जनाब जिंदगी मे हमारे अफ़साने बनना तो तय था लेकिन कभी सोचा नही था के हमारे दांतों के भी इतने अफ़साने बन जायेगे कि आप लोगो से साझा किये बिना मन न मानेगा।
हमारे बाबूजी डॉक्टर के पास जाने मे बहुत घबराते थे और शायद ही कभी उन्होने सरकारी अस्पताल का मुह देखा हो, तबियत खराब होने पर खानदानी दवा खाने वाले डॉक्टर साहब की दवा से ही उनका इलाज चलता था। डाक्टर साहब की दवा रामबाण होती और हर मर्ज तीन या चार दिनो मे गायब हो जाता।
डॉक्टर से डरने का यह गुण बाबूजी के बाद मुझ मे आ बसा। मेने भी जीवन के बेहतरीन साठ बासठ वर्ष बगेर डॉक्टर्स की शरण में गये, काट दिए। बस दो तीन बार विशेषज्ञ डॉक्टर्स से राय मशवरा करना पडा, वरना कट रही है। दवा भी रोज खा रहे है, उच्च रक्त चाप और मधुमेह उपर नीचे होते रहता है लेकिन यदि कोई किसी क्लिनिक या डॉक्टर पर जाने का सुझाव दे तो जनाब हालत खराब हो जाती है, और उस विषय को बदलने के लिये मुझे श्रीमतीजी को चाय के साथ सुझावदाता को पकोड़े खिलाने का भी आग्रह करना पड़ता।
लेकिन घूम फिर कर बात हमारी सेहत पर आती और धर्मपत्नी शुरु हो जाती हमारे इस भीरूपन पे, बहुत अपने आप को समझाया कि डॉक्टर से कैसा डर, वो तो रक्षक है पर फिर वही ढाक के तीन पात।
आलम ये है कि अल्मोडा प्रवास पर अपनी डॉक्टर बहन से मिलने उसके घर जाने मे तक डर लगता है। क्योंकि उसने एक बार ताकत के इंजेक्शन लगवा दिए थे। जब भी वहा जाते है उपर वाले से दुआ करता हूँ कि कही मेरे प्यारे डॉक्टर दंपति मेरे स्वास्थ के बारे मे न पूछ ले पर वो भी बिना नागा रक्तचाप नाप कर और ढेरो दवा देकर ही मानते है।
देखिये विषय से भटकता जा रहा हूँ बात हो रही थी दाँत की और मे पूरी चिकित्सा पद्धति पर अपनी बेबाक राय देने लग गया… इधर कई दिनो से दन्त चिकित्सक से परामर्श तथा दांतों के ईलाज का कार्य क्रम बडी सफलता पूर्वक टाल रहा था।
श्रीमती जी हाथ धो कर पीछे पडी थी और मे नये नये नुस्खे आजमा उन्हे भरमा रहा था। मुकेश के चाचा हल्द्वानी के प्रख्यात दन्त चिकित्सक है, उस ने भी खुला आमन्त्रण श्रीमती जी के सामने दे दिया कि जब चाहो जिस दिन चाहो चलो, न कतार का झंझट न भीड भाड का भय, बिल्कुल पहले काम हो जायेगा….।
अब बच पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा था क्योंकि अब हमारे इस डॉक्टर से डर का बखान सरे आम सरे राह होने लगा था और राय बहादुरो की संख्या बढती जा रही थी… जो चाहे जब चाहे समझाने लगता के डॉक्टर से डरना नही चाहिये वो मित्र होते है।
मित्रो अब बात दाँत की नही थी इज़्ज़त की थी। डर डर के रात काटी, हनुमान चालीसा का जाप अनवरत रूप से रात भर चला और तय समय पर मुकेश के साथ चिकित्सक के पास गया। कुछ दवाओ के सेवन की सलाह के साथ एक तारीख शल्य चिकित्सा की मिल गयी। तय दिन और समय पर पुनः जाकर अपने अगले दो दाँत भी तुडा लाया। सच मानिये इतना भयभीत था कि – कब क्या हुआ पता नही और दाँत निकल भी गये।
अब जो समय चिकित्सा उपरान्त कट रहा है, उसमे बीबी और पड़ोसियों की नजर मे इज़्ज़त बडे या न बडे, जिंदगी आनंद से गुजर रही है। अडोसी पडोसी जिनसे भी बाते मुलाकात हो पा रही है उन्हे घुमा फिरा कर चिकित्सा और चिकित्सक विषय पर लाकर ये बताना नही भूल रहा हूँ कि कल ही डॉक्टरसाहब से मुलाकात कर के आया हू और फिर एक लम्बा भाषण स्वस्थ जीवन और दिनचर्या पर।
शाम को ठन्डी आईस क्रीम जितना चाहो खाओ, की जगह ठंडी पतली सूजी… ..
और नाश्ते मे बने, मोटे मोटे सॉफ्ट – सॉफ्ट, कोई साउथ इंडियन डिश, नाम भूल गया…
सबसे बडी बात दिन मे श्रीमती जी के तीन चार फोन, वो भी ये कर देना… नही, कैसे हो…
कैसा फ़ील कर रहे हो…
अपना ख्याल रखना…
यकीन ही नही हो पा रहा है के ये सपना है या सच।
अब अफ़सोस ये हो रहा है के अगर पहले पता होता कि दाँत तुडाते ही राज योग शुरु हो जायेगा तो पहले ही डॉक्टर साहब की शरण मे हो आता।
और हाँ आजकल किसी काम को करने की भी कोई बन्दिश नही है, बस देह का जतन करना है।
वाह रे मजे…
मित्रों दुआ करो के मेरे इस राजयोग पर किसी की नजर न लगे…।
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