वास्तविक अनुभव : कल क्या होगा कौन जान सकता है!

by Yashwant Pandey
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साल 2005

मैं एक कंपनी का झारखंड और बिहार का सेल्स देखता था। कंपनी की ऑफिस रांची और पटना दोनों जगह था। मेरा घर रांची में था, तो मैं रांची ऑफिस में बैठता था, और हर महीना 10 दिन के टूर पर बिहार जाता था। जिसमें 3 से 4 दिन में पटना में होता था। रांची का वेयरहाउस रांची में कंपनी परिसर में था, लेकिन पटना का वेयरहाउस एक लॉजिस्टिक कंपनी के वेयरहाउस में था, जिसका नाम एएफएल था। लॉजिस्टिक कंपनी का वेयरहाउस कुम्हरार पटना में था। कंपनी ने पता नहीं क्यों पटना में वेयर हाउस थर्ड पार्टी मेंटेन किया हुआ था। खैर…

एएफएल की सर्विस निहायत ही घटिया थी। 90% समय तो वह फोन ही नहीं उठाते थे, और अगर फोन उठा लिए तो मैं चेक करके बताता हूं, कह कर के फोन टेबल पर रख देते थे, और 10 मिनट के बाद कट हो जाता था। अगर उनसे डिलीवरी की बात करो, तो चेक करके बताता हूं उनका स्टैंडर्ड जुमला था। कुछ दिन उनकी हालत देखने के बाद मैंने सोचा कि ब्रांच मैनेजर से मिलकर सर्विस सुधारने की बात किया जाए, मैं आशावादी हूं और विश्वास करता हूं क्लियर कम्युनिकेशन से सिचुएशन को बेहतर बनाया जा सकता है

अपॉइंटमेंट लेकर मैं एएफएल का ऑफिस पहुंचा। अपॉइंटमेंट के बावजूद लगभग एक घंटा मुझे वेट करवाया, 1 घंटे के बाद उन्होंने मुझे केबिन में बुलाया, मैं अपने डायरी में कुछ पॉइंटस नोट करके गया था उनसे डिस्कस करने के लिए । उन्होंने मेरी बातों को अनमने ढंग से सुना, आधे समय से अधिक वह अपने डेस्कटॉप और फोन पर व्यस्त थे, वह सुधार लाएंगे कह कर मुझे चलता किया। उस 45 मिनट के मीटिंग के दौरान उन्होंने कम से कम चार बार दर्शाया कि मेरी कंपनी का बिजनेस बहुत छोटा है और उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है। वह तो हमें सर्विस देकर मेहरबानी कर रहे हैं।

मैंने, इस संबंध में अपनी कंपनी के मैनेजर से बात की, उन्होंने कहा अगले महीने रिव्यु मीटिंग में बात करेंगे। अगले माह रीजनल ऑफिस कोलकाता पहुंचा, रीजनल मैनेजर से बात की, वह बहुत उत्सुक नहीं थे। लेकिन मेरे बहुत जोर देने पर उन्होंने बॉल को जनरल मैनेजर के पाले में डाला। हमारे जनरल मैनेजर मुंबई में बैठते थे। मैंने उन्हें मेल लिखकर वस्तु स्थिति से अवगत कराया। 1 घंटे बाद उनका फोन आ गया और उन्होंने मुझसे सिर्फ एक क्वेश्चन पूछा, मैं क्या चाहता हूं, वेयर हाउस वहां से हटा दिया जाए?  “हां” में मेरा जवाब था।

वेयरहाउस वहां से निकलकर पटना की कंपनी परिसर में शिफ्ट हो गई। एएफएल के ब्रांच मैनेजर ने मुझे फोन करके कहा – आपने मुझसे बिज़नस छीना है, इसका बुरा परिणाम भुगतना पड़ेगा। मैंने भी दो गालियां सुना कर फोन काट दिया, बात आई गई हो गई। 2007 में मुंबई ऑफिस से एक व्यक्ति की वेरिफिकेशन की मेल आई, मेल पढ़कर पता चला, एएफएल के वही ब्रांच मैनेजर हमारी कंपनी में नौकरी के लिए अप्लाई किए। ये रिटन टेस्ट इंटरव्यू और मेडिकल भी क्लियर हो गई थी, सिर्फ पर्सनल वेरिफिकेशन बाँकी था। उन्होंने मुझसे डील किया था मेरी फीडबैक जरूरी थी।

कंपनी के नियमानुसार मैंने उनकी पूरी कहानी लिखकर भेज दी। उनकी सिलेक्शन रद्द हो गई, उन्होंने फिर मुझे फोन किया, इस बार वे बेहद विनम्र थे। अपने बीवी बच्चों का हवाला दिया, कैरियर खराब होने का वास्ता दिया, मुझ से बारंबार माफी मांगी, लेकिन मेरी फीडबैक जा चुकी थी

कब आप किस परिस्थिति में पहुच जाएँ, कोई नहीं जानता, अपने व्यवहार में विनम्रता और कार्य में ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं होता।

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