पर क्या पता है तुम्हे, मुझे पता है (कविता)

by Atul A
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हां मैं नहीं कर सकता गौर,
तुम्हारी कानों की नई इयररिंग्स को।

हां मै नही कह सकता हर बार,
तुम्हारे दुपट्टे और नेल पोलिश का कलर, हर बार होता है एक सा।

हां मैं नहीं कह सकता हर बार,
तुम्हारे आईलाइनर से मैच करता है, तुम्हारा lip कलर भी।

हां मै नहीं जानता
तुम्हारे पर्स के रंग सा होता है, तुम्हारे मोबाइल का बैक कवर भी

पर क्या पता है तुम्हे, मुझे पता है कि,
मेरे देर से आने पर, तुम क्या बोलोगी।

पर क्या तुम्हे पता है, मुझे पता है,
मिलने के बाद वापस जाने पर, थोड़ा आगे जाकर फिर पलट के देखोगी।

पर क्या पता है तुम्हे, मुझे पता है कि,
मेरे नाराज होने पर, तुम अब क्या करोगी।

पर क्या तुम्हे पता है मुझे याद है,
पहली बार मैंने तुम्हें कहाँ देखा था।

पर क्या तुम्हे पता है मुझे याद है,
आज से 2 साल पहले, तुम्हारे चेहरे में आंखों के उप्पर एक घाव हुआ था।

पर क्या तुम्हे पता है मुझे पता है,
जब तुम नाराज होती हो, तो तुम्हारी नाक लाल हो जाती है।

क्या तुम्हे पता है मुझे पता है,
जब तुम परेशान होती हो, तो तुम्हारे होंठ सुख जाते हैं।

क्या तुम्हे पता है मुझे पता है,
मैं गलत होता हूँ कई बार, किया है तुमने उन बातों को अनदेखा भी।

चलो छोड़ो…
रहने दो….

हाँ इस बार, एक और बार मैं गलत और तुम सही,
करते हैं ये किस्सा एक अच्छे मोड़ पे खत्म।
छोड़ते हैं एक दूसरे को,
करते हैं, हर बंदिश से आजाद


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