पिछले कुछ वर्षों से देश के हिमालय क्षेत्र राज्यों में, हिमालय के संरक्षण की जागरूकता के लिए 9 सितंबर को ‘हिमालय दिवस‘ मनाया जा रहा है।
हिमालय दिवस की शुरुआत 2010 में पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं के समूह द्वारा एक पहल के रूप में शुरू हुई। आधिकारिक तौर पर हिमालय दिवस की शुरुआत 9 सितंबर, 2014 को उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत ने की थी।
हिमालय क्षेत्र में प्रतिवर्ष प्राकृतिक जल स्रोतों का जलस्तर घट रहा है, कई वन्य जीव–जंतु एवं वनस्पतियां विलुप्त हो रही हैं, भौगोलिक परिस्थितियों में बदलाव आ रहा है, भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाओं का बढ़ना। यह सब संकेत है, हिमालय के संकट में होने का।
हिमालय का संकट में होना मानव जीवन के लिए खतरे का संकेत है। हिमालय संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। हिमालय हमारा भविष्य एवं विरासत दोनों है।
हिमालय के संरक्षण के लिए, इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, नदियों, वनों, झीलों, ग्लेशियर आदि का संरक्षण भी अति आवश्यक है।
हिमालय दिवस का उद्देश्य
हिमालय दिवस मनाने का मुख्य कारण है, हिमालय की परिस्थितिक स्थिरता और हिमालयी परिस्थितिकी तंत्र को, बनाये रखने के लिए जन जागरूकता का संदेश फैलाना।
हिमालय दिवस के दिन अलग-अलग तरह से हिमालय संरक्षण के लिए जन जागरूकता के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
हिमालय संरक्षण के लिए जल संरक्षण तथा अधिक मात्रा में वृक्षारोपण को प्राथमिकता देनी होगी।
हिमालय क्षेत्र राज्यों द्वारा प्रतिवर्ष हिमालय दिवस मनाने से हिमालय का संरक्षण नहीं होगा, इसके लिए समय-समय पर किए गए अध्ययनों आदि विषय पर गंभीरता से चिंतन करने के साथ-साथ तत्परता से कार्य योजना का निर्माण करना होगा।
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