उत्तराखंड में चमोली जिले में प्राकृतिक आपदा के कारणों का पता लगाने के प्रयास किए जा रहें हैं। इसी क्रम में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की टीम सोमवार सुबह उत्तराखंड पहुंची। संगठन के अधिकारियों ने आपदा स्थल का हवाई सर्वेक्षण किया है। उन्होंने कहा कि एरियल सर्वे के द्वारा डेटा एकत्रित किया गया है, जिसका विश्लेषण करने के बाद हादसे के कारण को समझा जा सकता है।
डीआरडीओ (DRDO In Uttarakhand) के डिफेंस जियो-इन्फॉर्मेटिक्स रीसर्च इस्टैब्लिशमेंट के डायरेक्टर डॉ. एलके सिन्हा ने बताया कि उनकी टीम ने आपदा स्थल का हवाई सर्वेक्षण किया है। पहली नजर में यह ऐसा हादसा लगता है, जिसमें एक हैंगिंग ग्लैशियर अपने मेन ग्लैशियर से टूट गया है और संकरी घाटी में आ गिरा हो। उन्होंने आगे बताया कि इस टूटे हुए ग्लैशियर ने घाटी में एक झील बनाई होगी, जो बाद में फट गई और यह हादसा हो गया। सिन्हा ने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों ने डेटा एकत्र कर लिया है और वे इसका विश्लेषण करेंगे। अगर और विवरण की जरूरत होगी तो हम और जानकारी लेने के लिए पुनः चमोली आएंगे।
क्या कारण बता रहे एक्सपर्ट?
उत्तराखंड में रविवार को आए जल प्रलय के कारणों का हालांकि, स्पष्ट तौर पर पता अभी नहीं चल पाया है। एक्सपर्ट्स ने अनुमान के मुताबिक, हादसे के कारणों की पहचान की है। नवभारत टाइम्स ऑनलाइन ने इस संबंध में विशेषज्ञों से बात भी की है। वाडिया इंस्टिट्यूट के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. संतोष से इस घटना को विस्तार से बताते हुए कहा कि पहली नजर में पता चला है कि शुक्रवार और शनिवार भारी बर्फबारी के कारण ऊपर की पहाड़ी चोटियों पर बर्फ जमा हो गई थी। रविवार को मौसम परिवर्तन होते ही बर्फ के ढेर खिसके और हिमस्खलन के रूप में नदी में आ गिरे, इसकी वजह से यह जलप्रलय हुई।
डॉ. संतोष ने बताया कि उस स्थान पर झील का कोई स्रोत नहीं है, न ही कोई मौजूदगी। उन्होंने बताया कि साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा और इस आपदा में अंतर है। केदारनाथ की आपदा मॉनसून में आई थी, जिस जगह से भीषण जल आया था उस स्थान पर झील थी लेकिन यह ठंड के दौरान आई हुई आपदा है। इस आपदा का मुख्य कारण भारी बर्फबारी और उस बर्फबारी का एवलांच में तब्दील होना ही माना जाएगा। डॉ. संतोष ने बताया कि दो टीमें रवाना हो चुकी हैं और जोशीमठ पहुंच चुकी हैं। दो से चार दिन में विस्तृत जांच रिपोर्ट सामने आएगी।
हिमालय में तेजी से सिकुड़ रहे हैं ग्लैशियर
वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक मेहता ने बताया कि यह बहुत असामान्य हादसा है। सर्दियों में ग्लैशियर मजबूती से जमे रहते हैं। यहां तक कि ग्लैशियल झीलों की दीवारें भी सख्ती से बंधी होती हैं। इस तरह की बाढ़ आमतौर पर हिमस्खलन या भूस्खलन की वजह से होती है लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं है। उन्होंने बताया कि हिमालय के ग्लैशियर दुनिया में कहीं और से ज्यादा तेजी से पीछे हट रही हैं लेकिन इसका बड़े पैमाने पर अध्ययन नहीं किया गया है।
मेहता ने कहा कि हमने ऊपरी ऋषिगंगा कैचमेंट और नंदा देवी क्षेत्र के ग्लैशियरों में विविधताओं की मैपिंग की है। इस इलाके में अधिकांश ग्लैशियर सिकुड़ते हुए पाए गए हैं। मेहता ने बीते साल एक शोध का नेतृत्व किया था, जिसमें ऊपरी ऋषिगंगा कैचमेंट इलाके के 8 ग्लैशियरों के सिकुड़ने की बात कही गई थी। शोध में बताया गया था कि उत्तरी नंदा देवी, चांगबांग, रमणी बैंक, बेठारटोली, त्रिशूल, दक्षिणी नंदादेवी, दक्षिणी ऋषि बैंक और रौंथी बैंक इलाके के ग्लैशियर बीते तीन दशकों में अपना 10 प्रतिशत द्रव्यमान खो चुके हैं। उपरी ऋषिगंगा जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट) वही जगह है, जहां रविवार को ग्लैशियर फटा था।
202 लापता, 18 की मृत्यु
रविवार को उत्तराखंड में आई आपदा में मरने वालों की संख्या 18 पहुंच गई है। वहीं 202 अन्य लोग लापता हैं। ऋषिगंगा घाटी के रैंणी क्षेत्र में हिमखंड टूटने से ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ से क्षतिग्रस्त 13.2 मेगावाट ऋषिगंगा और 480 मेगावाट की निर्माणाधीन तपोवन विष्णुगाड पनबिजली परियोजनाओं में लापता लोगों की तलाश के लिए सेना, भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के जवानों के बचाव और राहत अभियान में जुट जाने से तेजी आ गई है।
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