देवभूमि उत्तराखंड धर्म-अध्यात्म के क्षेत्र में सबसे खास माना जाता है। विश्व भर के पर्यटकों का यहां आने का एक उद्देश्य आत्मिक व मानसिक शांति भी होता है। हरी-भरी वनस्पतियों से भरे पहाड़, घाटियां, हिमालय की बर्फीली चोटियां, नदी-झरने इस स्थल को एक अद्भुत रूप प्रदान करते हैं। उत्तराखंड असंख्य मंदिरों का घर है, जिनमें से कई भारतीय पौराणिक काल से संबंध रखते हैं। भारत के कई बड़े तीर्थ स्थल यहां की पहाड़ियों के मध्य बसे हैं, जिसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड आदि शामिल हैं। हर साल यहां के प्राचीन मंदिरों के दर्शन मात्र के लिए लाखों की तादाद में श्रद्धालुओं का आगमन होता है।
हिंदू कैलेंडर के आठवें महीने कार्तिक के देवता कार्तिकेय हैं। स्कंद पुराण के अनुसार इसी महीने में कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था। कार्तिकेय मुख्य रूप से दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले भगवान हैं। कुमार कार्तिकेय का एक बेहद खूबसूरत मंदिर उत्तराखंड में भी मौजूद है। इसके चारों तरफ बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां इसे अलौकिक स्वरुप प्रदान करती हैं। कार्तिक महीने में यहां दर्शन करने से हर तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं।
उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर हिन्दुओं का एक पवित्र स्थल है, जो भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3050 मीटर की ऊंचाई पर गढ़वाल हिमालय की बर्फीली चोटियों के मध्य स्थित है। माना जाता है कि यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसका इतिहास 200 साल पुराना है। कार्तिक स्वामी मंदिर में प्रतिवर्ष जून माह में महायज्ञ होता है। बैकुंठ चतुर्दशी पर भी दो दिवसीय मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा और जेष्ठ माह में मंदिर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां संतान के लिए दंपति दीपदान करते हैं।
80 सीढ़ियों का सफर
भगवान कार्तिक की पूजा उत्तर भारत के अलावा दक्षिण भारत में भी की जाती है, जहां उन्हें कार्तिक मुरुगन स्वामी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की घंटियों की आवाज लगभग 800 मीटर तक सुनी जा सकती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। यहां की शाम की आरती या संध्या आरती बेहद खास होती है, इस दौरान यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लग जाता है। बीच-बीच में यहां महा भंडारा भी आयोजित किया जाता है, जो पर्यटकों और श्रद्दालुओं को काफी ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है।
यहां समर्पित की थी अस्थियां
माना जाता है कि कार्तिकेयजी ने इस जगह अपनी अस्थियां भगवान शिव को समर्पित की थीं। किवदंती के अनुसार एक दिन भगवान शिव ने गणेशजी और कार्तिकेय से कहा कि तुममें से जो ब्रह्मांड के सात चक्कर पहले लगाकर आएगा, उसकी पूजा सभी देवी-देवताओं से पहले की जाएगी। कार्तिकेय ब्रह्मांड के चक्कर लगाने के लिए निकल गए, लेकिन गणेशजी ने भगवान शिव और माता पार्वती के चक्कर लगा लिए और कहा कि मेरे लिए तो आप दोनों ही ब्रह्मांड हैं। भगवान शिव ने खुश होकर गणेशजी से कहा कि आज से तुम्हारी पूजा सबसे पहले की जाएगी। जब कार्तिकेय ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर आए और उन्हें इन सब बातों का पता चला तो उन्होंने अपना शरीर त्यागकर अपनी अस्थियां भगवान शिव को समर्पित कर दीं।
घंटी चढ़ाने की है मान्यता
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में घंटी बांधने से इच्छा पूर्ण होती है। यही कारण है कि मंदिर के दूर से ही आपको यहां लगी अलग-अलग आकार की घंटियां दिखाई देने लगती हैं। मंदिर के गर्भ गृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। यहां शाम की आरती बेहद खास होती है। इस दौरान यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लग जाता है।
कार्तिक स्वामी मंदिर की यात्रा कई मायनों में आपके लिए खास हो सकती है। धार्मिक आस्था के अलावा यहां प्रकृति प्रेमी और रोमांच के शौकीन पर्यटक भी आ सकते हैं। चूंकि यह मंदिर ऊंचाई पर और पहाड़ियों से घिरा है, इसलिए यहां से कुदरती खूबसूरती का आनंद जी भरकर उठाया जा सकता है। अगर आप एडवेंचर का शौक रखते हैं, तो यहां ट्रेकिंग और हाइकिंग का आनंद भी ले सकते हैं। अगर आप फोटोग्राफी का शौक रखते हैं, तो यहां के अद्भुत नजारों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। एक शानदार यात्रा के लिए आप इस स्थल का चुनाव कर सकते हैं। आप मंदिर के दर्शन किसी भी समय कर सकते हैं, लेकिन मौसम से लिहाज से यहां आने का सही समय अक्टूबर से लेकर मार्च के मध्य का है, इस दौरान आप आसपास की प्राकृतिक खूबसूरती का आनंद जी भरकर उठा पाएंगे।
कैसे करें प्रवेश
कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग में स्थित है, जहां आप परिवहन के तीनों साधनों की मदद से पहुंच सकते हैं, यहां का निकटवर्ती हवाईअड्डा देहरादून स्थित जॉली ग्रांट है। एयरपोर्ट से आप सीधे बस या टैक्सी से रूद्रप्रयाग और वहां से मंदिर आसानी से पहुंच सकते हैं। रेल सेवा के लिए आप ऋषिकेश रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। अगर आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों के जरिए भी आसानी से पहुंच सकते हैं, बेहतर सड़क मार्गों से रूद्रप्रयाग राज्य से बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।