उत्तराखंड में बहुतयात मात्रा में पाए जाने वाले जेट्रोफा के पेड़ तब से व्यवसायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और रोजगारपरक हो गए है । जब से वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है की इसके बीज से बायो डीजल बनाया जा सकता है। 2005 से 2012 तक इस पौधे को एक परियोजना के तहत राज्य की 2 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि पर लगवाया गया था। इस प्रयास से कई लोगो को सीधे रोजगार की प्राप्ति हुई थी। पेड़ो के रखरखाव से लेकर बीज इकठा करने तक के सारे कार्य लोगो द्वारा किये जाते थे।
स्पाइस जेट कंपनी ने 2018 में देहरादून से लेकर दिल्ली तक क्यू-400 हवाई जहाज जैट्रोफा से बने ईंधन से उड़ाया था। इस कारनामे के साथ विकासशील देशों में भारत पहला देश बन गया था, जिसने बायो फ्यूल से हवाई जहाज उड़ाया।
जेट्रोफा की खेती जैव ईंधन, औषधि,जैविक खाद, रंग बनाने में, भूमि सूधार, भूमि कटाव को रोकने में, खेत की मेड़ों पर बाड़ के रूप में, एवं रोजगार की संभावनाओं को बढ़ानें में उपयोगी साबित हुआ है। यह उच्चकोटि के बायो-डीजल का स्रोत है जिसमें गैर विषाक्त, कम धुएँ वाला एवं पेट्रो-डीजल सी समरूपता है।
सामान्य नामः जंगली अरंड, व्याध्र अरंड, रतनजोत, चन्द्रजोत एवं जमालगोटा आदि।
वानस्पतिक नामः जैट्रोफा करकस (Jatropha Curcas)
जेट्रोफा आमतौर पर विश्व के कटिबन्धीय तथा उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पाया जाता है । इसके प्राकृतिक स्रोतों में दक्षिणी अमेरिका, मेक्सिको, अफ्रीका, बर्मा, श्रीलंका, पाकिस्तान तथा भारत प्रमुख हैं । भारत में यह समस्त मैदानी क्षेत्रों व 1500 मीटर तक ऊँचाई वाले पहाड़ी स्थानों की कंकरीली, रेतीली, पथरीली, ऊसर इत्यादि भूमियों में आसानी से उगता है । राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश राज्यों तथा इसे उगाने वाले प्रमुख क्षेत्र कोंकण क्षेत्र, मालाबार समुद्रतटीय क्षेत्र हैं । इसे आमतौर पर अर्द्धजंगली अवस्था में गाँवों के आस-पास खेतों, सड़कों तथा नदी-नालों के किनारे उगा हुआ देखा जा सकता है । आजकल भारत में अनेक क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इसकी खेती करने पर बल दिया जा रहा है। यह पौधा शुष्क जलवायु में उगाने के लिए बहुत उपयुक्त है।
उत्तराखंड की वर्तमान सरकार को चाहिए की वह इन पौधों को मनेरगा के माध्यम से सभी ग्राम पंचायतो में लगवाए और हर ब्लॉक में इसके तेल सयंत्र स्थापित करे जिससे लोगो को रोजगार मोहया हो सके।