नमो नमो हे शंकरा, भोलेनाथ शंकरा, आदिदेव शंकरा बुद्धि देव हे महेश्वरा!
जब भी इस गाने के शब्द सुनती हूं, साक्षात वही दृश्य मेरी आंखों के सामने आ जाते हैं जो मैंने बड़ी किस्मत से भगवान केदारनाथ के धाम में उनके दर्शन करके पाया था। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हिमालय पर्वत माला में बसा भारत के उत्तरांचल राज्य का एक बहुत ही सुंदर स्थान है. आज भी इतनी ऊंचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया इसका पूर्ण सत्य किसी को ज्ञात नहीं है। कहते हैं कि जगतगुरु शंकराचार्य जी ने 32 वर्ष की आयु में श्री केदारनाथ धाम में समाधि ली थी और उन्हीं ने यह वर्तमान मंदिर बनवाया था। यहां पर बसी एक झील जिसमें बर्फ हमेशा तैरती रहती है श्री केदारनाथ धाम से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर बसा चौखंबा पर्वत पर स्थित वासु की ताल यहां ब्रह्मकमल काफी होते हैं और इस ताल का पानी बेहद ठंडा होता है।
आने जाने की व्यवस्था
अगर आपको हिमालय की पवित्र तीर्थों के दर्शन की अभिलाषा है तो तीर्थ यात्रियों को रेल बस टैक्सी द्वारा हरिद्वार आना चाहिए।हरिद्वार से उत्तराखंड की यात्राओं के लिए कई साधन उपलब्ध है।हरिद्वार से केदारनाथ की दूरी महज 247 किलोमीटर है, हरिद्वार से गौरीकुंड 233 किलोमीटर की दूरी पर है जहां पर आप मोटर मार्ग से जा सकते हैं जबकि गौरीकुंड से केदारनाथ तक के लिए 14 किलोमीटर आपको पैदल रास्ता लेना पड़ेगा। पैदल चलने में असमर्थ व्यक्तियों के लिए गौरीकुंड से घोड़ा, पालकी आदि की व्यवस्था हो सकती है। हवाई मार्ग से भी गौरीकुंड से ऑनलाइन रिजर्वेशन करके आप केदारनाथ धाम पहुंच सकते हैं।
कपाट खुलने का समय
दीपावली पर्व के दूसरे दिन यानी पड़वा वाले दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। पुजारी सम्मान के साथपट बंद कर विग्रह एवं दंडी को 6 महीने तक पहाड़ के नीचे उखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। 6 महीने बाद केदारनाथ के कपाट खुलते हैं और ज्योतिर्लिंग की यह यात्रा फिर से प्रारंभ हो जाती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि 6 महीने तक दीपक भी जलता रहता है और निरंतर पूजा भी होती है लेकिन 6 महीने तक उनकी आस पास कोई नहीं रहता। एक
केदारनाथ यात्रा अनुभव पर हमारी टीम द्वारा बनाये इस विडियो को भी आप देख सकते है।
उत्तरापीडिया के अपडेट पाने के लिए फ़ेसबुक पेज से जुड़ें।