सुप्रसिद्ध लोकनृत्य छोलिया, उत्तराखंड के लोगों में रोमांच भर देता हैं, इस लेख में जानते है, छोलिया परंपरा कैसे शुरू हुई, इसका इतिहास और वीडियो द्वारा लीजिये नृत्य का आनंद!
छोलिया या छलिया उत्तराखंड के कुमायूँ क्षेत्र में प्रचलित एक प्रसिद्ध नृत्य शैली है। यह मूल रूप से एक विवाह के समय जाना वाला तलवार नृत्य है, जिसे कई अन्य कई शुभ अवसरों पर भी किया जाता है।
यह नृत्य कुमाऊं में पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर और अल्मोड़ा जिलों में विशेष रूप से लोकप्रिय है गढ़वाल में भी कुछ जगहों में यह नृत्य देखा जा सकता है।
छोलिया नृत्य का एक हजार साल से पुराना इतिहास रहा है। और यह कुमाऊं में कत्यूरी और चंद शाशन काल के राजपूत सैनिकों की युद्ध की परंपराओं में जुड़ा हैं।
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इस नृत्य में तुतरी या तुरही, रनसिंह (रणसिंह), धोल (ढोल), दमाउ (दमाऊ) सहित अनेकों पारंपरिक वाद्य यंत्र प्रयोग में लाये जाते हैं, जो हज़ारों वर्ष पूर्व, युद्ध के समय सैनिकों के मनोबल को बढ़ाने के लिए लड़ाइयों में इस्तेमाल किए जाते थे।
ब्रिटिश पीरियड में इसमें ब्रिटिशर्स आर्मी द्वारा प्रयोग किये गए मसाकबीन (मसकबीन) या बैगपाइप को इस नृत्य शैली के वाद्य यत्रों को शामिल किया गया।
इस नृत्य में कलाकारों द्वारा – प्रयुक्त वेशभूषा – कुमाऊं के प्राचीन सैनिको की वेशभूषा से मिलती है।
आप उत्तराखंड में घूमने आ रहे हैं, विशेषतः कुमाऊं में और इस नृत्य शैली का अनुभव लेना चाहते हों – अपने होटल – रिसोर्ट में आग्रह कर अथवा छोलिया कलाकारों से सीधे संपर्क कर, छोलिया नृत्य कार्यक्रम भी आयोजित करवा सकते हैं, इस हेतु शुल्क कलाकारों, उपकरणों की संख्या, परिधान एवं स्थान विशेष पर निर्भर करेगा।
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