
कभी कभी परिस्थितियाँ इतनी विषम हो जाती हैं, आपके न चाहते हुए भी आपको वह करना पड़ता है जो सही नहीं कही जा सकती।
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साल 2015
मेरा पासपोर्ट के पेजस् समाप्त हो गए थे। मुझे नए पासपोर्ट की जरूरत थी। मेरा घर इंदिरापुरम गाजियाबाद में था, मैंने ऑनलाइन नई पासपोर्ट के लिए अप्लाई किया, नजदीकी पासपोर्ट सेंटर साहिबाबाद इंडस्ट्रियल एरिया था, मेरे घर से लगभग 4 किलोमीटर दूर। ऑनलाइन अपॉइंटमेंट मिल गई।
नियत समय पर सारे कागज और पुराने पासपोर्ट लेकर, पासपोर्ट ऑफिस साहिबाबाद पहुंचा। तय समय पर मुझे अंदर बुलाया गया। डाक्यूमेंट्स लिए गए, फिंगरप्रिंट, रेटिना और फोटो लेकर मुझे असिस्टेंट पासपोर्ट ऑफिसर के पास इंटरव्यू के लिए भेज दिया गया। पासपोर्ट ऑफिसर के साथ में मेरी बेसिक बातचीत हुई, जैसे मैं क्या करता हूं, मेरी पासपोर्ट सिर्फ तीन चार साल में क्यों समाप्त हो जाती है, इत्यादि इत्यादि। मुझे कहा गया हम आज पुलिस वेरिफिकेशन के लिए प्रोसेस कर देंगे और पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद आपका नया पासपोर्ट इश्यु हो जाएगा।
शाम को मेरे पास SMS आया, मेरी फाइल नियरेस्ट पुलिस स्टेशन को फॉरवर्ड कर दी गई है। लगभग 15 दिन के बाद मुझे एक सज्जन की कॉल मिली, उनका कहना था कि लोकल पुलिस स्टेशन से हैं, और वेरिफिकेशन के लिए मेरे घर आना चाहते हैं। मैं ऑफिस में था, मैंने कहा सर मैं ऑफिस में हूं, आप बताइए कब आएंगे, मैं घर पर रहूंगा। उनका कहना था, वह संडे आ जाएंगे सुबह में 11:00 बजे, मैं सारे डाक्यूमेंट्स का कॉपी तैयार रखूं।
संडे 11:00 बजे मेरे फ्लैट का घंटी बजा मैंने ही दरवाजा खोला, एक अच्छे खासे मोटे, मध्यम ऊंचाई की खाकी पैंट और सफेद कलर के चेक शर्ट में चश्मा लगाए हुए सज्जन दरवाजे पर खड़े थे। मैंने उन्हें सम्मान से बिठाया, चाय आदि के साथ उन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट के फोटो कॉपी ली, उसके बाद कहा मुझे 15 सौ रुपए दीजिए। इस वेरिफिकेशन के लिए, मैंने कहा सर हजार रुपया लगता है, आप ले लीजिए। उनका कहना था नहीं नहीं 15 सौ तो देना ही पड़ेगा। आप इतनी बार विदेश जाते हैं, मैंने पंद्रह सौ रूप्या निकाल कर के उन्हें दे दिया। उन्होंने पैसे मेरे सामने गिने फिर पैंट के पीछे जेब में डालें।
प्लेट से बिस्किट उठाकर मुंह में डालें, फिर चाय पीते हुए कहा, आप इतनी बार विदेश जाते हैं, मेरा एक बेटा है, मैं इसी महीने रिटायर हो जाऊंगा, क्या आप मेरे बेटे को विदेश में नौकरी लगाने में मदद करेंगे? उसकी कहीं नौकरी लगवा दें, बहुत मेहरबानी होगी। मैंने कहा सर आप उनका रिज्यूम भिजवा दीजिएगा, मैं अपने कांटेक्ट सर्कल में सर्कुलेट कर दूंगा, हो सकता है कुछ हो जाए।
उन्होंने अपने बेटे से मेरी बात करवाई, बेटा किसी लोकल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग करके बेरोजगार बैठा था। बेटे ने मेरे से मेल आईडी मांगी, मैंने उन्हें अपना बिजनेस कार्ड दे दिया। बिजनेस कार्ड पढ़कर अगर हम एक दूसरे की मदद नहीं करेंगे, तो कौन मदद करेगा। आप मेरे बेटे को नौकरी लगवा दीजिए, मैंने कहा सर मैं कोशिश करूंगा, मुझसे जो बन पड़ेगा। वह इधर उधर की कहानियां सुनाने लगे, उनसे बात करते हुए डेढ़ घंटा बीत गया।
शाम को ही उनके लड़के का रिज्यूम आ गया। एक सप्ताह बाद मेरा नया पासपोर्ट आ गया। उनका फोन आया मेरे पास, मैंने कहा – सर मैंने अपने फ्रेंड सर्कल में सर्कुलेट कर दिया है, कुछ अपडेट होगा तो बताऊंगा । लगभग 15 दिन बाद सज्जन का फिर फोन आया, कहा – मैं रिटायर हो गया हूं। मैंने कहा – अब आप लाइफ इंजॉय कीजिए। उनका कहना था, आप मेरे बेटे को नौकरी दिलवा दीजिए, नहीं तो हमारी हालत बहुत खराब हो जाएगी, मैंने बात इधर उधर करके फोन काट दिया।
उसके बाद हर 15 दिन बाद उनका फोन आने लगा, मैं उनके फोन से बचने लगा। एक संडे को बाप बेटे दोनों पहुंच गए, रिटायरमेंट हुए 2 महीने हुए थे, लेकिन जैसे उम्र 10 साल बढ़ गई थी। वजन कम से कम 10 किलो कम हो गया था। बाप ने बेटे को कहा – पांव छूओ, पंडित जी हैं, विदेश में नौकरी लगवा देंगे। बेटा मेरे चरण स्पर्श के लिए झुका, मैंने उसे बीच में ही रोका। कहने लगे आप पंडित जी होकर भी मेरी मदद नहीं कर रहे हैं! मैंने कहा सर आपने मेरे पासपोर्ट वेरिफिकेशन के लिए 15 सो रुपए लिए थे, जबकि सारे डॉक्यूमेंट ओके थी, उस समय आप भूल गए थे कि मैं भी पंडित हूं। अभी आपकी जरूरत है तो मैं पंडित जी हो गया, और आपकी मदद करना मेरी नैतिक दायित्व।
उन्हें आशा नहीं थी कि मैं यूं दो टूक जवाब दूंगा। चेहरा उनका काला पड़ चुका था, मुंह से आवाज न निकली। मैंने उन्हें चाय ऑफर किया, वह समझ चुके थे, मेरे अंदर कड़वाहट है। बड़ी मुश्किल से चाय पी, बाप बेटे दोनों चुप थे। चलते चलते हाथ जोड़कर फिर मुझे बेटे की नौकरी की विनती की। मैंने भी हाथ जोड़कर उन्हें विदा किया, और बाप बेटे दोनों का नंबर ब्लॉक।
लोगों से अच्छे और बुरे अनुभव दोनों हमें यहीं मिलते हैं, और दोनों को ही भुला पाना आसान नहीं होता।
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मैं भूटान की राजधानी थिंपू से इंडिया बाय रोड लौट रहा था, शाम को 5:00 बजे जयगांव पहुंचा। जयगांव भूटान के बॉर्डर पर स्थित है और भारत का आखिरी शहर है, जहां से आप भूटान जा सकते हैं। भारत की ओर की सीमा का शहर जयगांव, और भूटान की ओर की सीमा का शहर फूंटशोलिंग है। जहां भूटान का हिस्सा आपको साफ सुथरा और व्यवस्थित मिलेगा, वहीं जयगांव में टूटी फूटी सड़कें, गंदा सा अव्यवस्थित हालत है।
जयगांव में मुझे दो लोगों से मिलना था, इसलिए मैं एक होटल में ठहर गया। बैग होटल में रखकर शहर देखने के उद्देश्य से बाहर निकला। शाम को लगभग 6:00 बज गए, सड़कों पर काफी भीड़भाड़ थी। गाड़ियों की हार्न और प्रदूषण अत्याधिक था। मेरा होटल भूटान गेट के ठीक सामने था और मैं होटल से लगभग 1 किलोमीटर पैदल इधर उधर की दुकानें देखता हुआ जा रहा था। लगभग 1 किलोमीटर के बाद भीड भाड थोड़ी कम हो गई थी, मैंने वापस लौटने की सोची, सड़क क्रॉस कर वापस लौटने लगा।
सड़क के किनारे एक छोटा सा कैनोपी लगा हुआ था। सफेद कलर की कैनोपी के ऊपर लिखा हुआ था, गरम समोसा चाट, आलू चाट… इत्यादि इत्यादि। एक सप्ताह भूटान में दाल चावल खाकर गुजारा था। समोसा का बोर्ड देखते ही कदम खुद-ब-खुद उस दिशा में मुड़ गए। नजदीक पहुंचने पर देखा, कैनोपी के भीतर एक 20 – 22 साल की लड़की, गोरी चिट्टी, थोड़ी भारी बदन की, फटाफट आलू के मसाले को मैदे की रोटी में डालकर, त्रिकोण समोसा बना रही है। बीच-बीच में कड़ाही में तली जा रहे समोसों को भी हिला डूला रही है। स्टील के प्लेट में फटाफट समोसा, प्याज, मिर्ची, खट्टी मीठी चटनी मिला रही है, कस्टमर्स को दे रही है। कस्टमर से पैसे भी ले रही है, तीन-चार कस्टमर खड़े हैं, उसके साथ में सिर्फ एक असिस्टेंट लड़की है, जो प्लेटेस धो रही है। एक ही लड़की समोसा तल रही है, कस्टमरस को सर्व कर रही है, पैसे भी ले रही है, चाट बना रही है… कंप्लीट मल्टीटास्किंग।
मैं खड़ा होकर उसकी पूरी प्रक्रिया को गौर से देख रहा था। मुझ पर उसकी नजर पड़ी और उसने बांग्ला में पूछा- “दादा, आप चाट लेंगे या समोसा?” यूं तो बांग्ला में समझ लेता हूं, लेकिन बोलने में मुझे दिक्कत होती है। मैंने हिंदी में कहा मैडम मुझे एक समोसा दीजिए। उसने फिर मुझसे हिंदी में पूछा – “आप भूटान से हैं क्या?” मैं बोला – “नहीं मैडम बिहार से”। वह बोली – “एक नहीं दो समोसा खाइए।” मैं बोला – “मैडम अच्छा लगेगा तो दूसरा भी ले लूंगा।” उनका कहना था – “अगर आपको अच्छा नहीं लगे तो आप मुझे पैसे मत देना।” और एक प्लेट में दो समोसा, थोड़ा सा बारीक कटा हुआ प्याज, हरी चटनी, मीठी चटनी और एक तली हुई मिर्च मेरी ओर बड़ाई।
बिल्कुल गरम समोसा, तोड़ने में लगा जैसे उंगली जल जाएगी, अंदर से भाप निकल रही थी, पीले रंग के मसाले की खुशबू हवा में तैर रही थी। मैंने मुंह में एक छोटा टुकड़ा डाला, क्या ही लाजवाब स्वाद था! गर्म होने के कारण मैं धीरे-धीरे समोसा खा रहा था। दो समोसा खाने के बाद मैंने कहा, मैडम मुझे दो समोसा और चाहिए। उसका कहना था – “आपको अच्छा लगा ना, मैंने पहले ही कहा था। आप मेरा समोसा चाट खा कर देखिए।” मैंने कहा- “मैडम ओके”, काबुली चना का बेहतरीन चाट, तीखी मीठी चटनी, समोसा तोड़कर डाली, बारीक कटी हुई प्याज, मिर्च, खीरे और गाजर का सलाद और उसके ऊपर में थोड़ी सेव और अनार दाना। चाट भी लाजवाब थी। अब तक मैंने सोच लिया था कि डिनर नहीं लूंगा। मैंने कहा मैडम एक चाट और चाहिए। वे मुस्कुराई और कहा – “आपको अच्छा लगा, मुझे खुशी हुई।” मैंने कहा – “मैडम आपने रियली बहुत अच्छा बनाया है। यह स्टॉल आप ही चलाते हैं।” उनका कहना था – “नहीं सर, मेरे पिताजी चलाते थे, लगभग साल भर पहले उनका देहांत हो गया। हमारे पास में आमदनी का कोई और जरिया नहीं था, हम दो बहने हैं, दोबारा शुरू कर दिया। स्टॉल साफ करके, नए बोर्ड बनवाए, क्वालिटी सुधारी। मैं खुद ही बाजार से बढ़िया क्वालिटी का आलू, कच्ची घानी की सरसों तेल, अच्छी क्वालिटी के चने और शुद्ध मसाले लाती हूं। मां घर में मसाला तैयार करती है। हम दोनों बहने दिन में कॉलेज जाते हैं, और शाम को 4:00 बजे से रात में 8:00 बजे तक स्टाल लगाते हैं।” मैंने कहा – “मैडम, आपके यहां तो बहुत अच्छी भीड़ है, आप अच्छी सेल करते हैं।” उनका कहना था – “सर 500 समोसे हम रोज बेच लेते हैं।”
मैंने समोसे का पैसे देकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना की। दोनों बहनों ने भी मुझे हाथ जोड़ कर नमस्कार किया। मुझे खुशी हुई उनकी कर्मठता को देखकर। ईश्वर उन्हें सफलता प्रदान करें
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मैं एक कंपनी का झारखंड और बिहार का सेल्स देखता था। कंपनी की ऑफिस रांची और पटना दोनों जगह था। मेरा घर रांची में था, तो मैं रांची ऑफिस में बैठता था, और हर महीना 10 दिन के टूर पर बिहार जाता था। जिसमें 3 से 4 दिन में पटना में होता था। रांची का वेयरहाउस रांची में कंपनी परिसर में था, लेकिन पटना का वेयरहाउस एक लॉजिस्टिक कंपनी के वेयरहाउस में था, जिसका नाम एएफएल था। लॉजिस्टिक कंपनी का वेयरहाउस कुम्हरार पटना में था। कंपनी ने पता नहीं क्यों पटना में वेयर हाउस थर्ड पार्टी मेंटेन किया हुआ था। खैर…
एएफएल की सर्विस निहायत ही घटिया थी। 90% समय तो वह फोन ही नहीं उठाते थे, और अगर फोन उठा लिए तो मैं चेक करके बताता हूं, कह कर के फोन टेबल पर रख देते थे, और 10 मिनट के बाद कट हो जाता था। अगर उनसे डिलीवरी की बात करो, तो चेक करके बताता हूं उनका स्टैंडर्ड जुमला था। कुछ दिन उनकी हालत देखने के बाद मैंने सोचा कि ब्रांच मैनेजर से मिलकर सर्विस सुधारने की बात किया जाए, मैं आशावादी हूं और विश्वास करता हूं क्लियर कम्युनिकेशन से सिचुएशन को बेहतर बनाया जा सकता है।
अपॉइंटमेंट लेकर मैं एएफएल का ऑफिस पहुंचा। अपॉइंटमेंट के बावजूद लगभग एक घंटा मुझे वेट करवाया, 1 घंटे के बाद उन्होंने मुझे केबिन में बुलाया, मैं अपने डायरी में कुछ पॉइंटस नोट करके गया था उनसे डिस्कस करने के लिए । उन्होंने मेरी बातों को अनमने ढंग से सुना, आधे समय से अधिक वह अपने डेस्कटॉप और फोन पर व्यस्त थे, वह सुधार लाएंगे कह कर मुझे चलता किया। उस 45 मिनट के मीटिंग के दौरान उन्होंने कम से कम चार बार दर्शाया कि मेरी कंपनी का बिजनेस बहुत छोटा है और उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है। वह तो हमें सर्विस देकर मेहरबानी कर रहे हैं।
मैंने, इस संबंध में अपनी कंपनी के मैनेजर से बात की, उन्होंने कहा अगले महीने रिव्यु मीटिंग में बात करेंगे। अगले माह रीजनल ऑफिस कोलकाता पहुंचा, रीजनल मैनेजर से बात की, वह बहुत उत्सुक नहीं थे। लेकिन मेरे बहुत जोर देने पर उन्होंने बॉल को जनरल मैनेजर के पाले में डाला। हमारे जनरल मैनेजर मुंबई में बैठते थे। मैंने उन्हें मेल लिखकर वस्तु स्थिति से अवगत कराया। 1 घंटे बाद उनका फोन आ गया और उन्होंने मुझसे सिर्फ एक क्वेश्चन पूछा, मैं क्या चाहता हूं, वेयर हाउस वहां से हटा दिया जाए? “हां” में मेरा जवाब था।
वेयरहाउस वहां से निकलकर पटना की कंपनी परिसर में शिफ्ट हो गई। एएफएल के ब्रांच मैनेजर ने मुझे फोन करके कहा – आपने मुझसे बिज़नस छीना है, इसका बुरा परिणाम भुगतना पड़ेगा। मैंने भी दो गालियां सुना कर फोन काट दिया, बात आई गई हो गई। 2007 में मुंबई ऑफिस से एक व्यक्ति की वेरिफिकेशन की मेल आई, मेल पढ़कर पता चला, एएफएल के वही ब्रांच मैनेजर हमारी कंपनी में नौकरी के लिए अप्लाई किए। ये रिटन टेस्ट इंटरव्यू और मेडिकल भी क्लियर हो गई थी, सिर्फ पर्सनल वेरिफिकेशन बाँकी था। उन्होंने मुझसे डील किया था मेरी फीडबैक जरूरी थी।
कंपनी के नियमानुसार मैंने उनकी पूरी कहानी लिखकर भेज दी। उनकी सिलेक्शन रद्द हो गई, उन्होंने फिर मुझे फोन किया, इस बार वे बेहद विनम्र थे। अपने बीवी बच्चों का हवाला दिया, कैरियर खराब होने का वास्ता दिया, मुझ से बारंबार माफी मांगी, लेकिन मेरी फीडबैक जा चुकी थी।
कब आप किस परिस्थिति में पहुच जाएँ, कोई नहीं जानता, अपने व्यवहार में विनम्रता और कार्य में ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं होता।
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मुंबई की भागती जिंदगी के साथ, मैं भी भागना सीख रहा था। शुरू के महीना दो महीना तो मुंबई आपको तकलीफ देगी, लेकिन एक बार अगर आपने मुंबई के साथ भागना सीख लिया, तो फिर आप मुंबई से प्यार करने लगोगे। घर से सुबह निकलने पर पता ही नहीं चलता है, शाम कब हो गई। मुंबई में डिस्ट्रीब्यूशन सेट करने की कोशिश कर रहा था। प्रोजेक्ट सेल्स कि एक क्राइटेरिया है, प्रोजेक्ट कम से कम साल भर पहले शुरू हुआ होगा, 3 महीना पहले आर्किटेक्ट ने स्पेसिफाई किया होगा, आपने रिक्वायरमेंट्स जनरेट कर दी होगी, मटेरियल सेंट्रल वेयरहाउस से आ जाएगी और डिलीवरी हो जाएगी। मतलब आपके पास सफिशिएंट टाइम होता है, रिक्वायरमेंट जनरेट होने से लेकर के मैटेरियल्स की डिलीवरी तक।
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