक्ति दिखाई दिया। मैं उसके पास पहुंचा, एक तरबूज कम से कम 3 से 4 किलो का होगा, पपीता 2 किलो का होगा, अनानास भी था। वह मुझे काट के देने को तो तैयार था, लेकिन मुझे पूरा खरीदना पड़ता।
मैंने उसे एक तरबूज एक पपीता और एक अनानास काटने को कहा। मैं इधर उधर देख रहा था, किसी ऐसे को, जिसे मैं तरबूज अनानास और पपीता दे सकता था। वह बौद्ध स्तूप के बाहर दो पुलिस वाले खड़े थे। कड़ी धूप थी और वे पसीने से लथपथ थे। मैंने उन्हें जाकर नमस्कार किया उन्होंने भी प्रतिउत्तर में मुझे हाथ जोड़कर नमस्कार किया। मैंने उनसे रिक्वेस्ट किया मेरे पास तरबूज आनानस और पपीता है, और वह मेरे साथ खाएंगे तो मुझे खुशी होगी। पहले तो उन्होंने कहा कि वे ड्यूटी पर हैं और वह कुछ ऐसा एक्सेप्ट नहीं कर सकते हैं।
मैं उन्हें समझाने में कामयाब रहा कि मेरे पास तो बहुत अधिक है, अगर वह खा लेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा। उन्होंने इस शर्त पर खाना स्वीकार किया कि मैं टूरिज्म ऑफिस में किसी को नहीं बताऊंगा, अन्यथा उन्हें पनिशमेंट भी मिल सकती है। जब मैंने उन्हें वचन दिया तब वह मेरे साथ वही एक पेड के नीचे बैठकर खाने लगे। खाने के दौरान में थोड़ी बातचीत होने लगी। दोनों बुद्धिस्ट थे। खाना समाप्त कर मैंने भी हाथ धोकर उन से हाथ मिला कर विदा ली। उनका कहना था मैंने उनका ध्यान रखा उसके लिए वे आभारी हैं। और मैं भगवान बुद्ध के देश से आया हुआ हूं, और बुद्ध के जैसे ही दयावान हूं। उनमें से एक ने पूछा क्या मैं भी बौद्ध हूं! मैंने कहा नहीं मैं हिंदू हूं, दूसरे का कहना था भगवान बुद्ध के माता-पिता भी हिंदू थे, जिन्होंने उन्हें इतने अच्छे संस्कार दिये। आप हिंदू हैं, और आपके भी संस्कार बहुत अच्छे हैं। मैंने हाथ जोड़कर उन्हें धन्यवाद दिया।
उन्होंने मुझे और 2 – 4 स्तूपों के बारे में बताया और जाकर देखने की सलाह दी। हमने एक दुसरे से हाथ जोड़कर विदा ली।

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