पलायन रूपी पहिया ऊंचाई से ढलान को घूमता

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migration from Uttarakhand

“पलायन पलायन सब करें, पलायन रोके ना कोई,

अगर पहाड़ में रह कर ही व्यवसाय करें, तो पलायन काहे को होई।”

उत्तराखंड के गांवों से शहरों की ओर पलायन, विकराल समस्या का रूप धारण करता जा रहा है। प्रदेश में पलायन की समस्या आज से ही नहीं बल्कि कई वर्षों से चली आ रही है। आज तक इसे रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं मिल पाया है।

गावों में मूलभूत सुविधाओं का ना हो पाना भी पलायन का एक बड़ा कारण है। शहरों की तुलना में गावों में शिक्षा और रोजगार के साथ-साथ बिजली, सड़क, संचार, चिकित्सा आदि सुविधाओं की बहुत कमी हैं। बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण, लोग बेहतर भविष्य की तलाश में, पहाड़ों से शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं।

उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में गठित होने में, एक मुद्दा पलायन को रोकना भी था, पहाड़ों के जनजीवन को गति देना, उनमें नई ऊर्जा भरना और गांव को फिर से आबाद करना था। उत्तराखंड राज्य को गठित हुए 20 वर्ष होने को है, परंतु पलायन की पीड़ा आज भी वैसे की वैसे ही है।

महात्मा गांधी ने कहा था- भारत की आत्मा गांवों में बसती है। जब पलायन के कारण गांव ही बंजर(खाली) हो जाएंगे, तो भारत की आत्मा कहां बसेगी? इसलिए सरकार को गांव से पलायन रोकने के लिए रोजगार, शिक्षा, बिजली, सड़क, चिकित्सा, परिवहन, उद्योगधंधों की सुचारू व्यवस्था एवं मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए। जिससे की पलायन रूपी पहिए की गति में रोक लगाई जा सके।

पहाड़ों से बढ़ते पलायन को रोकने के लिए, राज्य सरकार ने 17 सितंबर 2017 को पलायन आयोग का गठन किया। पलायन आयोग का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों से हो रहे पलायन को रोकना है। लोगों से समस्या और सुझाव जानने के लिए, पलायन आयोग की वेबसाइट www.uttarakhandpalayanayog.com भी बनाई गई है।

पलायन रोकने के लिए सरकार द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना जैसे अनेक स्कीमों का आयोजन किया गया है। जिसमें 150 तरह के कार्य किए जा सकते हैं। बस जरूरत है तो इन स्कीमों को कागजों से बाहर निकल कर गांव-गांव तक लोगों तक पहुंचाने की।

कोरोना महामारी के चलते पलायन की परिस्थितियां बदली है, बड़ी संख्या में प्रवासियों ने पहाड़ों की ओर रुख किया। गांव लौटे प्रवासियों का कहना है कि अब गांव में ही रहकर व्यवसाय करेंगे। प्रदेश सरकार को भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है। जिसके द्वारा पलायन को पूर्ण रूप से रोका जा सके।

“पहाड़ों से पलायन का नाता कुछ यू जुड़ा, की पलायन नामक पहिया पहाड़ों से रुक नहीं रहा।”

 


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