Naimisharanya (नैमिषारण्य): जहां नहीं है कलयुग का प्रभाव

by Neha Mehta
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सामान्यतः हम सुदूर हिमालय की ऊंचाइयों में ऋषियों, संतों के ध्यान और तप करने की कहानियां सुनते आये है। नैमिषारण्य ऐसे ही स्थान जो रामायण और महाभारत काल से महापुरुषों की तप स्थली रहा है, में से है। और प्रकृति से घिरा यह शांत और सुरम्य स्थल आज भी लोगों को ध्यान के लिए प्रेरित करता है।

उत्तर प्रदेश का एक प्रसिद्ध पौराणिक व प्रमुख तीर्थ स्थल नैमिषारण्य, ब्रह्मा जी द्वारा सुझाया और 88 हजार ऋषियों की तपस्थली है। नेमिसारण्य  वेदों, शास्त्रों, पुराणों और कई धार्मिक ग्रन्थों की रचना का साक्षी रहा है। उत्तरप्रदेश के अगर 10 पौराणिक और धार्मिक स्थलों की सूची बनाई जाये तो उनमे से एक होगा नैमिषारण्य।

नैमिषारण्य सतयुग से ही प्रसिद्ध है। इस पवित्र स्थान पर आकर लोग अपने पाप से मुक्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि नैमिषारण्य का भम्रण करने पर आदमी मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। यह वह जगह है, जहां पर पहली बार सत्यनारायण की कथा हुई थी। इसी तपोभूमि पर ही ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियां दान की थीं।

नैमिषारण्य तीर्थ उत्तर प्रदेश राज्य के सीतापुर जिले में स्थित है, नीमसार सीतापुर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है, नीमसार के निकट ही हरदोई जिला भी है जहां से नीमसार की दूरी लगभग  45 किलोमीटर है।

नैमिषारण्य का पौराणिक महत्त्व

नैमिषारण्य के बारे में ये प्रचलित मान्यता है कि, द्वापर युग में  महाभारत युद्ध के बाद साधु-संत जो कलियुग के आरंभ होने और इसके दुष्प्रभावों के विषय में अत्यंत चिंतित थे, वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और ब्रह्मा जी से किसी ऐसे स्थान के बारे में बताने का अनुरोध किया जो कलियुग के प्रभाव से अछूता रहे। ब्रह्मा जी ने एक चक्र निकाला और उसे पृथ्वी की तरफ घुमाते हुए बोले कि जहां भी यह चक्र रुकेगा, वही स्थान होगा जो कलियुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा। संत चक्र के पीछे-पीछे चलने लगे। चलते-चलते अचानक गोमती नदी के किनारे एक वन में चक्र की नेमि (परिधि) गिर गई और वहीं पर वह चक्र भूमि में प्रवेश कर गया। इसी कारण इस स्थान को नैमिषारण्य भी कहा जाने लगा है।  और फलस्वरूप साधु-संतों ने इसी स्थान को अपनी तपोभूमि बना लिया।

रामायण में उल्लेख मिलता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ पूरा किया था और महर्षि वाल्मीकि, लव-कुश भी उन्हें यहीं मिले थे। महाभारत काल में यहां पर युधिष्ठिर और अर्जुन भी आए थे।

नेमिषारण्य दो शब्दो नेमि अर्थात परिधि और अरण्य अर्थात जंगल या वन से मिल कर बना है। इस अरण्य में वेद व्यासजी ने वेदों, पुराणों तथा शास्त्रों की रचना की थी तथा 88000 ऋषियों को इसका गूढ़ ज्ञान दिया था। अतः नैमिषारण्य को भारत के सर्व तीर्थस्थलों में से सर्वाधिक पवित्र स्थान माना जाता है। नैमिषारण्य को नेमिशरण, नैमिसारण्य, नीमसर, नैमिष, निमखर, निमसर अथवा नैमिसरन्य भी कहा जाता है।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2019 में नेमिसारण्य विकास परिषद के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है, ये प्रक्रिया सम्पन्न होने के बाद नेमिसारण्य के विकास की अनेक परियोजनाएं आरंभ होंगी।

नैमिषारण्य के प्रमुख आकर्षण केन्द्र

यहाँ गोमती नदी, व्यास गद्दी, 5000 वर्ष प्राचीन बरगद का पेड़, चक्रतीर्थ, सूतगद्दी मंदिर, ललिता देवी मंदिर, काली पी, श्री बालाजी मंदिर, रामानुज मंदिर, हनुमान गढ़ी सहित कई अन्य आकर्षण हैं।

चक्रतीर्थी, भेतेश्वरनाथ मंदिर,व्यास गद्दी, हवन कुंड, ललिता देवी का मंदिर, पंचप्रयाग, शेष मंदिर, क्षेमकाया, मंदिर, हनुमान गढ़़ी, शिवाला-भैरव जी मंदिर, पंच पांडव मंदिर, पंचपुराण मंदिर, मां आनंदमयी आश्रम, नारदानन्द सरस्वती आश्रम-देवपुरी मंदिर, रामानुज कोट, अहोबिल मंठ और परमहंस गौड़ीय मठ आदि कई नदिर भी यहाँ स्थित है।

हर मंदिर के आस पास आपको पूजन सामग्री, प्रसाद की साथ साथ यहाँ के आकर्षणों और मंदिरों की कई तस्वीरें भी उपलब्ध हो जाती हैं।

चक्रतीर्थ

यह एक गोलाकार पवित्र सरोवर है। लोग इसमें स्नान कर परिक्रमा करते हैं। आप इसमें उतर जाएं फिर इसका अद्भुत जलप्रवाह आपको अपने आप परिक्रमा कराता है। आपको लगेगा एक चक्कर और लगाया जाए। इसमें चक्रनुमा गोल घेरा है, जिसके अंदर एवं बाहर जल है। ब्रम्हा जी द्वारा छोड़ा गया चक्र इसी स्थल पर गिरा था। पूरी दुनिया में इस चक्रतीर्थ की मान्यता है कहते है की इस पावन चक्रतीर्थ के जल में स्नान करने से मनुष्य समस्त पापो से छुटकारा पा जाता है। कहा जाता है कि यहां पर पाताल लोक के अक्षय जल स्रोत से जल आता है।

ललिता देवी मन्दिर

ललिता देवी का मंदिर काफी प्राचीन मंदिर है। इस मन्दिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। जब देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हो रहा था तो ब्रम्हा जी के कहने पर ललिता देवी दानवो के संहार के लिए इस स्थान पर प्रकट हुई थी। पंचप्रयाग नाम का एक छोटा सा पवित्र कुण्ड ललिता देवी मंदिर के समीप ही है कुछ लोग यहां भी स्नान या यहां के जल का आचमन करते है।

व्यास गद्दी

यहाँ वेद व्यास जी ने वेद को चार मुख्य भागों में विभाजित किया और पुराणों का निर्माण किया। उन्होंने अपने शिष्यों जैमिनी, वैशम्पायन, शुक देव, सुथ, अंगीरा और पैल को श्रीमद् भगवद्गीता और पुराणों का उपदेश किया। यहाँ एक प्राचीन बरगद का पेड़ है जिसे आशीर्वाद माना जाता है और माना जाता है कि जो इस पेड़ के नीचे योग करता है वह असाध्य रोग से छुटकारा पा सकता है।

हनुमान गढ़ी

पाताल लोक में अहिरावण पर अपनी जीत के बाद भगवान हनुमान पहले यहाँ प्रकट हुए थे, इसलिए यह जगह उनके भक्तों के लिए उच्च महत्व रखती है। भगवान हनुमान की पत्थर की नक्काशी वाली एक आकर्षक मूर्ति है, जिसमें भगवान राम और लक्ष्मण उनके कंधों पर बैठे हैं। मंदिर को दक्षिणेश्वर भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान हनुमान की प्रतिमा यहाँ दक्षिण की ओर मुख करके स्थित है।

मनु-सतरूपा मंदिर

मनु सतरूपा मंदिर

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मनु एवं सतरूपा मानव संस्कृति का प्रथम जोड़ा था। नैमिषारण्य में उन्होंने 23000 वर्षों तक तपस्या की थी जिसके पश्चात ब्रम्हा ने उन्हें संतान सुख का वरदान प्रदान किया था।

भूतेश्वर महादेव मंदिर

यह एक प्राचीन शिव मंदिर है। इनकी भित्तियों पर हिन्दू धर्म के सभी पंथों से सम्बंधित प्रतिमाएं हैं। मुखलिंग के पृष्ठभाग पर स्थित प्रमुख भित्ती पर महाविष्णु की विशाल मूर्ति है। साथ ही गणेश जी, कार्तिकेय, सूर्य देव, माँ काली, महिषासुरमर्दिनी रुपी माँ दुर्गा, ऋषि दधीचि एवं ब्रम्हा जी की प्रतिमाएं हैं।

भूतेश्वर महादेव मंदिर – चक्र तीर्थ – नैमिषारण्य

सम्पूर्ण दिवस में उन्हें तीन अलग अलग प्रकार से पूजा जाता है। प्रातःकाल उन्हें भोलेनाथ अथवा शिशु-सदृश शिव माना जाता है, वहीं दोपहर में शिव के रौद्र रूप अर्थात् रूद्र की तथा संध्याकाल करुणा रुपी दयालु शिव की आराधना की जाती है।

नैमिषारण्य कैसे पंहुचे

देश के किसी भी भाग से आप उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, हरदोई या सीतापुर पहुँच आप नैमिषारण्य आसानी से पंहुच सकते हैं।

नैमिषारण्य से नजदीकी रेलवे लाइन हरदोई, बालानौर और लखनऊ में हैं।

लखनऊ, हरदोई और सीतापुर से भी नियमित बसें व कुछ टॅक्सी भी चलती हैं। आप अपने वाहन या टॅक्सी बूक करके भी नैमिषारण्य पहुँच सकते हैं।

वायु मार्ग- Naimisharanya Neemsaar Tirth Sitapur का सबसे निकटवर्ती हवाई अड्डा लखनऊ का अमौसी एअरपोर्ट है और लखनऊ से आपको नैमिषारण्य के लिए कई टॅक्सी मिल जाएंगी।

रेल मार्ग- निकटतम रेलवे लाइनें हरदोई, बालानौर/बालामऊ और लखनऊ में हैं। लखनऊ, हरदोई और सीतापुर से नियमित बसें भी चलती हैं।

सडक़ मार्ग– यदि आप सडक़ मार्ग से आना चाहते है तो आपको लखनऊ, सीतापुर , हरदोई से आपको बड़ी आसानी से बस या टॅक्सी आदि साधन मिल जायेंगे।

आप वर्ष में कभी भी यहाँ आ सकते हैं।

रात्रि विश्राम के लिए यहाँ आपको होटल/ गेस्ट हाउस के साथ साथ कई धर्म शालाएँ भी आसानी से मिल जाएंगी। साथ ही खाने के लिए कई ढाबे व restaurant भी, जहां आप उत्तर भारतीय व्यंजनो के साथ साथ दुग्ध उत्पादों और मिठाइयों का भी आनंद ले सकते हैं।

नैमिसारन्या में कई धार्मिक धार्मिक गतिविधियाँ जैसे चक्र कुंद्रा और गोमती नदी में पवित्र डुबकी, पिंडदान, थिला थारपाण की रस्में निभाना, गौ दान (गाय), वृक्षादाम (पेड़), सय्या दान (बिस्तर), वस्त्र दान (कपड़े), गेहु दान (गेहूं) आदि के रूप में दान कर सकते हैं।  ऐसा माना जाता है कि यहां पूर्वजों और मृत लोगों के नाम पर दान किया गया था। उन्हें सभी पापों से शुद्ध करेगा और उन्हें मोक्ष प्रदान कर सकता है।

नैमिसारन्या के बारे में और जानने के लिए वीडियो देखें।

 



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